नरपतगंज: इतिहास से लेकर वर्तमान तक का राजनीतिक समीकरण

नरपतगंज: इतिहास से लेकर वर्तमान तक का राजनीतिक समीकरण

अररिया जिले में कुल छह विधानसभा क्षेत्र हैं। इनमें से एक है नरपतगंज विधानसभा। यह विधानसभा जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर है और नेपाल से सटा हुआ है। यहां सन 2000 तक कुछ मौकों को छोड़ दिया जाए तो एक ही परिवार के तीन लोग विधायक बनते रहे।

जानते हैं क्या है इतिहास?
इस क्षेत्र से एक ही परिवार के तीन लोग कई दशक तक विधायक बनते रहे। खैर संविधान में तो इस पर पाबंदी नहीं है कि कौन कितनी बार विधायक बन सकता है और होना भी नहीं चाहिए। 1962 में यहां पहली बार चुनाव आयोजित हुआ और इस आरक्षित सीट पर डूमरलाल बैठा कांग्रेस के टिकट से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। 1967 से 1977 तक इस सीट पर कांग्रेस के टिकट से सत्यनारायण यादव लगातार तीन चुनाव में विधायक बनते हैं। 1977 में बहुत बड़ा बदलाव होता है और बेहद युवा नेता जनार्दन यादव जनता पार्टी के टिकट से सत्यनारायण यादव को पराजित कर देते हैं।

बेशक यह आपातकाल के बाद पूरे उत्तर भारत में कांग्रेस का जो सूपड़ा साफ हुआ था, यह उसी आंधी का हिस्सा था। 1980 में इंदिरा गांधी की वापसी के बाद सभी आठ राज्यों की सरकारों को ध्वस्त कर फिर से चुनाव करवाया जाता है। 1980 में जनसंघ भारतीय जनता पार्टी का रूप लेती है और नई नवेली भाजपा के टिकट से जनार्दन यादव फिर से विधायक का चुनाव जीत जाते हैं।

1985 का चुनाव काफी दिलचस्प रहा। इसबार कांग्रेस से टिकट सत्यनारायण यादव के भतीजे इंद्रानंद यादव को मिला और इनके विपक्ष में खुद सत्यनारायण यादव चुनाव लड़ रहे थे, जिन्हें लोक दल ने अपना उम्मीदवार बनाया था। 85 का चुनाव इंद्रानंद यादव कुल 8731 मतों से जीत जाते हैं।

क्या रहा 2000 के बाद का चुनावी समीकरण?

बारहवीं विधानसभा चुनाव में इस सीट से भाजपा के टिकट से जनार्दन यादव 1985 के बाद एक बार फिर से वापसी करते हैं। 2005 में दो चुनाव हुए। फरवरी में हुए चुनाव में राजद से यहां अनिल कुमार यादव को टिकट मिला। वह पहली बार ही विधानसभा का चुनाव लड़ रहे थे। उन्होंने 369 मतों से भाजपा के जनार्दन यादव को परास्त कर दिया। लेकिन इस चुनाव के परिणाम से राज्य में किसी भी पार्टी की सरकार नहीं बन पाई। अक्टूबर में फिर से आयोजित चुनाव में भाजपा के ही टिकट से जनार्दन यादव ने अनिल कुमार यादव को परास्त कर दिया। 2010 के चुनाव में भाजपा के टिकट से देवंती यादव चुनाव लड़ीं और प्रतिद्वंद्वी फिर से राजद के अनिल कुमार यादव। इस चुनाव में नरपतगंज को मिली उसकी पहली महिला विधायक।

देवंती यादव

पिछली बार क्या हुआ था?

2015 का चुनाव बहुत ही दिलचस्प था क्योंकि 2014 के बाद से मोदी लहर अपने उफान पर था और यहां का मुकाबला इस बार भाजपा और जदयू-राजद के गठबंधन के बीच होना था। लालू-नीतीश की जोड़ी ने पूरे बिहार में नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोक दिया। यहाँ से भी राजद के उम्मीदवार अनिल कुमार यादव ने भाजपा के जनार्दन यादव को नरपतगंज के इतिहास में सबसे अधिक मतों के अंतर से परास्त कर दिया और यह अंतर कुल 25951 मतों का था।

यहां की आबादी का जीवन यापन

कुछ लोगों के पास खेती वाली जमीन है तो वो खेती करते हैं। बहुत सारे लोग यहां खेतिहर मजदूर हैं। वहीं यहां से भी लोग रोजगार की तलाश में पलायन करके पंजाब, दिल्ली, मद्रास, हरियाणा और महाराष्ट्र जाते हैं। यदि इस क्षेत्र में कृषि फसल को लेंगे तो धान, गेँहू और मक्का मुख्य फसल है। मक्का का रकबा धीरे-धीरे बढ़ रहा है। लेकिन देवीगंज के किसान शैलेन्द्र बताते हैं, “खेतों के लिए मजदूर बहुत आसानी से नहीं मिलता है। फसल बिचौलियों को या फिर खुद से फारबिसगंज मंडी में बेचते हैं। इसबार तो बस किसी तरह लागत निकल पाई है।”

नरपतगंज के ही भरगामा प्रखंड में पड़ने वाले शेखपुरा गाँव के निवासी गुड्डू कुमार यादव कहते हैं, ” जिले में कृषि विभाग पूरी तरीके से सुस्त और स्थिर है। मैंने अपने दम पर 70 डिसमिल में शिमला मिर्च की खेती की और बढ़िया मुनाफा कमाया।” वो कहते हैं कि यदि खेतों तक पाइपलाइन बिछाकर सिंचाई की सुविधा सरकार उपलब्ध करा दे तो यहाँ की धरती सोना उगलेगी। उनके साथ में हुई लंबी बातचीत में वो कहते हैं कि यहाँ खेती मजबूरी का नाम है। किसान प्रयोग करने से डरते हैं। हमारे यहाँ किसान यूनियन नहीं है। हम सरकार या विभाग पर तब ही दबाव बना पाएंगे जब हमारा संगठन होगा। वो बेहद आत्मविश्वास से कहते हैं कि,” मुझे शेखपुरा को मिनी-इजरायल बनाना है।”

खेती-किसानी के अलावा भी समस्याओं का अंबार है। सामाजिक कार्यकर्ता और युवा नेता सानू यादव से आगामी चुनाव के मुद्दों पर सवाल करने पर पता चलता है कि नेपाल से आने वाली बाढ़ का खतरा, फसल का सही दाम न मिलना , अनुदान का सही समय पर न मिलना, खेतों तक बिजली की पहुंच को मुख्य मुद्दा होना चाहिए। वो कहते हैं कि इस विधानसभा में कम से कम चार अस्पताल तो होने ही चाहिए। वो आगे कहते हैं कि नल-जल योजना असफल है और इस योजना के नाम पर कई लोग पैसा कमाए हैं।

अनिल कुमार यादव

क्या कहते हैं वर्तमान विधायक?

वर्तमान विधायक अनिल कुमार यादव कहते हैं , “मैंने कुल 300 सड़कों का निर्माण करवाया और अब मेरा लक्ष्य चिकित्सालय, पशु चिकित्सालय, रोजगार सृजन और किसानों की बेहतरी के लिए प्रयास करना है।” विधायक मजदूरों के पलायन, सिंचाई, बाढ़, बेरोजगारी, फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट, फसल के सही दाम न मिलने के सवाल को लेकर सरकार को कोसते हैं। उनका कहना है कि वे तो विपक्ष में हैं।

जन अधिकार पार्टी के नरपतगंज के संभावित उम्मीदवार प्रिंस विक्टर चुनावी मुद्दों पर कहते हैं, ” देखिए पहले के चुनाव में तो जाति एक मुद्दा था ही लेकिन अब जनता सेवादार को चुनेगी और हम सेवादार हैं और हम जनता के पास विकास लेकर जा रहे हैं।”

प्रिंस विक्टर 

विक्टर यह भी कहते हैं ,” सभी पार्टियां वर्चुअल रैली में व्यस्त है लेकिन हमारी पार्टी रियल रैली कर रही है।”जाप उम्मीदवार वर्तमान विधायक पर एक पुल के निर्माण में गबन का आरोप भी लगाते हैं लेकिन पुख्ता सबूत बताने पर वो कहते हैं, “सबसे पूछ लीजिए यही कहता है।” भाजपा भी चुनाव तैयारियों मे व्यस्त है। जहाँ पर बाकी पार्टियों के उम्मीदवार लगभग निश्चित हैं तो वहीं भाजपा के उम्मीदवार पर अब भी संशय की स्थिति बनी हुई है।
क्षेत्र की राजनीतिक समझ रखने वाले कृष्णा मिश्रा ने कहा, “भाजपा में उम्मीदवारी के लिए काफी संघर्ष है। जिला परिषद विजय यादव, भूतपूर्व विधायक जनार्दन यादव, पूर्व विधायक देवयन्ती देवी और पुलिस इंस्पेक्टर से रिटायर्ड जयप्रकाश यादव टिकट के लिए पटना का खूब दौरा कर रहे हैं।”

इस बार कैसा रहेगा चुनाव?

यह चुनाव 2015 से कई मायनों में अलग है। पिछली बार राजद-जदयू-कांग्रेस का गठबंधन था और इस बार भाजपा-जदयू का गठबंधन है तो वहीं राजद-कांग्रेस फिर से साथ है। कांग्रेस का इस क्षेत्र में कोई खास प्रभाव अब नहीं बचा है। यहाँ के पिछले दो चुनावों की थोड़ी तुलना करते हैं। 2010 में जब भाजपा और जदयू का गठबंधन था तो यह गठबंधन कुल पड़े मतों में से 61106(40.99%) मत अर्जित कर पाया था तो वहीं अकेले चुनाव लड़ रही राजद को 54169(36.33%) मत और कांग्रेस को 8782(5.89%) मत अर्जित हुआ था।

वहीं 2015 में राजद-जदयू-कांग्रेस के महागठबंधन के संयुक्त उम्मीदवार अनिल कुमार यादव को कुल 90250(51.32%) मत प्राप्त हुआ और भाजपा-लोजपा के गठबंधन को 64,299(36.57%) और जन अधिकार पार्टी के उम्मीदवार को 4377(2.49%) मत प्राप्त हुआ। मतलब सभी पार्टियों का अपना आधार होने के अलावा गठबंधन के हिसाब से वोट इधर-उधर भी खूब होता है।

राज्य निर्वाचन आयोग की वेबसाइट की एक आकलन के अनुसार 2020 तक नरपतगंज की कुल आबादी 7,14,487 लाख तक रहेगी जिसमें से कुल वोटरों की संख्या 3,15,974 लाख रहने वाली है। मतदान प्रतिशत 65-66 प्रतिशत तक रहता है। मतलब 2,00,000 लाख के आसपास लोग उम्मीदवार का चुनाव करेंगे। हालांकि जातीय जनगणना तो उपलब्ध नहीं है फिर भी राजनीतिक विशेषज्ञों की की मानें तो यहाँ पर यादव एक बहुसंख्यक आबादी है। कृष्णा मिश्रा कहते हैं कि,”यादव और मुस्लिम बहुल इलाका होने के बावजूद जब से राजद का स्वतंत्र अस्तित्व हुआ है तब से राजद अकेले दम पर कभी भी यह सीट नहीं जीत पाई है।” वो आगे कहते हैं कि, “क्षेत्र में घूमने पर पता चलता है कि लोगों के मन में नीतीश कुमार के प्रति नाराजगी तो बहुत गहरी है लेकिन लोगों की नाराजगी राजद और तेजस्वी यादव के लिए प्रेम रूपी वोट में तब्दील नहीं हो पा रहा है।”

डुवर्जर एक राजनीतिक वैज्ञानिक थे और दलीय व्यवस्था पर उन्होंने खूब काम किया था। वो कहते थे कि चुनाव में जब लोग वोट डालने जाते हैं तो वोट डालने वाले लोगों पर दो प्रभाव पड़ता है। उन दो प्रभावों में से एक प्रभाव होता है, मनोवैज्ञानिक प्रभाव। मतदाताओं को लगता है कि हम उन्हें वोट क्यों ही दें, जो हार जाएगा, ये तो हमारे वोट की बर्बादी है। पिछली बार के चुनाव में सभी पार्टियों का अपना आधार तो था ही इसके साथ भाजपा के उम्रदराज उम्मीदवार जनार्दन यादव के बारे में यह भी बात जनता में घर कर चुकी थी कि वह तो हार ही जायेंगे। इसलिए पिछली बार के चुनाव में जीत का अंतर सबसे अधिक था।

वर्तमान उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी जी कहते हैं कि बिहार का चुनाव एक त्रिभुज है। जो दो पार्टीयाँ साथ आ जाती हैं वो चुनाव जीत जाती है। इस बार के चुनाव में भाजपा-जदयू-लोजपा के गठबंधन को एक फायदा तो यह है। दूसरी बात लोगों के मन में भरा जा रहा है कि सत्ता में नीतीश कुमार फिर से आ ही जायेंगे तो हो सकता है कि डुवर्जर का नियम कर जाए और ना जीतने वाले उम्मीदवार भी जीत जायें। तीसरी बात राजद-कांग्रेस और भाजपा-जदयू-लोजपा की लड़ाई में जन अधिकार पार्टी का वोट भी काफी अहम रहेगा क्योंकि पिछली बार पार्टी भी नयी थी और इसबार पप्पू यादव बाढ़ में काफी सक्रिय रहे हैं तो हो सकता है कि इस बार पार्टी अपने वोटों में काफी बढ़ोतरी कर ले। अब तो चुनाव का परिणाम ही अंतिम सिद्ध वचन होगा। तो इंतज़ार करते हैं बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के परिणामों का…

यह आलेख नीतीश कुमार ने लिखा है, वह वर्तमान में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र हैं और राजनीति विज्ञान की पढ़ाई कर रहे हैं।