मध्य प्रदेश चुनाव: एक भाजपा समर्थक जो इस बार भाजपा से कन्नी काट रहा है…

मध्य प्रदेश चुनाव: एक भाजपा समर्थक जो इस बार भाजपा से कन्नी काट रहा है…

इंसान अंतर्विरोधों में जीने का आदी है. किसी परीक्षा या चुनाव की घड़ी में ऐसे अंतर्विरोध और जोर मारने लगते हैं. वहीं बात यदि भारतीय लोकतंत्र में अपना जनप्रतिनिधि चुनने की हो रही हो तो फिर क्या कहने. ऐसा ही अंतर्विरोधी किरदार हमें मध्यप्रदेश के सिंगरौली (वैढ़न) में मिले.

मैं रवींद्र से सिंगरौली (वैढ़न) की एक चाय दुकान में मिला. अचानक. शहर के मूड को भांपने के लिए मैंने अखबार उठाया ही था कि सामने उत्तर प्रदेश के मंत्री ओमप्रकाश राजभर का बयान दिखा. वे कह रहे थे कि भाजपा अपने मुसलमान मंत्रियों के नामों को भी बदले. रवींद्र की तरफ से ही प्रतिक्रिया आई कि ये आदमी सही कह रहा है. आखिर नाम बदलने में कितना खर्चा आता है. मैंने भी बातचीत होने की उम्मीद में हां में हां मिला दी. बातचीत आगे बढ़ गई.

रवींद्र प्रथमदृष्टया दिलचस्प किरदार लगे. चेहरे पर फबती मूंछ. ‘भगवा’ शर्ट पहने और गले में ठीकठाक सोने की सिकड़ी पहने. बातचीत में पता चला कि वे दवा व्यवसायी हैं. सिंगरौली के नवानगर बाजार में उनका होलसेल दवा का कारोबार है. मार्केटिंग में लंबे समय तक सक्रिय रहे हैं. एमआर रह चुके हैं. बी फार्मा भी किया है. भाजपा के परंपरागत वोटर रहे हैं लेकिन इस बार भाजपा को वोट नहीं करने वाले.

मेरी दिलचस्पी उनसे बात करने के प्रति और बढ़ी. आखिर ऐसी कौन सी बात है कि भाजपा के परंपरागत वोटर रहे रवींद्र इस बार भाजपा से कन्नी काट रह हैं? इधर-उधर जाने की बात कर रहे हैं.

रवींद्र कहते हैं कि सिंगरौली विधानसभा में इस बार टक्कर भाजपा और कांग्रेस के बीच है. जब हमने उनसे कांग्रेस के प्रत्याशी के बसपा से कांग्रेस में आने की बात कही तो वे बोले, चुनाव के समय सभी पार्टी बदलते हैं. रामलल्लू वैश्य सीटिंग विधायक हैं. वे भी कभी दूसरी पार्टी में थे. आज भाजपा में हैं. अंतिम क्षणों में आम वोटर को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता. सभी पार्टियों का अपना समीकरण होता है. पार्टियां अपने वोटों के समीकरण के तहत सीटें बांटती हैं.

साथ-साथ होना वोट देने की गारंटी नहीं
जब मैंने उनसे कांग्रेस से टिकट मांग रहे और अब बागी हो गए प्रत्याशी अरविंद सिंह चंदेल के नॉमिनेशन में आई भीड़ का जिक्र किया तो वे बोले कि वे भी नॉमिनेशन के दिन अरविंद सिंह के साथ आए थे. वे कहते हैं कि निजी संबंध अपनी जगह हैं और वोट अपनी जगह. अरविंद सिंह अच्छे व्यक्ति हैं लेकिन वे नहीं जीतने वाले. वे बसपा प्रत्याशी से भी निजी संबंधों का जिक्र करते हैं. उनसे व्हाट्सअप पर हुई बात भी दिखाते हैं लेकिन वे उन्हें वोट देने की बात से इनकार करते हैं.

गुस्सा स्थानीय प्रत्याशी के प्रति कहीं अधिक
शिवराज सिंह चौहान के पंद्रह साल के शासन पर वे कहते हैं कि इस बार सत्ताविरोधी लहर चरम पर है. ऐसा ही गुस्सा रामलल्लू बैस के प्रति भी है. वे लोगों का कुछ काम नहीं करा पाते. यदि उनके बजाय किसी और को प्रत्याशी बनाया जाता तो भाजपा सिंगरौली जीत लेती. वे बड़े ही असहाय प्रत्याशी हैं. भाजपा इसकी कीमत अदा कर सकती है.

रानी अग्रवाल का लड़ना भाजपा के पक्ष में नहीं
आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी रानी अग्रवाल के बारे में बात करने पर वे कहते हैं कि तीसरे नंबर पर इनके रहने की संभावना है. रानी अग्रवाल की मजबूती भाजपा को नुकसान करेगी. उन्हें अग्रवाल होने का फायदा मिलेगा. बसपा को उसका काडर वोट मिल जाएगा. जो उसे आमतौर पर मिलता रहा है. सपा और सपाक्स वाले तो बस वोटकटवा हैं.

नोटबंदी और जीएसटी कितना असरकारी?
भाजपा और नरेंद्र मोदी के लिए नोटबंदी एक बड़ा मुद्दा रहा है. जीएसटी भी है. कारोबारियों के लिहाज से ये दोनों बड़े मुद्दे हैं. नोटबंदी पर बातचीत में रवींद्र कहते हैं कि उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ा. वे दाल-रोटी वाले कारोबारी हैं और उनके कारोबार पर इसका खास असर नहीं हुआ. जीएसटी को वे मोदी सरकार की अच्छी पहल मानते हैं. वे कहते हैं कि यदि सरकार हमसे पच्चीस रुपये ले रही है तो हमारे ही विकास और सुख-सुविधाओं के लिए तो इस्तेमाल करेगी. पैसा ही नहीं होगा तो सरकार कहां से पैसा खर्च करेगी.

जात-पांत का असर कितना?
मैंने रवींद्र से उनका पूरा नाम पूछा. उन्होंने रवींद्र शाह कहा. मैंने पलटकर पूछा कि कहीं कांग्रेस प्रत्याशी का शाह (रेणु शाह) होना तो इस झुकाव की वजह नहीं. तो वे बोले कि नहीं ऐसा नहीं है. वे बीते दो बार से भाजपा को वोट करते रहे हैं. लोकसभा में भी उनका पूरा परिवार भाजपा को ही वोट करता रहा है. नगरपालिका और छोटे चुनावों की बात जरा अलग है. वहां निजी संबंध अधिक प्रबल होते हैं.

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