क्या जीतन राम मांझी अपनी ‘कढ़ाही’ में फिर कुछ नया पकाने वाले हैं?

क्या जीतन राम मांझी अपनी ‘कढ़ाही’ में फिर कुछ नया पकाने वाले हैं?

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और हिंदुस्तान अवाम मोर्चा (सेक्युलर) के मुखिया अपने बयानों की वजह से गाहे-बगाहे सुर्खियों में आ ही जाते हैं. चाहे राहुल, चिराग और तेजस्वी के लिए ‘हनीमून’ पर जाने की बात हो या फिर इस बीच भाजपा और जद(यू) के बीच तनातनी पर नीतीश कुमार को महान और तेजस्वी यादव को बिहार का भविष्य कहना हो. उन्होंने हाल के दिनों में भी तेजस्वी के लिए ‘पुत्र समान’ शब्दों का इस्तेमाल किया था. जाहिर है कि उनकी बातों और ट्वीट्स की टाइमिंग में कुछ तो जरूर होता है कि वे सुर्खियां बटोर सकें.


यहां हम आपको बताते चलें कि राज्य में एनडीए की साझा सरकार चल रही है. इसकी अगुआई भले ही नीतीश कुमार कर रहे हों, लेकिन भीतरखाने में सब कुछ ठीक नजर नहीं आ रहा. बीते सप्ताह जद (यू) की ओर से आहूत राज्य परिषद की बैठक में भी ऐसी तमाम बातें देखने-सुनने को मिलीं, जिनके गहरे निहितार्थ हैं. खुद नीतीश कुमार ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि वे दोस्त और दुश्मन को पहचानने में गलती कर बैठे. उन्हें इस बात का अंदाजा पहले ही चल चुका था लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. वे सब पर नजर बनाए हुए हैं.

वहीं जीतन राम मांझी के ट्वीट्स भी नीतीश कुमार को महान करार देने के साथ-साथ उन्हें साजिश का शिकार बता रहे हैं. कहना न होगा कि साजिश तो गठबंधन में ही हुई है/होगी, और नीतीश कुमार तो अब तक एनडीए गठबंधन का हिस्सा हैं, और अपने बयानों के माध्यम से मांझी कहीं पर निगाहें और कहीं पर निशाना तो जरूर साध रहे हैं. उनके प्रवक्ता के शब्दों में तो वे चिराग के मुकाबले नीतीश के लठैत हैं.


दरअसल, बिहार एनडीए में भाजपा के बड़े भाई बनने और सुशील कुमार मोदी को दिल्ली रवाना किए जाने के बाद से ही ऐसी चर्चाएं आम हैं कि भाजपा और जद (यू) के बीच सब कुछ ठीक नहीं. भाजपा पूरी तरह से सत्ता अपने हाथों में रखना चाहती है और नीतीश कुमार आड़े आ रहे हैं. तिस पर से अरुणाचल प्रदेश के भीतर जद (यू) के विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल कराने के बजाय उन्हें तोड़कर भाजपा में शामिल करा लेने का दर्द भी नीतीश कुमार को साल ही रहा होगा.

अंत में हम आपको यह भी बताते चलें कि चाहे मंत्रिमंडल के विस्तार पर हो रही देरी के लिए नीतीश कुमार की ओर से गेंद दूसरे पाले में भेजने की बात हो, या फिर राजद की ओर से उन्हें केंद्र की राजनीति में भेजने के साथ ही उन्हें सौदेबाज और ब्लैकमेलर कहना हो. इतना तो कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि दोनों खेमों के साथ ही जीतन राम मांझी की ‘कढ़ाही’ में भी कुछ न कुछ तो जरूर पक रहा है, और लगता नहीं कि बिना किसी मजबूत संकेत के वे ऐसा कर रहें हों…

यह खबर/रिपोर्ट ‘द बिहार मेल’ के लिए कल्याण स्वरूप ने लिखी है. कल्याण मोतिहारी के रहने वाले हैं और पूर्व में ईटीवी नेटवर्क के साथ जुड़कर पत्रकारिता करते रहे हैं…