हाउ इज द जोश? दरअसल, सर/मैडम- मेरा एक सवाल है

हाउ इज द जोश? दरअसल, सर/मैडम- मेरा एक सवाल है

कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन है, सॉल्यूशन कुछ पता नहीं….

डायलॉग, कैमरा, एक्शन. चारों तरफ मंच सज चुके हैं. रोज कुछ न कुछ नए अपडेट हो रहे हैं. आज कोई अच्छा लग रहा है तो कल कोई दूसरा. आज यह मुद्दा मन में आया नहीं कि कोई ऐसा बात हो जाती है कि पुराने मुद्दे गायब. करें तो करें क्या? कौन सा मुद्दा मजबूत है और कौन सा कमजोर? सब झोल है झोल. गणतंत्र बचाओ, जनतंत्र बचाओ और संविधान बचाओ के बीच जनता को अपनी नौकरी भी बचानी है. जनता करे तो करे क्या? कोई व्यक्ति आता है और कहता है कि मैं ही सर्वशक्तिमान ब्रह्म हूं और कोई दूसरा आकर कहता है इन पर विश्वास मत करना. असल ब्रह्म मैं हूं. जनता सोचती है, अगर यही ब्रह्म हैं तो फिर हम क्या हैं?

Indian Parliament
Image Credit: Indian Express

जनता बेचारी कन्फ्यूज है, लेकिन जनता भी कम तेज थोड़े न है. चुप्पेचाप फैसला करेगी कि कहां जाना है, लेकिन इस बीच जो लोग सवाल से दूर हैं, उनसे मिलकर ऐसा लगता है कि हे प्रभु, इतना ज्ञान कहां से ले आते हो? यहां पेश हैं उनसे किए गए चंद सवाल और उनके जवाब…

वाल: यार नौकरी नहीं मिल रही लोगों को?
जवाब: तुम्हारे पास है न, तुम अपना आंकड़ा जोड़ कर रखो, दूसरों की चिंता मत करो.

सवाल: शिक्षा के क्षेत्र में कुछ खास नहीं हो पा रहा.
जवाब: एक किताब तो तुमसे ठीक से पढ़ी नहीं जाती, अगर पढ़ते तो आईआईटी और यूपीएससी पास करते. बस आरोप लगाने हैं, अपना काम तो करते नहीं ठीक से.

सवाल: तबियत खराब थी यार, सरकारी अस्पताल में इतने देर तक लाइन में लगवाया कि और भी खराब हो गई.
जवाब: तुम पागल हो, हेल्थ इंश्योरेंस क्यों नहीं कराया था? अब तुम्हारे लिए लाइन में भी सरकार ही लगे! कितने आलसी हो….

चलो ठीक है,‘मैं ही कन्फ्यूज हूं. मुझे लगता है, सब मिले हुए हैं’. इनमें से किसी को संविधान और देश से मतलब हो, ऐसा तो लग ही नहीं रहा. फलना पार्टी ने इतने वर्षों में किसानों की दशा खराब कर दी और फिर चिलना पार्टी यह कहते हुए आई, ‘‘बहुत हो गया, एक दम चुप, अब सब ठीक हो जाएगा.’’ लोगों ने सोचा चलो ठीक है… सब न सही, कुछ तो ठीक होगा, लेकिन हुआ क्या वह तो जनता ही जानती है. हाय जनता, तुम्हारी हालात पे रोना आया.

चलो कोई नहीं, चुनाव का महीना सामने है. नेताओं से आपकी बातें होंगी, मुलाकातें होगी और हर बार की तरह ढेरों वायदे भी किए जाएंगे. आपको फिर बचपन में सुनाई गई एक कहानी याद आएगी, शिकारी आएगा, जाल बिछाएगा, दाना डालेगा लेकिन तुम उसमें फंसना नहीं…और आप…ओ हैलो, हमें सब पता है, हमें ज्ञान नहीं देने का…जी, ओके सॉरी, बाय.

दरअसल, यह जो सवाल पूछना है न, वह किसी को अच्छा नहीं लग रहा. पूछ के देखिए अपने आस-पास. जोर का कंटाप पड़ेगा. दूसरों का तो छोड़िए जनाब/मोहतरमा-ए-हिंद. खुद के मन से ही पूछ लीजिए. आपको भी भीतर ही भीतर सवाल अच्छा नहीं लगते. यह सवाल हैं ही ऐसे. किसी को भी असहज कर जाते हैं. जैसे मैं यह लिखते समय जानने की कोशिश में हूं कि यह क्यों लिखा जा रहा है. और जवाब नहीं है मेरे पास. किसी भी लोकतंत्र की मजबूत ताकत जनता और उसका सवाल हैं. तो चुनाव का महीना आ गया है, लोकल स्तर पर नेताओं से सवाल पूछने भी शुरू हो जाने चाहिए, है कि नहीं? फिर देखिए कौन कितना सच बोल रहा है और कितना झूठ… और हां, अगर आप चाहते हैं कि आपका कोई सवाल हम अपने वेबसाइट के माध्यम और फेसबुक पेज के माध्यम से उठाएं तो आप हमें अपना सवाल thebiharmail@gmail.com पर भेज सकते हैं या फेसबुक पेज TheBiharMail पर मैसेज कर सकते हैं.