‘भगत सिंह अपणी कहानी कदे नहीं बदल सकदा’
ये बात गुरदास मान के गाने ‘पंजाब‘ में भगत सिंह का कैरेक्टर बोलता है. सच में… अगर भगत सिंह आज होता तो क्या ही होता? शायद रोता मेरे मरते हुए पंजाबी दोस्तों को देख, गुरूद्वारे में निकलती तलवारों को देख, वाघा बोर्डर को देख, पार्टिशन को देख, कनाडा जाते लोगों को देख, फसल से मुख मोड़ते सरदार के बच्चे को देख. वह क्या सोचता. यही कहता कि अच्छा हुआ यारों… शहीद हो गया.
मान साहब के बेटे का नाम गुरिक मान है. उसी ने ‘पंजाब‘ गाने को डायरेक्टर किया है. इतना ही नहीं, गुरिक ने बादशाह के पहले एलबम ‘वन‘ का गाना ‘हार्टलैस‘ भी डायरेक्ट किया है. ‘पंजाब‘ गाने का संगीत जतिंद्र शाह ने दिया है. वो पंजाब के ऐसे संगीतकार है जिन्होंने ‘कि बनू दुनिया दा‘ जैसे गाने को फिर से पेश किया.
इस गाने को पृष्ठभूमि में रखते हुए हम आपको पंजाब की चंद छोटी-छोटी कहानियां बता रहे हैं. जो पंजाब की मौजूदा स्थिति और उस संकट को बयां करता है जो पलायन, बेरोजगारी, कृषि संकट, मंहगाई और नशे की लत से पैदा हुआ है.
कमाई बढ़ाओ सरदार जी
ज्ञान का दादा अपने घर के लिए बिना स्प्रे वाली फसल उगाता था. आड़ती ने कहा–सरदार जी कब तक एक ही कुर्ते पयजामे में जिंदगी निकालागे… पैदावार बढाओ. स्प्रे डाली जानी लगी. ज्ञान के दादे की कमर टूट गई. ज्ञान के पिता के सपने बड़े थे. भैंसों को भी टीके लगाए दूध बढाओ सरदार जी. पर ये बढ़ाने–बढ़ाने के चक्कर में ‘रंगला पंजाब‘ कम हो रहा था.
‘पहलवान मिट्टी हो गया यार‘
सोनू पहलवान था. ‘द रॉक‘ का फैन. जाति से दलित सिख. एक जट्ट के साथ दोस्ती हुई. जट्ट का भाई कनाडा गया हुआ था. जट्ट ने यहां पंजाब को मैक्सिको बना रखा था. सोनू ने काम धंधा छोड़ दिया. उसका बाप दिहाड़ी करता. तीन बहनें थी. उनकी शादी कर्जे पर की. मां भैंसों के लिए चारा लाती. सोनू की जट्ट के साथ–साथ शराबों से भी दोस्ती हुई. कोई फ्रिक ना फाका. मोटर (ट्यूबवेल) पर दोनों शराब की भट्ठी लगाते. खूब पीते, पहलवानी छूटती गई. शराब से बोर हो गए तो कई और नशे किए. सोनू खुद को भूल गया. कर्जा–वर्जा कहां ही याद रहना था. जट्ट का भाई उसे भी कनाडा ले गया. सोनू रह गया वहीं नदियों के पास नशे के लिए इधर–उधर घूमता. मां–बाप ने सोनू की शादी करवा दी. तीन बेटियां हुई. उसने और ज्यादा नशा करना शुरू कर दिया. कोई काम नहीं. बस नशा ही काम है. घर बिकने की कगार पर. रेस्लिंग देखनी छोड़ दी. कुश्ती नहीं देखने जाता था. बस नशे के दंगल में खुद को झोंक दिया. नदी के पास नाला जाता है. नाले में मरा पड़ा मिला एक दिन. ‘यार तेरा एक दिन कुत्ते दी मौत मरेगा.’ आखिर बार उसने मुझसे ये ही कहा था. फोर्टविन का टीका लगाते हुए.
सांझा चुल्हा अकेला रहता है आजकल
हमारे मोहल्ले में एक चुल्हा था. सारी औरते आती… आटा लेकर अपने–अपने घर से. सिर्फ आटा नहीं. घर के मसले भी साथ आते. ‘कल ना मेरा जानी (मेरा पति) रात नूं देर नाल आया सी, पता नहीं कि हो गया उसनू. साईं मोड़ा वाला रहम करे. शैद तक शराब पीन लग गया.’ सुक्खी ने ये बात बंतो से कही. बंतो और सुक्खी एक ही गांव की रहने वाली हैं. दोनों की दोस्त जब से है जब दोनों की दो–दो गुत्ते (चोटियां) हुआ करती थी. विश्वास था दोनों को ही लाड़ी शाह पीर पर. बंतो का पति जित्तू अरब गया था. वापस नहीं आया. बंतो के पति ने ही सुक्खी की शादी इस गांव में करवाई थी. पता नहीं कहां रह गया. बतों अपने सास–ससुर का ख्याल रखती है.
बंतो– ‘सुक्खी तेरे नाल कोई लड़ण आला तां है, मेरा तां मुड के ही नहीं आया साईं‘ मल्लब तेरे साथ कोई लड़ने वाला तो है मेरा पति तो वापस ही नहीं आया.
धीरे–धीरे जमाने ने सांझा चुल्हा छीन लिया. सबके घर बन गए पक्के सीमेंट वाले. औरतों के पास गैस–लाइटर आ गया. लेकिन सुक्खी और बंतो आज भी एक–दूसरे के घर आकर रोटियां बनती हैं. बंतो का पति नहीं आया. सुकखी की आज भी वही कहानी है. शराब पीकर पति रोज आता है और वो उसके दोस्तों को ही दोष देती है.
बंतो– ‘देख सुक्खी आग की लौ कितनी तेज है ना‘… दोनों आग की तरफ देखने लगी जैसे खुद जल रही हों.
‘डैडी मैं लंदन जाना ए‘
जिंदे के डैडी के हिस्से में कम जमीन आई थी. उसके चाचे–ताए चालू निकले. ज्यादा हिस्सा लपेट गए. जिंदे के डैडी को कोई फर्क नहीं पड़ा. ‘भोला–भंडारी‘ कहते हैं उसे सब. जिंदे की मां को पड़ा फर्क. जब भी मैं जिंदे के घर जाता. उसकी मम्मी कहती, ‘साड़ा हिस्सा खा के नर्क में ही जाएंगे.’ जिंदे के डैडी ने कभी कुछ नहीं कहा.
‘ओए… परमिंद्र कौरे… जिंदा बनेगा आईपीएस, जमीन जित्ती मर्जी. देश की सेवा करू नाले‘ जिंदे के डैडी की ये सोच थी.
लेकिन जिंदा था शौंकी लड़का. बालों में लगाई जेल, और उठाया अपने चाचे के लड़के का Rx100… निकल पड़े शहर.
‘डैडी मैं लंदन जाना ऐ…’ जिंदे ने कहा.
जिंदे का डैडी कुछ नहीं बोला. जो करना है वाहेगुरू करू. तेरे मेरे करण नाल कुज नहीं हुंदा जिंदए.
एक दिन लग गया वीजा. लंदन चला गया. वहां रेस्टोरेंट में काम करता है अब. जिंदे का डैडी आज भी साइकिल चलाता है. 60 से ऊपर हो गया. रेडियो भी साथ है उसके. लेकिन जिंदा चला…
पिछले दिनों आया था वो.
‘डैडी तुस्सी वी चलो नाल‘-जिंदा बोला
‘ओए ना… यहीं मरने दे हमें–जिंदे का डैडी
पता चला कि जिंदे ने शादी भी कर ली. Permanent Resident जो लेनी थी. उसका डैडी और मम्मी अब ज्यादा आपस में बात नहीं करते. पता नहीं क्यों… शायद जिंदा लंदन चला गया इसलिए. यहां वो दोनों भी चलती–फिरती लाश ही हैं. ना कुछ कहने को. ना ही करने को. बस… जिंह्दा पता नहीं कब वापस आए?
चिट्टे ने कर दिया सब काला–माला
शराबें रही गई छोटी–मोटी बात…. माहौल चिट्टे ने काला कर रखा है अब. बचा क्या? कुछ नहीं… पंजाब बस एक नाम होता जा रहा है आज. खुशनसीब हैं कि अज्ज पंजाबी गायकी में गुरदास मान है… जो शीशा लेकर खड़ा है. जिसके गानों में नशे और लड़किया नहीं… बल्कि ऐसे मुद्दे जिंदा हैं जो नजर से दिखते हैं लेकिन आप देखना नहीं चाहते.
‘पंजाब‘ गाने में नशा, एसिड अटैक, फैमिली डिस्ट्रकशन, रिस्पेक्ट, स्मार्टफोन से उल्लू बनते लोग और उसके अलावा वो रिस्पेक्ट जिसके लिए पंजाब जाना जाता था वो सब गायब होता दिखाया गया है. हमने अपनी बातों को कहानी के ढंग से कहने की कोशिश की. मान साहब ने भी वो ही किया है. अंत में भगत सिंह फांसी का रास्ता चुनता है. भगत सिंह जिस पंजाब और देश के लिए शहीद हो गया… वहां की युवा पीढ़ी अब नशे का शिकार हो रही है.
नोट: ऊंचा-लंबा कद और कभी विदेशी भी कह दिया जाने वाला प्रयोदत्त उर्फ पीडी. दिल्ली की गलियों में पठानी कपड़े डाल ठाठ से घूमता है और किस्सागोई में माहिर आदमी है. गाने में जैसे फ्यूजन होता है न! पीडी वैसे ही कई संस्कृतियों का मेल अपने साथ लेकर चलने वाला इंसान है.