महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का निधन बृहस्पतिवार को पटना के पीएमसीएच अस्पताल में हो गया. वह करीब चार दशक से बीमार चल रहे थे और सिजोफ्रेनिया का शिकार थे. सिंह के परिवार वालों का आरोप है कि सिंह के निधन के दो घंटे बाद एम्बुलेंस उपलब्ध कराया गया.
बिहार सरकार ने सिंह का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ करने की घोषणा की है. सिंह के अंतिम समय को लेकर कई वीडियो सोशल मीडिया पर आए हैं जिसमें उन्हें स्ट्रेचर पर पड़ा हुआ दिखाया गया है और उनके परिजन अस्पताल के परिसर में एम्बलेंस के इंतजार में खड़े दिखे हैं. यह तो उनके अंतिम समय की खबर है लेकिन जीते जी भी वह गुमनामी में ही जी रहे थे…
कौन हैं महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह–
सिंह का जन्म 1942 में बिहार में हुआ था और उन्होंने शुरुआती पढ़ाई नेतरहाट आवासीय विद्यालय से की. इसके बाद वह पटना सायंस कॉलेज आ गए. यहां उनकी मुलाकात अमेरिका के प्रोफेसर कैली से हुई और उन्होंने सिंह को अमेरिका आने का निमंत्रण दिया.
इसके बाद सिंह ने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से शोध किया. यह शोध ‘Cycle Vector Space Theory’ विषय पर था. इसके बाद उन्होंने अमेरिका में प्रोफेसर के रूप में काम भी किया और बाद में भारत लौट आए और यहां के प्रतिष्ठित संस्थान आईआईटी, कानपुर और भारतीय सांख्यिकी संस्थान, कोलकाता में भी पढ़ाया लेकिन यहां से जो बीमारी का सिलसिला शुरू हुआ, फिर वह चलता रहा. सिंह ने प्रख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत को चुनौती भी दी थी और ऐसा कहा जाता है कि जब नासा में अपोलो की लॉन्चिंग चल रही थी और कुछ खामी की वजह से 31 कंप्यूटर बंद हो गए थे और इसी बीच सिंह ने गणना शुरू की और जब कंप्यूटर ठीक हुआ तो सिंह की गणना और कंप्यूटरों की गणना एक थी. वह बीएन मंडल विश्वविद्यालय मधेपुरा में विजिटिंग प्रोफेसर भी रह चुके हैं.
सिंह 1973 के बाद से बीमार रहने लगे थे और कुछ दवाइयां भी खाते थे लेकिन इसके बारे में घरवालों को भी नहीं बताते थे. 1976 में वह रांची के अस्पताल में भर्ती भी हुए लेकिन यह बीमारी खत्म नहीं हुई. 1989 में वह लापता हो गए और दयनीय हालत में 1993 में बिहार के ही सारण में मिल भी गए. लेकिन स्थिति सामान्य नहीं हुई.
दरअसल एक गरीब परिवार से आने की वजह से सिंह का इलाज कभी सही तरीके से हो ही नहीं सका और सरकार ने कभी भी इस गणितज्ञ के इलाज के लिए गंभीरता भी नहीं दिखाई. बिहार में वर्षों से उन्हें पागल–पागल कहा जाता था और यह शब्द उनके नाम के साथ चस्पा हो चुका था. सब इतना ही बात करते थे कि बिहार में है कोई पागल गणितज्ञ. अब वह ‘पागल गणितज्ञ’ जा चुका है इस दुनिया से. शायद अब भी बिहार सरकार उनके शोधों को राज्य के स्कूलों–कॉलेजों में छात्र–छात्राओं को दिखाए और उनके बारे में बताए. यही सिंह को दी गई सच्ची श्रद्धांजलि होगी.