बिहार प्रांत का एक जिला है चंपारण. राजनीतिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से समृद्ध चंपारण. जहां कभी गांधी ने सत्याग्रह की शुरुआत की थी, लेकिन आप सभी से एक सवाल है कि क्या आप चंपारण शब्द का अर्थ जानते हैं? नहीं ना, तो चलिए हम आपको चंपारण का अर्थ बताते हैं. चंपारण बोले तो ‘चम्पा के अरण्य’ – जहां कभीचम्पा के जंगल हुआ करते. हालांकि चंपारण की यह पहचान धीरे-धीरे जाती रही.
आज चंपारण दो हिस्सों में बंट गया है. पूर्वी चंपारण और पश्चिमी चंपारण. पूर्वी चंपारण का जिला हेडक्वार्टर मोतिहारी है और पश्चिमी चंपारण का जिला हेडक्वार्टर बेतिया. द बिहार मेल की इलेक्शन एक्सप्रेस जब मोतिहारी पहुंची तो वहां हमें एक शख्स मिले. एक अनोखी मुहिम चलाते हुए. दुनिया को रहने लायक जगह बनाने की कोशिश में लगे हुए. इस शख्स का नाम सुशील है. जरा और स्पेसिफिक हो जाएं तो कौन बनेगा करोड़पति वाले सुशील. वे आजकल समूचे जिले में घर-घर घूमकरचम्पा के पौधे लगाने की मुहिम में जुटे हैं.
कहीं से बुलावा या फोन आ जाने पर वे अपनी स्कूटी का तेल लगाकर वहां पहुंच जाते हैं. साथचम्पा का पौधा ले जाते हैं. बुलावा देने वाले के सहयोग से चम्पा का पौधा लगाते हैं और तस्वीर को सोशल मीडिया पर अपलोड करते हैं. वे अपनी मुहिम की सफलता में सोशल मीडिया (फेसबुक) को बतौर सहयोगी गिनते हैं.
पिता से पता चली बात
सुशील इस मुहिम की शुरुआत के बारे में बताते हैं कि उन्हें भी चंपारण के नाम और इसकी ऐतिहासिकता के बारे में कुछ खास मालूम नहीं था. उनके पिता ने घर बनाते हुए जिक्र किया कि वे घर के दोनों तरफ चम्पा के पौधे लगाएंगे. उनके दिमाग में तभी से यह बात खटकी और 22 अप्रैल 2018 को उन्होंने इस मुहिम की शुरुआत की. शहर में किन्हीं और कार्यक्रम में आई हुई मेधा पाटकर से उन्होंने चंपारण की ऐतिहासिकता का जिक्र करते हुएचम्पा का पौधा लगाने की बात कही और उसके बाद से यह सिलसिला अनवरत जारी है. वे अब तक 80,000 से अधिक पौधे लगवा चुके हैं. आज उन्हें शहर के अलग-अलग लोगों के साथ ही पूरी दुनिया से सहयोग मिल रहा है.
पत्नी से हुई अनबन
वे हमसे बातचीत के क्रम में कहते हैं कि इस मुहिम की शुरुआत में तो जोश था लेकिन धीरे-धीरे इसमें काफी समय जाने लगा. इसे लेकर पत्नी से अनबन भी हुई. धूप में घूमने की वजह से देह में कई जगह घाव भी हो गए. हालांकि घाव अब ठीक हो गए हैं. वे हंसते हुए कहते हैं कि वे पहले ही सांवले थे और पत्नी के कहे अनुसार वे अब काले हो गए हैं.
आलोचना का जवाब पौधे
किसी मुहिम या प्रोजेक्ट में लोगों को आलोचना न झेलनी पड़े, ऐसा कहीं होता है क्या? तो सुशील ने भी काफी आलोचनाएं झेलीं और कड़वे शब्द सुने. जब हमने उनसे इस मुहिम और विरोध के बारे में पूछा तो वे हंसते हुए बोले कि आलोचनाएं तो होती रहीं. वे आलोचकों के घर पर चम्पा के पौधे लेकर चले जाते और उन्हें अपना मित्र बना लेते.
केबीसी का तमगा रहा मददगार
सुशील कौन बनेगा करोड़पति के विजेता रहे यह एक तथ्य है. जब वे इस मुहिम को लेकर चले तो कई लोगों ने कहा कि वे अपना नाम चमका रहे हैं. जवाब में सुशील कहते हैं कि वे नाम चमका नहीं रहे बल्कि नाम का उपयोग किए. उनका कहीं भी जाना और केबीसी विनर सुशील कहना इस मुहिम में सहयोगी है, अन्यथा लोग सभी को अपने घरों में घुसने नहीं देते. तो उनके नाम ने उन्हें काम करने में सहूलियत दी. बाकी वे अपना काम मुस्कान के साथ करते रहते हैं.
वे अंत में कहते हैं, “देखिए किसी भी तरह को काम करने पर आपको आलोचना व विरोध झेलना ही पड़ता है. आलोचना व विरोध काम के साथ अनिवार्य रूप से जुड़ी चीजें हैं. यदि आपके काम की आलोचना नहीं हो रही है इसका मतलब है कि आप काम नहीं कर रहे”.
1 Comment
अनुराग March 22, 2019 at 7:52 pm
बहुत बढ़िया!चंपारण को पुरानी पहचान से जोड़ने वाले सुशील कुमार के साथ #बिहार मेल का धन्यवाद!
बढ़िया काम और अच्छे काम की अच्छी रिपोर्टिंग!