वित्त मंत्री के पिटारे में लॉकडाउन और प्रकृति की दोहरी मार खा रहे किसानों के लिए क्या?

वित्त मंत्री के पिटारे में लॉकडाउन और प्रकृति की दोहरी मार खा रहे किसानों के लिए क्या?

जब प्रशासन ने कहा कि मंडी खुल गई है तो एक 1 महीने से लॉकडाउन खुलने के इन्तजार में बैठे सुमेर सिंह की आस जगी, पर यह ख़ुशी ज्यादा देर की नहीं थी। जब मंडी में 20 क्विंटल नेनुआ का भाव 2 रूपये लगा कर व्यापारी ने उन्हें 4000 रुपये थमाये तो उनके होश उड़ गए।

‘‘ तीन महीने की मेहनत में मिला क्या? 50 हजार तक का नुकसान ऊपर से हो गया है। ऐसी उपज का क्या फायदा? इससे अच्छा होता कहीं मजदूरी कर लेता? अगर खुद से ना करे तो इससे ज्यादा तो आर बनाने वाले को देना पड़ेगा (आर बोले तो खेत को खेती लायक और पटवन करने के लिए की गई मेड़बंदी)। सच पूछिये तो इस देश में अगर कोई सम्मान का भूखा है तो वो किसान ही है। सरकार ने इस देश के तमाम उद्योगों पर ताला लगा दिया है पर हमारा क्या? सरकार उद्योगपतियों की ही भाषा समझती है, साहब हमारा उद्योग बंद तो नहीं हो सकता पर बर्बाद ज़रूर हो रहा है।,’’

ये शब्द सरकार से नाराजगी जताते हुए बक्सर ज़िले के किसान सुमेर सिंह के हैं। ये सब कुछ ठीक उसी समय में हो रहा है जब अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए पीएम मोदी ने पहले 20 लाख करोड़ के विशेष पैकेज की घोषणा की और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कृषि के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए 1 लाख करोड़ रुपये की बात कही है।

किसान लड़ रहा दोहरी लड़ाई
आज
जब पूरा देश कोरोना संक्रमण से जूझ रहा है। सभी लोग अपनीअपनी लड़ाइयां लड़ रहे हैं, वही एक किसान दोहरी लड़ाइयां लड़ रहा है। अव्वल तो खेत और खेती बचाने की जद्दोजहद और दूजा फसल काट लेने के बाद भी उचित मूल्य के लिए दर दर भटकना। इस बात को जरा और सिलसिलेवार ढंग से समझाने के लिए मैं आपको बिहार प्रदेश के शाहाबाद क्षेत्र की व्यथा सुनाता हूं। वैसे तो शाहाबाद को खेती-किसानी के लिहाज से अपेक्षाकृत बेहतर कहा जा सकता है। यहां किसानों को भी दो वर्गों में बांटा जा सकता है। सबका अपना अलहदा संघर्ष है। अधिकांश किसान धान और गेहूं उगाते हैं। दूसरे वो किसान जो मुख्यतः मालगुजारी पर खेत लेकर सब्जी या फल उगाते हैं। इन दोनों तरह के किसानों पर जलवायु परिवर्तन के साथ साथ लॉकडाउन की भारी मार पड़ी है।

लॉकडाउन की वजह से इस साल खेती में हो रही परेशानी पर बक्सर जिले के किसान अनिल सिंह कहते हैं, “मार्च से लेकर जब तक अनाज बेचा नहीं गया तब तक ऐसा लग रहा था कि महीनों की मेहनत रातों रात ख़त्म ना हो जाए। लॉकडाउन की वजह से पहलेपहल कटा में देरी हुई। फिर देर सवेर जब इजाज़त दी भी गई तो छोटे किसानों ने अपनी कटाई तो कर ली पर बड़े किसानों के हार्वेस्टर चालकों को परेशानी का सामना करना पड़ा।”

 वे आगे कहते हैं, “फसल का खेत में रहना परेशानी का सबब बनता गया। नुकसान बढ़ता गया। लॉकडाउन और हर रोज बदल रहा मौसम अब तक तबाह कर रहा है। पहले तो बड़ी मुश्किल से कटाई हुई और फिर खलिहान में आया बोझे को भी कई बार बारिश की मार झेलनी पड़ी। वो तो अच्छा है कि उन्हें रोज की तरह सब्जी बाजार में लेकर नहीं जाना नहीं तो वे तो बर्बाद हो जाते।”

गेंहू की कटाई करता एक खेतिहर…

यहां हम आपको यह भी बताते चलें कि प्रदेश की राजधानी से सटे होने की वजह से बक्सर और आरा जैसे जिले हरी सब्जी राजधानी की मंडियों तक में भेजते हैं। सब्जी के साथ ही इस इलाके का आम पूरे देश में जाता है, लेकिन लॉकडाउन की वजह से किसानों के सामने भारी तबाही आसन्न है। रोज बाजार तक पहुंचने वाली सब्जियां खराब हो रही हैं। सब्जियों की खराबी के संदर्भ में जिले कि बड़े सब्जी उत्पादक राज सिंह कहते हैं, “आज-कल तो कोरोना के साथ-साथ मौसम की भी मार पड़ रही है। ओलावृष्टि और अंधड़ से हो रहे नुकसान का अंदाजा लगा पाना भी मुश्किल है। लॉकडाउन में वे कहीं-कहीं से ऑर्डर पा भी रहे हैं तो प्रशासन साथ नहीं दे रहा। रेड ज़ोन होने की वजह से पूरी आपूर्ति श्रृंखला तबाह हो गई है। लोकल खपत ना के बराबर है।”

 इस बीच पल-पल बदल रहे मौसम पर वे कहते हैं, “मौसम की बात की जाये तो हवाओं ने अपना एक ट्रेंड बना लिया है कि जब भी हवा पुरवा से पछुआ बहने लगती है वैसे ही बारिश हो जा रही है, बारिश को सब्जी के किसान तो झेल लें पर असमय ओला और आंधी तो एक किसान पर गोली चलने जैसा है।’’

छोटे किसानों की क्या है हालत?
लॉकडाउन की मार बड़े किसान तो फिर भी किसी तरह सह लें लेकिन छोटे किसानों की कौन पूछे? जिनका पूरा परिवार ही इस काम में लगा रहता है, जो किसी से खेत मालगुजारी पर लेकर खेती कर रहे होते हैं। डुमरांव के रहने वाले और डेढ़ बीघे में सब्जी की खेती कर रहे रमेश पासवान से जब हमने पूछा कि कैसा चल रहा है, तो वे ही पलट कर सवाल पूछने लगे कि उनका
 कुछ हो पायेगा या नहीं? वे तो अपने पैसे के साथ ही अपना शरीर भी खर्च कर रहे हैं। वे आगे कहते हैं कि एक बीघे में बोई गई लौकी और  10 कट्ठे में बोए गए नेनुअे का कोई लेवनिहार नहीं दिख रहा। उन्हें तो ऐसा लग रहा जैसे किसी ने उनके हांथ-पांव बांध कर धूप में छोड़ दिया हो। शरीर जल भी रहा है और कुछ कर भी नहीं पा रहे हैं।

लौकी और नेनुअे की सब्जी को लेकर रमेश कहते हैं, लौकी ऐसी सब्जी है जिसे हर 1 दिन के अंतराल पर तोड़ना होता है और हर तुड़ाई में लगभग 1000 पीस मिल जाते हैं। अगर मंडी में बेचा जाता तो एक सैकड़ा पर 3200 से 3500 की कमाई होती। कुल मिला कर पूरे सीजन में 1 लाख से ऊपर की कमाई होती थी। इन दिनों जानवरों को खिलाना पड़ रहा है। वे चाहते हैं कि मालगुजारी का पैसा निकल जाए।

लौकी के खेत, मालगुजारी पर भी आफत

बक्सर जिले के ही एक और किसान गोरा महतो ने बोदी की खेती की है। पांच बीघे में बोदी की खेती करने वाले गोरा महतो कहते हैं कि उन्होंने इस खेती में 30 हजार से ऊपर रुपये लगा दिए। पहले वे सब्जी अलग-अलग होटल वालों को सीधे बेच दिया करते थे या लगन के दिनों में भी आराम से सब्जियां अच्छे दाम पर बिक जाती थीं पर आज औनेपौने दाम पर सब्जियों का दान ही देना पड़ रहा है। नौबत तो ऐसी आ गई है कि बीघे पर 15 हजार की मालगुजारी भी मुश्किल से निकलेगी। बड़े व्यापारी कभी खेत से ले भी जाते हैं तो 3 रूपए से ऊपर कोई बात ही नहीं करता।

आम के कारोबार पर भी है असर
गौरतलब है कि बक्सर जिले की एक बड़ी पहचान आम की वजह से भी है। यहां का चौसा आम दूर-दूर तक जाता है, लेकिन लॉकडाउन और प्रकृति की मार वह भी सह रहा  है। रह-रह कर आने वाले अंधड़ ने आम को भी खासा नुकसान पहुंचाया है। इस संदर्भ में बक्सर राजघराने के शिवांग विजय सिंह हमसे बातचीत में कहते हैं, “बौर लगते ही ओला और बारिश ने परेशान किया और तिस पर से लॉकडाउन। पहले अंधड़ में टूटने वाले टिकोले बाजार में बिक जाया करते थे, लेकिन इन दिनों बाजार बंद है।” हालांकि वे उम्मीद करते हैं कि इस बार उपभोक्ता को बस एक ही फायदा होगा कि प्राकृतिक तरीके से पके हुए आम ज्यादा मात्रा में मिलेंगे क्योंकि इस बार जबरदस्ती पकाने की होड़ नहीं है।

 

आम के बाग

लॉकडाउन के नुकसान पर क्या कहते हैं कृषि पदाधिकारी?
लॉकडाउन
से खेती-किसानी की तबाही और उससे निपटने हेतु सरकार की तैयारियों पर कृषि पदाधिकारी कृष्णानंद चक्रवर्ती कहते हैं,”वे इस कोशिश में हैं कि सभी किसानों के लिये बाजार समिति में एक निश्चित स्थान तय कर दिया जाए।हां सभी थोक किसानों को बेचने का और खुदरा विक्रेता को खरीदने का मौक़ा मिले ताकि किसानों के फलसब्जी की सम्पूर्ण खपत हो जाए। वे किसानों की समस्या से पूरी तरह वाकिफ हैं। इसके सम्बन्ध में कुछ दिनों के अन्दर आदेश भी जारी कर दिया जायेगा|

अंत में हम आपको बताते चलें कि मार्च के अंतिम सप्ताह में कोरोना की वजह से लगाए गए लॉकडाउन को धीरे-धीरे दो माह होने जा रहे हैं। देश की अर्थव्यवस्था लगभग ठहर सी गई है। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने इस बीच 20 लाख करोड़ के विशेष पैकेज का ऐलान किया। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मीडिया से रूबरू होते हुए कृषि के लिहाज से भी विशेष पैकेज का ऐलान किया। इसे यदि जरा तोड़कर लिखें तो कृषि के बुनियादी ढांचे के लिए एक लाख करोड़ का ऐलान किया गया है। वित्त मंत्री ने कहा कि देश में कृषि उत्पादों के लिए भंडारण की उचित व्यवस्था नहीं है। उचित भंडारण न होने की वजह से अनाज को काफी नुकसान पहुंचता है। ऑपरेशन ग्रीन का विस्तार टमाटर, प्याज और आलू के अलावा बाकी सभी फल और सब्जियों के लिए भी किया जाएगा। इसके लिए 500 करोड़ की घोषणा की गई है। फिलहाल इसे पायलट प्रोजेक्ट के रूप में छह महीने के लिए लागू किया जाएगा। हर्बल खेती के लिए भी चार हजार करोड़ रुपये का ऐलान किया गया है। उम्मीद करते हैं कि ये तमाम ऐलान और इनका फायदा छोटे खेतिहर-किसानों तक भी पहुंचेगा।

यह रिपोर्ट रजत परमार ने लिखी है. रजत भारतीय जन संचार संस्थान (नई दिल्ली) के छात्र होने के साथ ही स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता करते हैं.