बिहार के भीतर विधानसभा चुनाव की बिसातें बिछने लगी हैं. राज्यसभा में अलग-अलग पार्टियों और प्रत्याशियों को भी कुछ ऐसे ही देखा जा रहा है. चाहे वे प्रत्याशी भाजपा के हों या फिर जद (यू) और राजद के हों. जद (यू) ने जहां इस मामले में पुराने नामों को ही दुहराया है. वहीं भाजपा ने खुद से असंतुष्ट हो रहे वोटबैंक को साधने की कोशिश की है. चौंकाने वाला निर्णय राजद ने लिया है, और वो नाम A.D. Singh पूरा नाम अमरेंद्र धारी सिंह का है. तो चलिए इन पांचों प्रत्याशियों के बारे में आपको जरा तसल्ली से कुछ बताते हैं.
हरिवंश नारायण सिंह
संख्या बल के आधार पर जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के दो उम्मीदवारों के नाम की घोषणा करनी थी. जदयू ने राज्यसभा के उपसभापति रह चुके हरिवंश सिंह को दुहराया है. 30 जून 1956 को जन्मे हरिवंश ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से पढ़ाई की है. राजनीति में आने से पहले वे पत्रकार और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के अतिरिक्त मीडिया सलाहकार रहे हैं. प्रभात ख़बर के संपादक के तौर पर उन्हें जनसरोकार और जल-जंगल और जमीन के मुद्दों और नवोदित पत्रकारों को रिपोर्टिंग के मौके देने की वजह से भी जाना जाता है. इन्होंने इस बीच पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर पर एक किताब भी लिखी है. इस किताब का नाम Chandra Shekhar – The Last Icon of Ideological Politics है. इस किताब के Co-Author Ravi Dutt Bajpai हैं. इस किताब का विमोचन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था.
रामनाथ ठाकुर
नीतीश कुमार की पारंपरिक राजनीति के लिहाज से रामनाथ ठाकुर चिर परिचित नाम हैं. समस्तीपुर जिले के कर्पूरी गाँव के रहने वाले रामनाथ ठाकुर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के बेटे हैं. खुद को कर्पूरी ठाकुर की राजनीति और परिपाटी का वाहक कहने वाले नीतीश कुमार ने रामनाथ ठाकुर के नाम को आगे बढ़ाकर उसी राजनीति और वोटबैंक को साधने की कोशिश की है. रामनाथ ठाकुर बिहार सरकार के सूचना और जनसंपर्क मंत्री भी रह चुके हैं.
विवेक ठाकुर
विवेक ठाकुर बिहार और देश की राजनीति के लिए भले ही बहुत चर्चित नाम न हों लेकिन सत्ता के गलियारों से उनका रिश्ता पुराना है. विवेक पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. सीपी ठाकुर के बेटे हैं. सीपी ठाकुर भाजपा के वरिष्ठ नेता है. फिलहाल राज्यसभा के सदस्य भी हैं. इस साल इनका कार्यकाल समाप्त होना है. विवेक को सीपी ठाकुर के रिप्लेसमेंट के तौर पर ही देखा जा रहा है.
विवेक ठाकुर की स्कूली शिक्षा संत माइकल से हुई है और दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज से स्नातक के बाद विदेश व्यापार में एमबीए और लॉ की डिग्री ली है. विवेक ठाकुर भले ही खुद को भाजपा का पुराना कार्यकर्ता बताते हैं लेकिन यह किसी से छिपा नहीं है कि विवेक के बहाने भाजपा ने खुद से नाराज चल रहे जाति विशेष के वोटबैंक को साधने की कोशिश की है. विवेक साल 2015 में बिहार के ब्रह्मपुर विधानसभा सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव भी लड़ चुके हैं, हालांकि उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. वे 2014 में थोड़े समय के लिए बिहार विधानसभा परिषद के सदस्य भी रहे हैं.
बता अगर राजद की करें तो राजद ने अपने दो उम्मीदवारों के तौर पर प्रेमचंद गुप्ता और अमरेंद्र धारी सिंह को मैदान में उतारा है.
प्रेमचंद गुप्ता
राजद ने प्रेमचंद गुप्ता को दोबारा राज्यसभा भेजने का फ़ैसला लिया है. वो वर्तमान में बिहार से राज्यसभा के सदस्य हैं और इनकी गिनती लालू प्रसाद यादव के बेहद करीबी नेताओं में होती है. वो कांग्रेस सरकार के पहले कार्यकाल में कंपनी मामलों के कैबिनेट मंत्री का पदभार संभाल चुके हैं. 70 वर्षीय प्रेमचंद गुप्ता हरियाणा के भिवानी से ताल्लुक़ रखते हैं. इन्होंने हरियाणा के ही कॉलेज से बीए की पढ़ाई की है. राजनीति में आने से पहले प्रेमचंद गुप्ता हांगकांग में रहते थे और भारत के लिए घड़ी बनाने वाली कंपनी इंडो-स्विस टाइम के प्रमोटर थे. प्रेमचंद गुप्ता और उनकी पत्नी अरबों की संपत्ति के मालिक हैं. राजनीति में आने के बाद इनका नाम कोल घोटाला मामले से जुड़ा. इसके अलावा आय से अधिक संपत्ति के मामले इनके ख़िलाफ़ ईडी ने दो मामले दर्ज किए हैं, जिसकी सुनवाई की प्रक्रिया दिल्ली की स्थानीय अदालत में चल रही है. हालाँकि किसी मामले में अभी तक इन्हें दोषी नहीं ठहराया गया है.
अमरेंद्र धारी सिंह
राजद के दूसरे उम्मीदवार अमरेंद्र धारी सिंह की बात करें तो ये इस बार का सुर्खियों में और चौंकाने वाला नाम इनका ही है. आख़िरी समय में इनकी एंट्री भी बिना किसी शोरगुल के कराई गई. इनके नाम की घोषणा करते वक़्त पार्टी की तरफ़ से 60 वर्षीय अमरेंद्र का परिचय समाजसेवी के रूप में कराया गया. अमरेंद्र मूल रूप से पटना ज़िले के दुल्हन बाजार के पास स्थित एनखां गांव के निवासी हैं. पटना के संत माइकल से 1976 में स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद दिल्ली का रूख करने वाले अमरेंद्र ने दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज से बीए ऑनर्स किया है.
पेशे से व्यवसायी अमरेंद्र धारी सिंह का नाम तब और सुर्खियों में आया जब बिहार पुलिस के पूर्व डीजीपी अभयानंद ने इनके वित्तीय सहयोग से चलाए जा रहे “Abhayanand 30” से खुद को अलग कर लिया. हालांकि नामांकन पूर्व मीडिया से रूबरू होते हुए इन्होंने कहा कि, मैं राजनीति में नया नहीं हूं. मेरे परिवार के लोग पांच बार सांसद रह चुके हैं. इस तरह से राजनीति मेरे लिए नई चीज नहीं है, मैंने घर में राजनीतिक माहौल देखा है, मैं राजनीति समझता हूं.