राजनीति में हर बयान और मुलाकात की टाइमिंग के अलग-अलग मायने होते हैं. कौन किससे मिलता है और कौन किससे कन्नी काटता है. कौन किसके साथ दिन भर घूमता है और कौन किसके साथ शाम और रातें बिताता है. इसी बात पर देश-दुनिया की पूरी राजनीति टिकी हुई है. इसी क्रम में हम बीते दिनों के एक बयान और आज की एक मुलाकात का जिक्र कर रहे हैं. आज तेजस्वी यादव और उपेन्द्र कुशवाहा की मुलाकात हुई है.
यहां हम आपको एक बयान याद दिलाते हैं. यदुवंशियों का दूध और कुशवंशियों का चावल मिल जाए तो खीर बनने में देर नहीं. यह रालोसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह केंद्रीय राज्य मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा के शब्द हैं. यह बात उन्होंने श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में बी.पी.मण्डल जनशताब्दी समारोह में कही थी. तारीख 25 अगस्त 2018. ठीक दो महीने बाद कुछ तस्वीरें आई हैं. इन तस्वीरों ने बिहार के राजनीतिक गलियारे में बन रहे नए समीकरणों को हवा दे दी है. या कहें कि राजनीतिक खीर बन जाने की पुष्टि कर दी है.
बिहार की राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र यादव उपेन्द्र कुशवाहा और तेजस्वी यादव की अरवल के परिसदन में मुलाकात पर कहते हैं कि, देखिए राजनीति के लिहाज से अखाड़ा तो तय है लेकिन पहलवान तय नहीं हैं. राजनीति करने वाले कोई संत तो हैं नहीं. वे सत्ता में जहां अधिक हिस्सेदारी मिलेगी वहां जाएंगे. हालांकि वे इस मुलाकात को सुनियोजित मुलाकात होने की पुष्टि नहीं करते.
औचक या सुनियोजित?
यहां हम आपको बता दें कि इस औचक सी दिखने वाली तस्वीर के सुनियोजित होने की प्रबल संभावनाएं हैं. यह तस्वीर ठीक उसी समय में आ रही है जब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सीट सेयरिंग के फॉर्मूले पर फाइनल मूड बना चुके हैं. इस फॉर्मूले में जहां बिहार की 40 सीटों पर बीजेपी और जद (यू) 17-17 सीटों पर लड़ने और लोजपा के 5 सीटों पर लड़ने की बात हो रही है. या फिर 16-16-5-2-1 के समीकरण की बात हो रही है. ऐसे में रालोसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अपनी हिस्सेदारी को लेकर हैरान-परेशान हैं. आश्चर्य नहीं कि वे तेजस्वी यादव से मुलाकात कर रहे हैं.
तेजस्वी यादव डालते रहे हैं डोरे
बिहार में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव जहां लंबे समय से रालोसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पर डोरे डालते रहे हैं. तेजस्वी कई बार ट्विटर पर कई बार उपेन्द्र कुशवाहा को बुलाते रहे और वे कन्नी काटते रहे. यदुवंशियों के दूध और कुशवंशियों के चावल से मिलकर बनने वाले खीर जैसे बयान के बाद से ही ऐसा माना जा रहा था कि राजद और रालोसपा के बीच कुछ तो पक रहा है. वे देर-सवेर राजद के साथ जा सकते हैं. हालांकि अरवल सर्किट हाउस की इस मुलाकात को उपेन्द्र कुशवाहा अब तक औचक व संयोग से हुई मुलाकात ही कह रहे हैं. वहीं तेजस्वी यादव मीडिया से मीटिंग डिटेल साझा न करने का हवाला देते हैं. इस मुलाकात पर जब हमने राजद प्रवक्ता डॉ नवल किशोर से बातचीत की तो वे बोले कि अब तक मामला पूरी तरह स्पष्ट नहीं है. राजद और रालोसपा के पॉलिटिकल स्टैंड में कुछ खास फर्क नहीं. राजद उपेन्द्र कुशवाहा को खुद के नजदीक ही पाती है. कुशवाहा भी न्यायपालिका में आरक्षण की बातें कहते हैं. कई बुनियादी मुद्दों पर इन दोनों पार्टियों में एका है.
मामला हिस्सेदारी का है
इस पूरे मामले पर जब हम साल 2010 के विधान सभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर रामगढ़ से चुनाव लड़ चुके और बाद में भाजपा से निकाले गए सुधाकर सिंह से बात करते हैं तो वे कहते हैं, “देखिए ये पूरा मामला हिस्सेदारी का ही है. भाजपा रालोसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष से सिर्फ एक सीट पर लड़ने की बात कह रही है. उपेन्द्र कुशवाहा ने एक पार्टी बनाई है और पार्टी के लिहाज से राजनीति भी करना चाहते हैं. राजद उन्हें अधिक सीटें देगा तो वे राजद के साथ बड़े आराम से जा सकते हैं. वे कहते हैं कि राजद के पास कुशवाहा को देने के लिए अधिक चीजें हैं. भाजपा के मैक्सिमम सांसद जीत चुके हैं. उन्हें गर साथ लड़ना है तो सीटें दूसरी पार्टियों के लिए छोड़नी ही होंगी. वे रालोसपा को अधिक चीजें दे नहीं रहे. ऐसे में उनका राजद के साथ आना स्वाभाविक है.
बहरहाल, इन तमाम बातों को लिखने का मजमून ये है कि राजनीति में किसी भी मुलाकात या बयान की टाइमिंग पर बहुत कुछ निर्भर करता है. बोले तो कुछ भी औचक नहीं होता. हर मुलाकात और बयान के अलग-अलग संदर्भ और मायने होते हैं, हैं कि नहीं?