बिहार प्रांत में एक जिला है पूर्वी चंपारण. डिस्ट्रिक्ट हेडक्वार्टर है मोतिहारी. कभी संयुक्त चंपारण का हिस्सा. जहां से गांधी ने नील की खेती के खिलाफ आंदोलन शुरू किया. बाकी सब तो इतिहास है ही. उसे जिले में एक विधानसभा है चिरैया. चिरैया 20. वैसे तो इस विधानसभा का अस्तित्व बहुत पुराना नहीं लेकिन आपकी जानकारी के लिए बता दें कि साल 2009 में नया परिसीमन लागू हुआ. साल 2010 के विधानसभा चुनाव में इस इलाके में नए समीकरण और कहानियां देखने को मिलीं. घोड़ासहन विधानसभा इतिहास के पन्नों में समा गया. तो हम आपके लिए उसी चिरैया विधानसभा की कहानी लेकर आए हैं. अब आगे…
पहलेपहल हम आपको यह बताते चलें कि चिरैया के वर्तमान विधायक लालबाबू गुप्ता हैं. वे साल 2015 में यहां से पहली बार प्रतिनिधि चुने गए हैं. उनके निकटतम प्रतिद्वंदी का नाम लक्ष्मी नारायण प्रसाद यादव है. इन दोनों प्रत्याशियों के वोटों की बात करें तो लालबाबू गुप्ता को 62,831 वोट मिले थे और लक्ष्मी यादव को 58,457 वोट मिले थे. जीत और हार का फासला 4,374 वोटों का था.
नीतीश और लालू रहे साथ, फिर भी हार गया महागठबंधन
गौरतलब है कि बिहार में बीता विधानसभा चुनाव नीतीश और लालू प्रसाद के साथ आने की वजह से दिलचस्प हो गया था. नीतीश और लालू के गठबंधन ने वैसे तो पूरे बिहार में लगभग क्लीन स्वीप किया लेकिन मोतिहारी जिले की अधिकांश विधानसभा सीटों पर एनडीए का ही कब्जा रहा. चिरैया भी उनमें से एक रहा. बताने वाले बताते हैं कि ऐसा यहां इसलिए हुआ क्योंकि भाजपा ने अपने परंपरागत वोटरों के साथ लालबाबू गुप्ता (तेली जाति) के उम्मीदवार को मैदान में उतारा. इस इलाके में तेली और कलवारों की ठीकठाक संख्या है. साथ में सवर्ण वोट भी भाजपा को मिले. 2015 के चुनाव से पहले इन वोटों में बंटवारा हो जाया करता था लेकिन लालबाबू गुप्ता के प्रत्याशी होने के बाद इन वोटों की गोलबंदी भाजपा के पक्ष में हुई. दूसरी वजह बसपा के सिंबल पर चुनाव लड़ने वाले ओम प्रकाश यादव रहे. महागठबंधन की ओर से एक यादव जाति के उम्मीदवारी के खिलाफ बसपा ने भी एक (यादव) उम्मीदवार को ही मैदान में उतारा. ऐसे में ओम प्रकाश यादव को मिलने वाले वोटों की वजह से महागठबंधन के उम्मीदवार का गुणा-गणित गड़बड़ा गया.
अब तक तय नहीं दावेदारी
वैसे तो सूबे में चुनाव की तारीखें कभी भी घोषित हो सकती हैं. कई इलाकों में तो दावेदार बंपर सभाए करने भी लगे हैं लेकिन इस इलाके में वैसी गहमागहमी देखने को नहीं मिल रही. एक तरफ जहां सीटिंग विधायक अपने टिकट को लेकर आश्वस्त हैं, वहीं महागठबंधन की ओर से (राजद) के ही कई दावेदार टिकट लेकर चुनाव लड़ने की जुगत में लगे हुए हैं. पूर्व विधायक लक्ष्मी यादव के अलावा राजद के पूर्व जिलाध्यक्ष बच्चा यादव और अच्छेलाल यादव भी टिकट पाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं. राजद की ओर से चिरैया विधानसभा में उम्मीदवारी के सवाल पर राजद के जिलाध्यक्ष सुरेश यादव ने हमसे बातचीत में अंतिम निर्णय लालू प्रसाद यादव के पास सुरक्षित रखने की बात कही.
हालांकि सीटिंग विधायक की दावेदारी को लेकर भी राजनीतिक हल्कों में चर्चा गरम है. भाजपा की ओर से कुमोद कुमार सिंह भी टिकट की दौड़ में लगे हैं. पटना में डेरा जमाए हैं कि उन्हें भी पार्टी एक बार मौका दे. एक और उम्मीदवार संजय सिंह हैं, लेकिन उनकी चर्चा जमीन पर अधिक नहीं दिखती. टिकट और दावेदारी के साथ ही संगठन के भीतर आपसी खींचतान के सवाल पर हमने ढाका संगठन जिला अध्यक्ष राजेश तिवारी से बात की. राजेश तिवारी ने हमसे बातचीत में कहा, ‘देखिए वैसे तो टिकट राष्ट्रीय नेतृत्व को तय करना है लेकिन वे यहां से भाजपा की जीत सुनिश्चित करेंगे. रही बात लाल बाबू गुप्ता के इलाका में विरोध की तो वे इस पर कुछ भी नहीं कहना चाहते’. भाजपा के ही एक और पदाधिकारी अपना नाम न उजागर करने की शर्त पर कहते हैं कि लाल बाबू गुप्ता की उम्मीदवारी संगठन के भीतर असंतोष पैदा करेगी. संगठन में फूट के साथ ही वोटों का भी बंटवारा होने की संभावना है.
इस सीट से जद (यू) की दावेदारी के सवाल को लेकर हमने जद (यू) जिलाध्यक्ष भुवन पटेल से बात की. साथ ही कभी इस इलाके से विधायक रहे अवनीश कुमार सिंह की वापसी पर भी सवाल किए. उन्होंने कहा, ‘अवनीश कुमार सिंह हमारे लिए सम्मानित नेता हैं और चिरैया सीट भाजपा के ही हिस्से में रहने वाली है.’
पूर्वी चंपारण में भाजपा मजबूत
गौरतलब है कि बीते कई चुनावों से इस जिले के अंतर्गत आने वाली अधिकांश विधानसभा और लोकसभा सीटों पर भाजपा का मजबूत प्रभाव दिखा है, लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था. कभी यह जिला कांग्रेसी और वामपंथी राजनीति के लिहाज से उर्वर जिला था. कभी इस जिले से कमला मिश्र मधुकर और पीतांबर सिंह ने वामपंथ का झंडा बुलंद किया. दोनों अलग-अलग समय में सांसद भी रहे लेकिन धीरे-धीरे वामपंथ का प्रभाव जाता रहा. फिलहाल कमला मिश्र मधुकर की बेटी जद (यू) के साथ हैं और केसरिया विधानसभा से टिकट की दावेदार हैं.
यहां हम आपको कुछ बातें और भी बताते चलें कि राजद को चिरैया विधानसभा पर कब्जा साल 2014 के उपचुनाव में मिला था और 2015 के चुनाव में वह कब्जा छूट गया. जबकि साल 2010 के चुनाव में भाजपा के अवनीश कुमार सिंह ने यहां से जीत हासिल की थी. अवनीश कुमार सिंह को जहां 39,459 वोट मिले थे, वहीं तब राजद प्रत्याशी रहे लक्ष्मी यादव को 24,631 वोट मिले थे. हार-जीत का फासला 14,828 वोटों का था.
मुद्दों और इलाके की समस्याओं पर बात
वैसे तो चुनावी फिजा के गर्माते ही मुद्दों और समस्याओं की बात कहीं पार्श्व में चली जाती है लेकिन फिर भी बात तो जरूरी है कि बात कहीं से तो उठे. मोतिहारी जिले में गंडक का प्रभाव खास तौर पर देखने को मिलता है. इस बार तो गंडक का तटबंध टूटने की वजह से मोतिहारी के कई हिस्सों में बाढ़ भी आई. धान की बुआई बह गई. जरूरतमंद किसानों को सब्सिडी नहीं मिल पा रही. बाढ़ प्रभावित लोगों को 6,000 रुपये देने की बात भी धरातल पर सही से लागू नहीं हो रही. कोरोना के संक्रमण और लॉकडाउन के बीच किसी-किसी तरह घर लौटे मजदूर फिर से वापस लौट रहे हैं. पढ़ाई-लिखाई के लिहाज से बात करें तो हायर एजुकेशन के लिए एक कायदे का कॉलेज तक इलाके में नहीं है. शिक्षण संस्थानों की खस्ता हालत की वजह से युवा वर्ग गैरकानूनी कामों में संलिप्त होकर अपना जीवन बर्बाद कर रहा है. देशी शराब और नेपाल से सटे इलाके से आने वाली शराब न जाने कितनों की जिंदगियां बर्बाद कर रही है, लेकिन अफसोस कि युवाओं का नशे की गिरफ्त के साथ ही बेरोजगार रहना कहीं कोई मुद्दा नहीं-
प्रत्याशियों की राजनीतिक यात्राओं पर एक नजर
कहते हैं कि राजनीति में कुछ भी निश्चित नहीं. दल या फिर विचारधारा को लेकर एकनिष्ठता जैसी चीजें धीरे-धीरे खत्म होने की कगार पर हैं. ऐन चुनाव के वक्त उम्मीदवार अपनी सुविधानुसार खूंटा बदलते रहते हैं. अब चिरैया विधानसभा से ही राजद की ओर से सबसे मजबूत उम्मीदवार लक्ष्मी यादव को ले लें. साल 1995 में उन्होंने अपना पहला चुनाव समाजवादी पार्टी के बैनर तले लड़ा था. साल 2000 के विधानसभा चुनाव में वे जद (यू) की ओर से दावेदार थे. हालांकि तब जद (यू) की अगुआई नीतीश कुमार के बजाय शरद यादव करते थे. नीतीश कुमार तब समता पार्टी के अगुआ थे. साल 2000 के चुनाव में लक्ष्मी यादव ने तब राजद के कद्दावर नेता व मंत्री लालबाबू यादव को शिकस्त दी थी. जीत और हार का फासला 21,031 वोटों का था. 2005 के चुनाव में लक्ष्मी यादव एक बार फिर से पार्टी बदलकर मैदान में थे. इस बार वे राजद के टिकट पर घोड़ासहन से उम्मीदवार थे. तब उन्होंने लोक जनशक्ति पार्टी के नेक मोहम्मद को 9,116 वोटों से हराया.
अब बात गर भाजपा की ओर से दावेदार (सीटिंग विधायक) लालबाबू गुप्ता की करें तो चुनावी राजनीति के लिहाज से वे नए हैं. वे साल 2010 में बसपा की ओर से उम्मीदवार थे. वोट भी कुछ खास नहीं मिला और वे चौथे नंबर पर रहे. 2010 में जीत भाजपा के अवनीश कुमार सिंह को मिली. हालांकि लोकसभा चुनाव (2014 आम चुनाव) का समय आते-आते वे भाजपा छोड़कर नीतीश के साथ हो लिए. साल 2014 में जद (यू) के टिकट पर शिवहर लोकसभा से प्रत्याशी भी रहे लेकिन सफलता नहीं मिली. कहा जाता है कि तब से ही उनकी राजनीति ट्रैक पर नहीं आ पा रही. वे इससे पहले चिरैया और बगल की सीट (ढाका विधानसभा) से भी चुनाव लड़ते रहे हैं.
धरातल पर किसकी है मजबूती?
वैसे तो टिकट देने का काम पार्टियां करती हैं लेकिन धरातल पर बनने-बिगड़ने वाले समीकरण और कार्यकर्ताओं का उत्साह ही चुनाव में काफी हद तक जीत और हार तय करता है. नेताओं ने घर-घर जाकर बैठकियां भी शुरू कर दी हैं. यहां मुकाबला भाजपा बनाम राजद का ही अधिक दिखाई देने की संभावना है. अवनीश कुमार सिंह के समर्थक भी उनके वापसी की उम्मीद के झंडे को बुलंद कर रहे हैं. हालांकि उसकी संभावनाएं कम ही दिखाई पड़ रही हैं. इलाके में भाजपा और आरएसएस की वैचारिकी से मेल खाने वाले कई संगठन इस बीच खड़े हुए हैं. नए-नए वोटर बने (15 से 25) साल के लड़कों पर भाजपा का रंग देखने को मिल रहा है. प्रधानमंत्री मोदी और उनकी कार्यशैली को लेकर बहसें देखने को मिल रही हैं, लेकिन लालबाबू गुप्ता की उम्मीदवारी और उनकी कार्यशैली से नाराजगी भी है. तिस पर से सत्ताविरोधी लहर का भी सामना भी उन्हें ही करना है.
राजद नेता लक्ष्मी यादव के साथ सकारात्मक बात कार्यकर्ताओं के साथ तालमेल है. सत्ता में न रहने की वजह से उनके पास सभी को एकजुट व संतुष्ट करने का पर्याप्त समय भी रहा. पूर्व मंत्री लालबाबू प्रसाद यादव के पुत्र और बीते बार बसपा से चुनाव लड़ चुके ओमप्रकाश यादव भी इलाके में घूम रहे हैं. देखने वाली बात यह होगी कि वे किस पार्टी के सिंबल पर चुनाव लड़ेंगे, क्योंकि वे बीता चुनाव बसपा के बैनर तले लड़े थे.
तो यह थी मोतिहारी के चिरैया विधानसभा (चिरैया 20) के मुद्दों और समीकरणों की कहानी. द बिहार मेल के लिए यह रिपोर्ट ‘कल्याण स्वरूप’ ने लिखी है. कल्याण पूर्व में ईटीवी भारत के साथ जुड़कर काम करते रहे हैं. फिलहाल मोतिहारी में रहते हैं. उम्मीद है कि आपको अच्छी लगी होगी…
1 Comment
आदर्श सिंह October 1, 2020 at 9:06 pm
कल्याण जी, संजय सिंह को टिकट मिलने की कितनी संभावना है? (मैं एक सेफ्फोलॉजिस्ट कि तौर पे जानना चाहता हूं)