और ऐसे बीत गया राधिका कुमारी का छठ

और ऐसे बीत गया राधिका कुमारी का छठ

दुर्जन बहुत तेजी से फावड़ा चला रहा था. मिट्टी सटाक से निकल रही थी. लेकिन फावड़े के फाल में एक कपड़ा फंस गया था. वो दिक्कत कर रहा था. उसने हाथ से कपड़ा खींच दिया. कपड़े के अंदर कुछ था. उसने हाथ अंदर घुसा दिया. पोली सी चीज टकराई . उसने हाथ बाहर खींच लिया. ये मल था. फावड़ा रखकर दुर्जन बहुत देर तक बैठा रहा. उसने नदी में हाथ तो धो लिया था. साबुन तो लाया नहीं था. कई बार वहीं मिट्टी में हाथ रगड़ भी लिया. पर हाथ को अपने शरीर से दूर ही रख रहा था. फावड़ा भी बायें हाथ से ही पकड़ रखा था. काफी वक्त बीत जाने के बाद अनमने ढंग से बायें हाथ से ही फावड़ा चलाने लगा. पर कुछ हो नहीं पा रहा था. फिर उसने पांवों से मिट्टी दबानी शुरू कर दी. कुछ देर में मिट्टी समतल सी हो गई. चादर डाल के बैठा जा सकता था. छठ का घाट तैयार हो गया था. इस घाट पर राजपूत, बाभन, लाला और बनिए नहीं आते थे. दूधवाले और खेती करनेवाले भी नहीं आते थे. हालांकि वो रहते थे इससे नजदीक ही. और घाट की ढलान भी कम थी. कुछ देर फावड़ा चला लेने के बाद नदी का पूरा किनारा बैठने लायक हो जाता था. फोटो भी बढ़िया आती थी. लेकिन शुरू से ही चला आ रहा था. बड़े लोग वैद्यनाथ घाट पर ही छठ करते थे. दिक्कतें बहुत थीं वहां, ढलान भी बहुत थी. संकरा रास्ता था. लेकिन परंपरा तो परंपरा है.

तस्वीर साभार: गूगल

दुर्जन घर चलने को हुआ. शाम को यहीं आना था बीवी के साथ. मनौती थी. बेटा होगा तो छठ करेंगे. पिछले साल बेटा हुआ था, दो दिन का होकर मर गया था. बीमार सा ही पैदा हुआ था, हॉस्पिटल ले गये, वहां बिजली ही नहीं थी. थोड़ा इंतजार किये. फिर घर वापस आ गये. पर मनौती तो पूरी हुई ही थी. साल बीता तो छठ करना बनता था. छोटा भाई संजन भी दिल्ली से आनेवाला था. आ ही गया होगा. घर पहुंचा तो बिजली आ गई थी. राधिका कुमारी मस्त तैयार हो कर गीत गाये जा रही थी. तीन दिन तक चलता है ये व्रत. दुर्जन ने कई बार घंटे गिनने की कोशिश भी की थी. जब से पंडित जी बता दें कि शुरू हो रहा है. पर पंडित जी इस मुहल्ले तो आते नहीं थे. आते सिर्फ बड़ी पूजा के दिन. तो टाइम पता चलते चलते देर हो जाती थी. सुना था कि  36 घंटे तक व्रत रहते हैं. पर राधिका कुमारी की सास का हमेशा 42 घंटे हो जाता था. इस बार तो 40 से ऊपर ही था. संजन जब से आया था, कुनमुना ही रहा था. छठ के दौरान दिल्ली से आने पर रिजर्वेशन मिलता नहीं. जनरल डिब्बे में चढ़ के लोग आते हैं. सोना खाना भी नहीं हो पाता. और आज ही त्योहार भी है. पर कुनमुनाना किस बात का. त्योहार है तो किसी भी तरह आना ही है. छठी मैया ने बुलाया है. किस किस चीज का, और किससे किससे शिकायत करेंगे. जैसी किस्मत है, वैसा काम है. वैसे ही करेंगे. दुर्जन ने खाना भी ठीक से नहीं खाया. खाना लेकर कोने में चला गया था. दाहिने हाथ को पीछे छुपाकर बायें हाथ से चम्मच से खाने की कोशिश की. पर खाना गिर जा रहा था.

तस्वीर साभार: अभिमन्यु साहा

राधिका कुमारी ने देखा तो दुर्जन ने तुरंत दांत पकड़ लिया. बोला कि दर्द हो रहा है, खाया नहीं जा रहा. फिर जैसे तैसे निपटा दिया. संजन भी खाना लेकर अकेले ही कोने में बैठा था. पता नहीं खा भी रहा था या नहीं. शाम हो गई. चारों ओर से औरतों के गाने की आवाज आने लगी. दूर थीं तो लग रहा था कि कोई रो रहा है. नजदीक आने पर पता चला कि कोई नया गाना बनाया गया है. राधिका कुमारी भी तैयार हो गई. बोली कि आपलोग ऊंख और दौरा ले के चलिए. ऊंख तो बहुत कायदे की मिल गई थी. मोटी मोटी. पर हो गई थीं भारी. हालांकि दुर्जन का कंधा दर्द कर रहा था, पर उसने ऊंख कंधे पर रखना तय कर लिया. वो फलों से भरा दौरा उठाना नहीं चाहता था. क्योंकि उस हाथ से वो पूजा का कुछ छूना नहीं चाहता था. राधिका कुमारी को कुछ बताना भी नहीं चाहता था. पूजा भांड़ना नहीं चाहता था. संजन ले जाएगा दौरा. दुर्जन निकल गया. घाट पर सब सजाना भी था. दाहिना हाथ उसने पैंट की जेब में डाल लिया था. गुनगुनाते हुए निकल गया. रास्ते में जोर जोर से गाने लगा. उसे दाहिने हाथ की याद बिल्कुल नहीं चाहिए थी. इसलिए वो बायीं ओर ही देखते रहा. राधिका कुमारी ने जब निकलना चाहा तो जी सन्नाक से हो गया. दौरा घर में ही पड़ा था. दुर्जन तो आंख के सामने ही निकला था, वहीं संजन किसी की बाइक पर बैठा आंख के सामने ही निकला जा रहा था. निकल भी गया.

संजन को तो साफ साफ कहा गया था कि दौरा आपको ही ले जाना है. बिना ले जाये पूजा कैसे होगी. राधिका कुमारी को क्रोध बहुत आया. लेकिन क्या किया जा सकता था. पर वो हार माननेवाली नहीं थी. उसने मन ही मन छठी मैया का ध्यान किया. अचानक उसकी आंखें लाल हो गईं. नथुने फड़कने लगे. माथे से बहता हुआ सिंदूर पूरे नाक और गाल तक फैल गया. उसका गोरा रंग लाल हो गया. दौरा झटके में उठ गया. उसने एक कदम बढ़ाया तो वो हवा में गया. दूसरा बढ़ाया तो वो पूरी की पूरी हवा में हो गई. फिर कोशिश की तो वो उड़ने लगी. नीचे उसने देखा कि तमाम औरतें गीत गाती हुई जा रही थीं. उसने ऊपर ही जोर जोर से गाना शुरू कर दिया. वो उड़ते हुए जा रही थी. नीचे वाले दौरा और ऊंख संभालने में लगे थे. औरतें दिये के जलते रहने के लिए उसपर नजरें गड़ाये थीं. वो सबसे पहले घाट पर जा पहुंची. दुर्जन और संजन मुंह फुलाये बैठे थे. संजन ने कोई जवाब ही नहीं दिया कि क्यों नहीं लाया वो दौरा. दोनों में कुछ बतरस सा हो गया था. दुर्जन चिंतित था कि राधिका कुमारी क्या सोच रही होगी. तभी उसने देखा कि दौरा अपनी जगह पर रखा हुआ है.

तस्वीर साभार: अभिमन्यु साहा

राधिका कुमारी पूजा शुरू कर रही है. दुर्जन की हिम्मत नहीं हुई कि वो कुछ पूछे. चुपचाप बैठा रहा. राधिका कुमारी फिर नदी में घुस गई. डूबते सूरज को अर्घ्य देना था. वो जहां जहां जाती पानी उसके पैरों के नीचे से हटता जाता. पर अर्घ्य तो कमर भर पानी में दिया जाता है. वो चलती गई. पर पानी भागता गया. उसके आस पास की औरतें नहाने में व्यस्त थीं. कुछ कपड़े भी बदल रही थीं. जिले के डीएम एक स्टीमर पर छठ देखने आये थे. पर वो इस घाट नहीं आये. वैद्यनाथ घाट से ही लौट गये. राधिका कुमारी को उनके लौटने से याद आया कि वो पानी को लौटा भी सकती है. उसने हाथ से पानी अपनी तरफ खींच लिया. अचानक पानी उसके सिर के ऊपर से बहने लगा. उसे लगा कि छठी मैया जोर जोर से हंस रही हैं. राधिका कुमारी ने दिये को मुंह में रख लिया. बुझने नहीं देना था. फिर उसने सांस लेना बंद कर दिया. क्योंकि बुझने नहीं देना था. फिर राधिका कुमारी को कुछ पता नहीं चला. दूर से दुर्जन ने देखा कि कई लड़के नदी में कूद रहे हैं रस्सियां लेकर. सारे खाली हाथ वापस आ गये कुछ देर में. दुर्जन वापस अपने घाट पर बैठ गया. संजन रो रहा था. रोते रोते कहा कि मुझे नहीं पता क्या हो गया. दौरा तो मैं इसलिए नहीं लाया था कि ट्रेन में पूरे रास्ते लैट्रिन की सीट पर बैठ के आना पड़ा था. पहले तो चप्पल पर बैठा था. बाद में जब पैर में दर्द हो गया तो हाथ भी रखना पड़ गया सीट पर ही. इसीलिए मन नहीं किया दौरा उठाने का. भाभी को कह भी नहीं सकता था. भाग आया. पर यहां आने का बाद दौरा मेरे हाथ से छू गया था. उसी पाप का फल मिला है. मैंने भाभी की हत्या कर दी. दुर्जन ने संजन को गले लगाते हुए कहा दौरा छू तो मुझसे भी गया था, बायें हाथ से ही छुआ था, पर छू तो गया ही था. पर इतना प्रत्यक्ष नहीं दिखाना चाहिए था छठी मैया को. कैसे जिऊंगा मैं?

नोट: यह कहानी हमें लिख भेजी है ऋषभ प्रतिपक्ष ने