लॉकडाउन डायरी नीदरलैंड से – पापा! आउटसाइड इज़ कोरोना…

लॉकडाउन डायरी नीदरलैंड से – पापा! आउटसाइड इज़ कोरोना…

लगभग डेढ़ साल बीत गए हैं नीदरलैंड आये. हाँ, वही नीदरलैंड. फिलिप्स रेडियो वाला. फिलिप्स यहीं की कंपनी है और आज कल अपना बसेरा भी इधर ही है, इंडोवेन शहर में. नीदरलैंड को हॉलैंड के नाम से भी जाना जाता है. काफी उम्मीदें लेके आये थे यहाँ, उम्मीदें अभी भी हैं लेकिन आज-कल के हालात उम्मीद को कमजोर कर रहे हैं. बता दें कि नीदरलैंड यूरोप के उन नामी गिरामी देशों में से एक हैं जिनका हेल्थ केयर सिस्टम हमेशा से अव्वल रहा है, लेकिन कहा जाता है न कि समय सबकी परीक्षा अपनी शर्तों पर लेता है. यहाँ इस बीच कोरोना के लगभग 1000 केस रोजाना बढ़ रहे हैं. हालात कुछ यूं हो गए हैं कि कुछ मरीजों को जर्मनी भेजा जा रहा है. जर्मनी यहां का पड़ोसी देश है. ऐसा नहीं है कि यहाँ ICU के भीतर बेड कम हैं लेकिन जिस हिसाब से संख्या बढ़ रही है ऐसा लगता है कहीं कम न पड़ जाएं. अब जब विकसित कहे जाने वाले देशों का ये हाल है तो ऐसे में अपने देश की चिंता होने लगती है.

नीदरलैंड और नीरसता…

विदेश में रहने पर सबसे प्यारा दोस्त के तौर पर है व्हाट्सऐप्प. फ्री में वीडियो कॉल हो जाते हैं. ऐसा लगता है कि सभी अपने पास ही तो हैं. रोजाना घर पर बात हो जाती है. पापा-मम्मी घर से पीड़ितों की संख्या बताते हैं और हम यहाँ से. मानो होड़ सी लगी है 😉 भारत में तो टोटल ‘लॉकडाउन’ है लेकिन पापा बताते हैं कि दिन में एक से दो घंटे की छूट मिल जाती है. मार्केट में मानो मेला सा लग जाता है. वो कहते हैं न दिन भर कमाया और रात को गवांया. कुछ-कुछ वैसा ही. अपने देश को अभी भी बहुत एहतियात बरतने की ज़रुरत है, लेकिन भारत तो भारत ठहरा. अगर इतिहास में पहली बार ट्रेनें और बसें बंद हुई हैं तो इसके कुछ तो जरूर मायने होंगे.

खैर, मैं नीदरलैंड की कहता हूं. कोरोना के फैलाव के बावजूद नीदरलैंड में पूर्ण ‘लॉकडाउन’ नहीं है. यहां सरकार “हर्ड इम्यूनिटी (Herd Immunity)” बढ़ाने की बात कह रही. इस शब्द के मायने के लिए गूगल बाबा का सहारा लें. कुल मिला के इनका मानना है कि अगर युवाओं में ये बीमारी होती है तो वो अपने घर में ही रहें. वायरस का असर अपना कोर्स पूरा करने के बाद समाप्त हो जायेगा. पैरासीटामोल खाते रहें. इससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी. उम्मीद है कि हमारी इम्यूनिटी भी इनके पैमाने पर खरी उतरे. बाहर जा सकते हैं लेकिन दो लोगों के बीच में लगभग 1.5 मीटर की दूरी होनी चाहिए. पुलिस ने यदि उल्लंघन करते पकड़ा तो तगड़ा फाइन है. भारत के लिहाज से कैल्क्यूलेट करूं तो करीब 50 हज़ार रुपया. फिर भी यहां कुछ लोग सारे दिशा-निर्देशों को धता बताते दिख जाते हैं. दुकानों और पब्लिक स्पेस में सभी एक-दूसरे को शक की नज़रों से देख रहे हैं. जैसे सभी ने एक-दूसरे की जेब काटी हो. हालांकि इस बीच एक अच्छी बात यह हुई है कि अपने देश का नमस्ते यहां तेजी से चलन में आया है. अपन आईटी वाले हैं और घर से ही काम जारी है .वर्क फ्रॉम होम. हमारे बीच इधर एक मैसेज काफी चला है कि “IT वालों की हालत उस बैंड वालों की तरह है जो कि टाइटैनिक जहाज डूबने के वक्त भी बैंड बजा रहे थे ” ;).

लॉकडाउन के काम (वाया- अपाला)

इन तमाम झंझावातों के बीच सबसे अच्छी बात यह हुई है कि परिवार के साथ क्वालिटी टाइम बीत रहा है. मेरी बिटिया गुल्लू तीन साल की हो गई है, लेकिन मुझे इस बीच पता चला कि वो अपने आप से ही यू ट्यूब वीडियो चला लेती है. बार बार बोलती है “पापा! लेट्स गो आउटसाइड”. ऐसे में सोचता हूं कि हमें तो हालात के बारे में पता है इसे कैसे बताएं? फिर हमने भी उसको सिखा दिया “बेटा! आउटसाइड इज़ कोरोना”. फिर क्या हमें भी बाहर जाते देखते ही बोल पड़ती है “पापा! आउटसाइड इज़ कोरोना “. आप लोग भी अंदर ही रहें . स्वस्थ रहें मस्त रहें. फिर मुलाकात होगी.

अनुराग IT वाले…

यह लॉकडाउन डायरी हमें अनुराग तिवारी ने लिखकर भेजा है. अनुराग इन दिनों ‘नीदरलैंड’ में रहकर एक आईटी फर्म के साथ काम करते हैं…