पंजाब से लॉकडाउन में बिहार लौटे एक मजदूर की कहानी

पंजाब से लॉकडाउन में बिहार लौटे एक मजदूर की कहानी

दो वक्त की रोटी की तलाश में अपनों को छोड़ परदेस गए लोगों ने कभी सोचा नहीं था कि जिंदगी इतनी भयावह होगी। जैसे ही लॉकडाउन हुआ, जीवन की परिभाषा बदल गई। जहां नौकरी कर रहे थे वहां मालिकों का व्यवहार बदल गया. उन्होंने मदद पहुंचाने के बदले लाचार स्थिति में मरने को छोड़ दिया। न पैसे दिए और न राशन। शहर ठप हो जाने से दो वक्त की रोटी के लिए तरस गए। जो कुछ बचाकर रखा था, राशनपानी में धीरेधीरे खत्म होने लगा। जब जीवन पर संकट मंडराने लगा तो इनके सामने घर वापसी ही आखिरी रास्ता रह गया। अपनों के पास पहुंचने में जितनी परेशानी, दिक्क़तें उन्होंने झेली, उसका दर्द वे इस जन्म में शायद ही भुला पाएंगे।  

ऐसी ही कहानी है पालीगंज विधानसभा क्षेत्र के निरवपुर पंचायत में रहने वाले सतीश कुमार शर्मा की जो पंजाब के मंडी गोबिंदगढ़ में धागा मिल में काम करते थे।कोरोना वायरस महामारी के रोकथाम के लिए प्रधानमंत्री ने जब लॉकडाउन की घोषणा की तो बाहर रहनेवाले श्रमिकों की कमाई तो गई ही उन्हें रहने और खाने की दिक्कतें भी होने लगीं। सतीश भी जैसेतैसे करके श्रमिक ट्रेन से बिहार लौटे।

सतीश का कहना है कि अब बिहार में भी उनकी स्थिति और भी खराब हो गई। उन्होंने कहापंजाब में भूखे रहने से अच्छा यही था कि अपने घर वापस लौट आएं।  यहाँ काम नहीं है लेकिन नमक रोटी खाकर पेट तो भर रहे है। मगर यहां भी स्थिति ठीक नहीं है। बिहार सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिली। सतीश का दावा है कि उन्हें एक बार राशन मिला था उसके बाद डीलर ने कुछ नहीं दिया।

घर की दयनीय हालत

घर की हालत ही काफी दयनीय थी। दो कमरों के घर में पास के पोखर का पानी घुस आया था, जो कि मच्छरों और कीड़ों को आमंत्रण दे रहा था।  घर की छत का एक हिस्सा भी बारिश के कारण टूट गया था।  जब हमने सतीश से सरकार की तरफ से प्रवासी मजदूरों को दिए जाने वाले राशन के बारे में पूछा तब वे रुआंसा हो गए और बोले कि 16 किलो चावल मिले थे वो भी बिना गेंहू और दाल के। उसी से गुजारा करना पड़ा। इसी बीच वहां पर मौजूद उनकी बूढ़ी माँ और मित्र बीच में बोल पड़े कि साल में सिर्फ 2 लीटर तेल मिला जबकि इतना तेल तो एक महीने में चाहिए।

बकौल सतीश, उन्होंने 2 लाख का कर्ज़ा लिया है और अब ज़मीन बेचकर कर्ज़ा चुकाएंगे। वहीं सतीश का कहना है कि वह ऊंची जाति से आते हैं तो उन्हें जल्दी कोई गरीब भी नहीं मानता है। उनके तीन बच्चे हैं लेकिन पैसों की कमी और कोरोना महामारी से पढ़ाई प्रभावित है। सतीश कहते हैं कि ये नेता लोग चुनाव के समय वोट मांगने तो आ जाते हैं लेकिन जब वे भूखप्यास से तड़प रहे थे तब कोई सुध लेने कोई नहीं पहुंचा। ना रोज़गार मिला और ना ही राशन। वोट के समय में नेता लोग अपनी ठसक दिखाते हैं लेकिन इनके 500-1000 रूपए के पीछे किसी बेईमान को वोट क्यों देंगे ?

हालांकि, बिहार सरकार ने कहा था कि वह घर लौटे सभी श्रमिकों को उनके स्किल के आधार पर रोज़गार मुहैया कराएगी। बिहार सरकार ने दावा किया था कि करीब दो लाख लोगों को मनरेगा के तहत नए जॉब कार्ड दिए गए और दो लाख लोगों को नरेगा के तहत मजदूरी का रोजगार मिला. लेकिन स्थिति देख कर किये दावे सब उलट लग रहे हैं  राज्य में काम का संकट तो पहले से था, अब इतनी बड़ी संख्या में बाहर गए श्रमिक वर्ग के लोगों के वापस आ जाने से स्थिति और भी भयावह हो गई है।  

पंजाब से 10 लाख मजदूरों का पलायन

बात करें पंजाब की तो जबसे पंजाब में लॉकडाउन हुआ तब से ही प्रवासी मजदूरोंकामगारों ने अपने गांवघर का रुख किया। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने राज्य से तकरीबन 10 लाख मजदूरों के पलायन की बात कही थी। यानी पंजाब से इतने मजदूर लॉकडाउन के दौरान अपने-अपने घरों को वापस गए। सबसे ज्यादा मजदूर उत्तर प्रदेश, फिर बिहार, फिर मध्य प्रदेश और ओडिशा से थे। सभी यहां पर ठेकेदारों के पास काम करते थे या फिर फैक्ट्रियों में पक्के तौर पर।