कैमूर ने अपनी रवायत को रखा बरकरार, इस बार भी सारी सीटें सत्ता के विपरीत ही रहीं…

कैमूर ने अपनी रवायत को रखा बरकरार, इस बार भी सारी सीटें सत्ता के विपरीत ही रहीं…

बिहार प्रांत का एक जिला है कैमूर. उत्तरप्रदेश से सटा हुआ. कहीं चंदौली से सटता है तो कहीं गाजीपुर से बॉर्डर साझा है. इस जिले की राजनीति को लेकर एक बात आम है कि यहां की मिट्टी को धारा के विपरीत जाना और बगावत रास आता है. इस बार भी कहानी उलट नहीं रही. पिछली बार जहां लालू+नीतीश+कांग्रेस के महागठबंधन के बावजूद यहां की चारों सीटें (एनडीएभाजपा) के खाते में ही रही थीं. वहीं इस बार के विधानसभा चुनाव में यहां की चारों सीटें (रामगढ़, भभुआ, मोहनिया और चैनपुर) एनडीए के हाथों से निकल गई हैं. अब आगे

जिले की चारों सीटों पर भाजपा की हुई हार

यहां इस बात को बताने की जरूरत है कि कैमूर जिले में इस बार राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह की साख दांव पर लगी थी. जहां बीते बार के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन चारों सीटों पर हार गई था. वहीं गया से स्नातक एमएलसी के बाद बक्सर लोकसभा (रामगढ़ विधानसभा शामिल) में भी उन्हें शिकस्त मिली. प्रदेश अध्यक्ष का कार्यभार संभालने के बाद यह उनका पहला चुनाव था. ऐसे में सियासी पंडितों की नजरें उन पर भी टिकी थीं.

 सुधाकर सिंह, रामगढ़ विधायक-राजद

रामगढ़ से बात शुरू करें तो यहां बीते चुनाव में पहली बार दक्षिणपंथ का पताका लहराया, जबकि उनके ही खास कहे जाने वाले अम्बिका यादव राजद के बैनर तले चुनाव लड़ रहे थे. इस बार भी रामगढ़ में लड़ाई आसान नहीं थी. एक तरफ जहां उनके पुत्र सुधाकर सिंह राजद के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे. वहीं लंबे समय तक राजद के सिपाही रहे अम्बिका यादव ने बसपा का दामन थाम लिया था. भाजपा ने भी अपने सीटिंग विधायक अशोक सिंह पर ही फिर से दांव लगाया था. लड़ाई भी घमासान हुई. 30 राउंड की गिनती तक बसपा ही आगे रही, भाजपा और राजद बिल्कुल आसपास रहे. सुधाकर सिंह को मिले कुल वोटों की संख्या 58,083 रही और अम्बिका यादव को मिलने वाले वोटों की संख्या 57894 रही. तीसरे नंबर पर रहने वाले सीटिंग विधायक अशोक सिंह को 56,084 मिले. सुधाकर सिंह और अम्बिका यादव के बीच जीत और हार का फासला महज 289 वोटों का रहा. जबकि पहले और तीसरे के बीच हारजीत का फासला 1,999 वोटों का रहा. मजबूत त्रिकोणीय संघर्ष देखने को मिला. पोस्टल बैलट की गिनती हार और जीत का कारण बनी.

ज़मा खां, चैनपुर विधायक-बसपा 

चैनपुर में हार गए बिहार सरकार के मंत्री

चैनपुर की बात करें तो यहां से बिहार सरकार के खान एवं भूतत्व मंत्री बृज किशोर बिंद को बसपा के ही मोहम्मद जमा खां ने लगभग 25,000 वोटों से शिकस्त दी. बसपा के ज़मा खां को जहां कुल 95,245 वोट मिले वहीं भाजपा के दावेदार बृज किशोर बिंद को 70,951 वोट मिले. महागठबंधन के लिहाज से कांग्रेस के खाते में गई इस सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार प्रकाश कुमार सिंह को महज 5,414 वोट ही मिले थे. हालांकि इस बात पर गौर करने की जरूरत है कि कांग्रेस ने यहां जिद्द करके यह सीट अपने खाते में ली, जबकि इस सीट पर भी राजद की तैयारी थी. चैनपुर में कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन तो स्वतंत्र उम्मीदवार नीरज पांडे का रहा. नीरज पांडे को कुल 13,119 वोट मिले.

Bharat Bind
भरत बिंद, भभुआ सदर विधायक-राजद  

भभुआ में भाजपा की हार की वजह बना जद (यू) का बगावत

भभुआ सदर की बात करें तो यहां से राजद के भरत बिंद जीत दर्ज करने में सफल रहे. भरत बिंद ने लंबे समय तक बसपा की राजनीति की. वे बसपा के प्रदेश अध्यक्ष थे और उन्हें राजद के बैनर तले लाने और राजद के टिकट पर चुनाव लड़ाने का दांव सफल रहा. इस दांव के पीछे जगदानंद की अहम भूमिका रही. सीटिंग विधायक रिंकी रानी पाण्डेय निकटतम प्रतिद्वंदी रहीं और क्रमश: तीसरे और चौथे नंबर पर रालोसपा के बीरेन्द्र कुशवाहा और डॉ प्रमोद कुमार सिंह रहे. भरत बिंद को जहां कुल 57,561 वोट मिले वहीं रिंकी रानी पाण्डेय को 47,516 वोट मिले. जीत और हार का फासला लगभग दस हजार वोटों का रहा. बीरेन्द्र कुशवाहा को मिले कुल वोटों की संख्या 37014 रही, लेकिन इस चुनाव में चौथे नंबर पर रहने वाले डॉ प्रमोद कुमार सिंह को मिलने वाले 20,639 वोटों को एनडीए के वोटों में लगने वाली सेंध कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. बात गर डॉ. प्रमोद कुमार सिंह की करें तो उन्होंने चुनाव के वक्त भी ऐसी बात कही थी कि वे जिले की चारों सीटों पर भाजपा को हरवाएंगे और उनकी कही बात सच भी साबित हुई. बगावत का खामियाजा एनडीए को उठाना पड़ा.

संगीता कुमारी, मोहनिया विधायक पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के साथ 

मोहनिया (सुरक्षित) में भी भाजपा को मिली शिकस्त

कैमूर जिले के मोहनिया सीट की बात की जाए तो यहां से राजद ने संगीता कुमारी को अपना दावेदार बनाया था. संगीता कुमारी को मिले कुल वोटों की संख्या 61,235 रही और भाजपा के सीटिंग विधायक निरंजन राम को 49,181 वोट ही मिल पाए. तीसरे नंबर पर रालोसपा की सुमन देवी 39,855 वोटों के साथ रहीं. मोहनिया के लिहाज से एक बात और बतानी है कि भाजपा के टिकट पर इस बार चुनाव हारने वाले निरंजन राम ने अपनी राजनीतिक यात्रा राजद के बैनर तले शुरू की थी. वे पहली बार 2010 के चुनाव में राजद के बैनर तले ही चुनाव लड़े थे. हालांकि तब वे नजदीकी मुकाबले में हार गए थे.

तो कुछ यूं रहा कैमूर के चारों विधानसभा सीटों पर हार का गुणागणित. खबर/रपट को आगे बढ़ाते चलें