अनाज भले ही गोदाम में सड़ता रहे लेकिन ‘जनता’ भूख से मरती रहेगी…

अनाज भले ही गोदाम में सड़ता रहे लेकिन ‘जनता’ भूख से मरती रहेगी…

कोरोना वायरस से बचाव के लिए देश भर में लॉकडाउन चल रहा है. लॉक डाउन का सबसे ज्यादा असर करोड़ों मजदूर, गरीब, बेसहारा लोगों पर हुआ है. दिहाड़ी मजदूरी या बेहद कम वेतन पर असंगठित क्षेत्र में काम करनेवाले करोड़ों लोग एक झटके में बेरोजगार हो गए हैं.

उनके वेतन और मजदूरी का हर्जाना देने वाला कोई नहीं है. सरकार जो 1000 रूपये की सहायता राशि दे रही है उसे पाना ना सिर्फ पेचीदा है बल्कि वो बेहद कम भी है. लॉकडाउन की अनिश्चितता, रोजगार का संकट और भूख की चिंता से मजबूर होकर बिहार एवं उत्तर प्रदेश के हजारों लोग राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली से पैदल ही अपने घर की ओर निकल पड़े. भीड़ का सैलाब देखकर सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रियाएँ फूट पड़ीं. तरहतरह की बातें की जाने लगीं. लेकिन सूरत में जो फँसे रह गए वो लोग 10 अप्रैल को भूख से मजबूर होकर सड़कों पर उतर गए.

दिल्ली में आनंद विहार की भीड़ देखकर जो लोग तरहतरह की बातें कर रहे थे, इस खबर पर उनमें से अधिकतर लोग चुप ही रहे. भूख की मार किसी से कुछ भी करवा सकती है. 10 अप्रैल को बांका जिले में 12 वर्षीय एक बच्चे की मौत हो गयी. परिवार का कहना है कि इलाज ना मिलने और भूख से मौत हुई है. 26 मार्च को आरा में एक मुसहर बच्चे की मौत हो गयी. वहाँ भी भूख ही वजह थी.

भारत में करोड़ों लोग असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं. 4 जुलाई 2019 को जारी 2018- 2019 के आर्थिक सर्वेक्षण के हिसाब से देश में कुल कार्य बल का लगभग 93% असंगठित क्षेत्र में काम करता है. सरकार भले ही नियोक्ताओं से अपील कर रही हो कि लॉकडाउन में किसी कर्मचारी का वेतन ना काटें, लेकिन आप भी समझ सकते हैं कि करोड़ों लोगों के वेतन कटेंगे. एक बड़ा हिस्सा छोटेमोटे कामों से जुड़ा है जहाँ ना कोई अनुबंध होता है और ना कोई रिकॉर्ड. इसके अलावा दैनिक मजदूरी, छोटेमोटे स्वरोजगार पर निर्भर लोगों की संख्या भी करोड़ों में है. ऐसे तमाम लोगों पर ये महामारी एक आफत लेकर आई है. बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे गरीब राज्यों की एक बड़ी आबादी अप्रवासी मजदूर के रूप में दूसरे राज्यों में काम करती है. उनके खानेपीने का संकट एक बड़ी चुनौती है. कई राज्य सरकारें सहायता राशि भी दे रही हैं. केंद्र सरकार ने भी कई प्रावधान किए हैं लेकिन वोऊँट के मुँह में जीराबराबर हैं.

केंद्र सरकार ने जबगरीब कल्याण अन्न योजनाके तहत राशन कार्डधारियों को प्रति यूनिट 5 किलो चावल मुफ्त देने की घोषणा की तो गरीबों को एक राहत नजर आयी. लेकिन सरकार ये भूल गयी कि बहुत से लोग बिना राशन कार्ड के हैं या अप्रवासी मजदूर के रूप में काम करते हैं.हालाँकि बहुत से जगहों पर सरकारें कम्युनिटी किचन चला रही हैं लेकिन वो पर्याप्त नहीं है.

बहुत से स्वयंसेवी संगठन, गैरसरकारी संगठन या व्यक्तिगत स्तर पर भी राशन वितरण का काम हो रहा है. चूँकि ऐसे गरीब लोगों की संख्या काफी ज्यादा है इसलिए ये सारे प्रयास पर्याप्त नहीं प्रतीत हो रहे हैं.

देश के अन्न भंडार में 1 मार्च 2020 के आंकड़ों के हिसाब से 80 मिलियन (आठ करोड़) टन अनाज उपलब्ध है. अभी रबी की फसल खरीद के बाद यह और बढ़ जाएगा. ऐसे में देश के अन्न भंडारों का इस्तेमाल भूखे गरीबों के लिए खोल देना चाहिए. इस समय इसकी सख्त जरूरत है. अनाज गोदाम में पड़ा रहे, सड़ता रहे, चूहे खाकर नष्ट करते रहें तो उससे क्या फायदा? वो अनाज एक गरीब को भूख से बचा सकता है. आप हर साल ऐसी खबरें देखतेपढ़ते होंगे कि इतना अनाज यहाँ सड़ गया, बर्बाद हो गया.

अन्न के भरपूर भंडार में से एक हिस्सा जरूर निकाला जा सकता है सरकार अगर चाहे तो.

मशहूर अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज और NAPM के सदस्यों ने बिहार के मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखकर ये मांग कि है कि बिहार सरकार केंद्र सरकार से अतिरिक्त मुफ्त अनाज की माँग करें और उसका वितरण करें. उन्होंने अपने पत्र में एक अनुमान लगाकर ये भी बताया है कि लगभग 2 मिलियन टन अतिरिक्त अनाज मिल जाने से जन वितरण प्रणाली से छूटे हुए ग्रामीण और शहरी लोगों को भी अनाज मिल जाएगा.

इस पत्र में उन्होंने मुख्यमंत्री को यह ध्यान दिलाया कि अभी जन वितरण प्रणाली में लगभग 84% लोग कवर हो रहे हैं जो कि वर्तमान समय में 70% के आसपास होगा क्योंकि 2011 से अब तक आबादी में काफी बढ़ोतरी हो चुकी है. अगर छूटे हुए 30% का एक तिहाई हिस्सा यानी 10% लोग भी भूख की समस्या से जूझ रहे होंगे तो 2019 के अनुमानित आबादी के हिसाब से यह लगभग 13 मिलियन लोग होंगे. ऐसे में इन्हें बिना मदद के नहीं छोड़ा जा सकता. अब देखना है कि बिहार के मुख्यमंत्री इस पत्र को कितनी गंभीरता से लेते हैं.

उधर सोनिया गाँधी ने भी प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर सुझाव दिया है किखाद्य सुरक्षा कानून के अंतर्गत आने वाले सभी राशन कार्डधारियों को 3 महीने तक प्रति माह 10 किलो अतिरिक्त राशन दिया जाये. साथ ही जिन लोगों के पास राशन कार्ड नहीं है उन्हें भी अगले 6 महीने तक प्रति माह 10 किलो राशन उपलब्ध कराया जाये.

फिलहाल, बिहार में इस महीने का राशन वितरण शुरू हो गया है. जिन डीलरों ने गोदाम से राशन उठाव कर लिया है वो बाँटने लगे हैं. जिन्होंने अभी उठाव नहीं किया है वो भी जल्द ही उठाव कर बाँटने लगेंगे. बहुत से डीलरों ने नियमित कोटा वाला राशन उठा लिया है लेकिन उन्हें मुफ्त वाला चावल अभी नहीं मिला है इसलिए वो बाँटने का काम अभी नहीं कर रहे हैं. कई जगहों पर इस बार राशन वितरण के समय PDS दुकान पर सहायक शिक्षकों को या आंगनबाड़ी सेविका की ड्यूटी निगरानी के लिए लगायी गयी है. इस बात पर एक बुजुर्ग आदमी ने चुटकी लेते हुए कहा किचोर का गवाह गिरहकट.

उनका इशारा शिक्षकों और आंगनबाड़ी सेविकाओं की तरफ था.शिक्षकों द्वारा मध्याहन भोजन योजना और आंगनबाड़ी सेविकाओं द्वारा पोषाहार में गड़बड़ी की शिकायतें आती रहती हैं. ऐसे में ये लोग क्या निगरानी करेंगे डीलर की.

सरकार ने मुफ्त में दाल देने की भी घोषणा की थी लेकिन बिहार सरकार दाल की खरीद समय पर नहीं कर पाई है. इसलिए इस महीने का राशन पूर्व की तरह ही बँट रहा है जिसमें मूल्य भी देना है. नया बस ये है कि प्रति यूनिट 5 किलो चावल मुफ्त में दिया जा रहा है. साथ में प्रति कार्ड 1000 रूपये भी खाते में ट्रांसफर किया जा रहा है.

(पटना जिला प्रशासन द्वारा जारी विज्ञापन)

सरकार भले ही दावा कर रही हो कि किसी को भूखा नहीं सोने देंगे लेकिन बिना राशन कार्ड वालों के लिए या अप्रवासी लोगों के लिए कोई आवंटन नहीं हुआ है.

बिहार में बहुत से लोगों का राशन कार्ड नहीं है. कई सालों से अपडेट भी नहीं हुआ है. 2-3 सालों से नया राशन कार्ड बनाने का काम भी बहुत से जिलों में लंबित रहा है. कुछ महीने पहले एक खबर आई थी कि जिनजिन अनुमंडलों में नया राशन कार्ड का आवेदन लंबित है वहाँ के SDO पर अनुशासनात्मक कार्रवाई होगी. कार्रवाई की कोई सूचना तो नहीं मिली लेकिन लंबित नए कार्ड अभी भी पूरे नहीं बँटे हैं. बिहार सरकार के खाद्य आपूर्ति विभाग के एक मार्केटिंग ऑफिसर ने नाम ना लिखने की शर्त पर बताया किबिना राशन कार्ड वाले बहुत परेशान हैं. बहुत से लोगों के नाम भी कट गए हैं. सरकार घोषणा कर देती है, अखबार में छप जाता है और लोग हमें फोन करने लगते हैं. अब जब अतिरिक्त आवंटन हुआ ही नहीं है तो हम कहाँ से राशन उपलब्ध करवाएँ. दाल की घोषणा हो गयी और दाल आया ही नहीं. अभी मध्य प्रदेश से मंगाया जा रहा है. अगले महीने तक आ गया तो बँटेगा.

कोरोना अपने साथ कई तरह के संकट लेकर आया है. अर्थव्यवस्था से लेकर समाज तक बुरी तरह प्रभावित हो रहा है. सरकार को उदारता से पेश आने की जरूरत है. आम आदमी की परेशानी समझकर अगर उपाय हों तो भविष्य में चुनौतियाँ कुछ कम होंगी.

यहां रिपोर्ट हमें पुनीत पुष्कर ने लिखकर भेजी है. पुनीत दिल्ली विश्वविद्यालय के ग्रेजुएट हैं. स्वतंत्र शोधार्थी हैं. यहां व्यक्त विचार उनके अपने हैं और इससे ‘द बिहार मेल’ की सहमति आवश्यक नहीं है…