जमुई लोकसभा: फसाना सांसद आदर्श ग्राम का जिसे रामविलास के ‘चिराग’ ने गोद लिया था और…

जमुई लोकसभा: फसाना सांसद आदर्श ग्राम का जिसे रामविलास के ‘चिराग’ ने गोद लिया था और…

इन दिनों देश-प्रदेश में अजब-ग़ज़ब फसाने देखने-सुनने को मिल रहे हैं. इन फसानों में दो जून की रोटी का मर्म है, पीने के पानी का मर्म है, इलाके में घटते जल स्तर का मर्म है. शौचालय तो बन गए मगर उसके उपयोग के लिए आस-पास जल-नल है या नहीं इसका भी मर्म है. मर्म है किसान सम्मान का डंका तो बज गया मगर ऑफिस के बाबू जो बताते हैं, वह एक अलग फसाना है. फसाना गांव से बाहर जाते नौजवानों का भी है जो साल-दो साल पर घर आते हैं. अपने साथ कई बीमारियां भी लाते हैं. फसाना सरकारी स्कूलों के मध्यान्ह भोजन, किताबों की अनउपलब्धता और स्कूल ड्रेस के अभी तक न मिलने का भी है. इलाके में गांव-घर में बीड़ी बनाती गृहणियों के फसाने का अलग मर्म है. सुबह से शाम तक बीड़ी बनाना- 500 बीड़ी बनाने पर 40 रुपये की मजदूरी पर भी संकट. संतोष यह कहकर कर लेना कि चलो 40 ही सही मगर रोज कुछ तो मिल जाता है. घर के नून-तेल, साग-सब्जी, परिवार में शादी-ब्याह में न्योता-पेहानी का काम तो चल जाता है. किसी से कर्जा तो नहीं लेना पड़ता.

सांसद आदर्श ग्राम में बीड़ी बनाती महिलाएं, यही है कमाई का मुख्य साधन

सूनसान खेत-खलिहान, मनरेगा के तहत निर्मित तालाबों का सूखना, उज्जवला योजना से मिला गैस-कनेक्शन, बीपीएल से बना इन्दिरा आवास योजना, ग्रामीणों के बीच बीएसएनएल की जगह जियो और एयरटेल के सिम को प्राथमिकता, यादव टोला, मंडल टोला, कोइरी टोला और राजपूत टोला को जोड़ने वाला उप स्वास्थ्य केन्द्र और उसका जर्जर भवन. तेलियाडीह प्राथमिक विद्यालय पर हर चुनाव के मौके पर बनने वाला पोलिंग बूथ जहां शासन की गाड़ियां नहीं पहुंच पातीं. गाड़ी कुछ दूरी पर ही छोड़कर टोपरा (खेत) को पार कर पहुंचने का फसाना और उसका मर्म. हर ग्रामीण के खाते में पंद्रह लाख आने का अंतहीन फसाना, हसरत और उसका मर्म.

यह फसाना और मर्म है जमुई संसदीय क्षेत्र के दहियारी/बटिया (प्रखण्ड सोनो) सांसद आदर्श ग्राम का. विदित हो कि कि साल 2014 के आम चुनाव के बाद एनडीए के सभी सांसदों ने एक गांव/पंचायत गोद लिया था. वादा था कि गोद लिए गांव-पंचायत को आदर्श ग्राम/पंचायत बनाएंगे. दहियारी/बटिया को भी जमुई के लोजपा सांसद ने गोद लिया और काफी जोर-शोर से आदर्श ग्राम घोषित किया. सभा, भाषण व घोषणाएं हुईं. परिणामस्वरूप बटिया हाट पर सड़क किनारे 10-12 लैम्प पोस्ट लग गए. लैम्प पोस्ट पर रंग रोगन हो गया.

सांसद आदर्श ग्राम/पंचायत का पासवान टोला

भले ही बटिया हाट प्रकाशमान न हो लेकिन माननीय सांसद महोदय और उनके स्थानीय सिपाहसालारों की खबर (स्टोरी) के साथ तस्वीरें जरूर छप गईं. सांसद महोदय भी खुश और उनके सिपाहसालार भी खुश, मगर बटिया/दहियारी के निवासी पेशे से एक शिक्षक, पूर्व जिला पार्षद मुकेश कुमार, प्रमोद पासवान, मूर्ती देवी, शारदा कुमारी, स्थानीय विद्यालय में कक्षा आठ की छात्रा शारदा कुमारी (सभी पासवान टोला कटिया-दहियारी), राहुल यादव, महेन्द्र यादव (वार्ड सचिव), परबतिया देवी, सुमरन यादव, कुसुम देवी (सभी यादव टोला) का फसाना उनके सपनों की कहानी कुछ और दास्तां बयां करता है.

यहां यह बताना जरूरी है कि खुद अविवाहित सांसद महोदय यहां एक विवाह भवन बनवा रहे हैं. बटिया और आसपास वाले अपनी बिटिया को डोली अब स्कॉर्पियो पर बैठाकर विदा करेंगे? दहियारी/बटिया और जमुई के किसानों को बीते चार-पांच दशकों से उनके खेतों को “बरनार जलाशय” का पानी मिलेगा. उनके खेतों में धान की बालियां लहलहाएंगी. उनके बाल-बच्चों की थालियों में दाल-भात की मात्रा बढ़ेगी. थाली में सोंधी महक लिए दो रोटियां भी होंगी, मगर इनके फसानों का मर्म है कि ‘अच्छे दिन’ कब आएंगे? पासवाना टोले के सैकड़ों महिला-पुरुषों का मर्म है कि रामविलास पासवान के चिराग उनके ‘अच्छे दिन’ कब लाएंगे? क्या उनके

बटिया/दहियारी असल में एक आदर्श ग्राम/पंचायत बन सकेगा? गांव में खुशहाली, सभी को शिक्षा, सभी को डॉक्टर, सभी को दवाएं मिल सकेंगी? महिलाओं को आर्थिक साक्षरता, हुनर प्रशिक्षण मिल सकेगा? महिलाओं को बीड़ी बनाने के एवज में उचित मेहनताना मिल सकेगा? किसानों को किसान सम्मान योजना के तहत खाते में मिलने वाला पैसा कब मिलेगा. टांड़-टिकुर पर बनवा दिए गए शौचालयों तक नल-जल की टोटियां कब पहुंचेंगी?

चिराग पासवान

कहना न होगा कि यह फसाना, यह मर्म सिर्फ बटिया/दहियारी (सोनो प्रखण्ड) के मजदूर-किसान, महिला-नौजवान, छात्र-छात्राओं का नहीं है, बल्कि यही संकट हरनी, (गोली/खैरा प्रखण्ड)- कियाजोड़, चन्द्रमंडी, ओझा (चकाई प्रखण्ड)- मटिया, ककन चौक, (लक्ष्मीपुर प्रखण्ड)- केशवपुर टोला (झाझा प्रखण्ड) – बरहट, लखौर, बरियारपुर (बरहट प्रखण्ड)- दौलतपुर, इनदेप (जमुई सदर प्रखण्ड)- गोखलापोहे, कैथवारा (सिकन्दरा प्रखण्ड) के महिलाओं, विद्यार्थियों, नौजवानों, मजदूरों, किसानों, दुकानदारों, छोटे-छोटे कारोबारियों का भी है. यानी गांवों और खेतों का घटता जलस्तर, कटते जंगल, गांव छोड़कर गुजरात, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली की ओर भागते नौजवान. बीड़ी बनाकर अपना स्वास्थ्य खराब करती महिलाएं. संकट दर संकट मगर गांव-गांव, टोला-टोला, पंचायत-पंचायत और सभी प्रखण्डों तक पसरा मौन. एक गहरी खामोशी और इंजजार कि ‘अच्छे दिन’ कब आएंगे?

सांसद आदर्श ग्राम में बने शौचालय की स्थिति, अधिकांश शौचालय चलती स्थिति में नहीं

इन खामोशियों और इंतजार में एक गुस्सा भी है. एक आक्रोश भी है. जिसे साफ तौर पर महसूस किया जा सकता है. राजीव कुमार, कामदेव यादव, शम्भू पासवान (सोनो प्रखण्ड) – दरोगी मांझी (सिकन्दरा प्रखण्ड) सूर्या मुर्मू, दीपक हेम्ब्रम (हरखार-खैरा), जूगल माझी (मटिया-लक्ष्मीपुर)- परवीन कुमार रजक (बरहट), राकेश बेसरा, मोनिका हंसदा (हरणी-ताराटाड़) – रिंकी कुमारी (मशरूम ग्राम- हरदीमोह) से बातकर, उनके बैठके पर बातचीत कर यह तो स्पष्ट हो जाता है कि यह लोग (जन) अपनी इस खामोशी को, अपने आक्रोश को शब्दों में पिरोकर वाक्यों के माध्यम से व्यक्त करने में उतने समर्थ नहीं, लेकिन उनका मौन एक दिन ज्वाला बनेगा फूटेगा जरूर.

यहां अंत में यह भी बताना जरूरी है कि इस फसाने का एक दूसरा पहलू भी है. जो अच्छा ही अच्छा है. शाइनिंग जमुई है. इसे समझने के लिए आपको जमुई जिला मुख्यालय घूमना पड़ेगा. यहां चल रही चर्चा, विमर्श व बहस को भी समझना होगा. इन चर्चों, विमर्शों को कचहरी चौक, वकील खाना, फैमिली रेस्टूरेन्ट, मॉल, कलेक्ट्रिएट परिसर की तरफ रुख करना होगा. अखबारों की लीड न्यूज स्टोरी को पढ़ना होगा. राष्ट्रीय टीवी चैनल्स द्वारा जिला मुख्यालय में आयोजित पैनल चर्चा और उसका लाइव टेलीकास्ट को सुनना होगा. जिला स्तर के खाते-पीते लोगों के विमर्श मुद्दे और टीवी चैनलों के एंकर द्वारा फूहड़ तरीके से चीख-चीखकर पूछे जाने वाले सवालों में राष्ट्रवाद के सतही सवाल तो होता है.

गोली पंचायत के बुझायत गांव में बीड़ी बनाती एक महिला

सरकार के नेतृत्वकर्ताओं द्वारा ‘मैं भी चौकीदार’ कहे जाने पर स्टूडियो के भीतर तालियां तो बजती हैं. जी.डी.पी, न्यू इंडिया की चर्चा तो होती है. सवर्ण आरक्षण पर सवाल तो होते हैं. मगर समूचे प्रदेश में घटते जलस्तर, जल-नल योजना का सतही क्रियान्यवन, गांव-गांव से नौजवानों का बढ़ता पलायन. 2018-2019 में किसानों ने धान तो रोपा मगर धान के बोझे खलिहान में नहीं आ सके. यानी पूरा सुखाड़, गांव-गांव में सरकारी स्कूलों में स्तरहीन स्कूली शिक्षा, पूरे जिला में ग्रामीण महिलाओं द्वारा बनाए जा रहे हैं. बीड़ी की सही मजदूरी, इस काम से इन महिलाओं के स्वास्थ्य पर पड़ता दुष्प्रभाव आदि ये सारे मुद्दे व विमर्श जिला स्तर पर खाते-पीते लोगों तक पहुंच ही नहीं पाते. कहें तो भारत का विमर्श, भारत का संकट, गांवों का लोकजीवन, गांवों के रीतिरिवाज पर हावी हो जाता है. गोया कि यह चुनाव भारत बनाम इंडिया का चुनाव है, यह चुनाव जन बनाम संवेदनहीन तंत्र का है अर्थात संकट में जनतंत्र?

यह रिपोर्ट ‘द बिहार मेल’ के लिए मोहम्मद ग़ालिब ने लिखी है. वे बिहार प्रदेश में शिक्षा विभाग से सम्बद्ध रहे हैं और रिटायरमेंट के बाद फिलवक्त ‘द बिहार मेल’ के साथ जुड़कर काम कर रहे हैं…