मुजफ्फरपुर: आजादी के 70 साल बाद भी एक अदद पुल के लिए जूझ रहा कटरा…

मुजफ्फरपुर: आजादी के 70 साल बाद भी एक अदद पुल के लिए जूझ रहा कटरा…

दिनांक- 28 अप्रैल, 2019. समय 1:45 दिन. प्रखंड- कटरा, जिला मुजफ्फरपुर, संसदीय क्षेत्र मुजफ्फरपुर. अब जो आप सोच रहे हों कि मैं इतनी भूमिका क्यों बना रहा तो सीधे मुद्दे पर आता हूं कि भारतीय लोकतंत्र धीरे-धीरे 70 साल से और बड़ा होता जा रहा है, मगर बागमती के कछार में बसे कटरा ब्लॉक की स्थिति आज भी बड़ी दयनीय है. ब्लॉक का परिसर छोड़ते ही दृश्य बदलने लगते हैं. यहां से कहीं भी आना-जाना या तो जीवटता है या फिर मजबूरी. कभी चचरी तो कभी पीपा. कटरा और औराई ब्लॉक के गांवों में घूमना खुद में एक बड़ा टास्क है.

कभी जॉर्ज तो कभी शाही ने किया प्रतिनिधित्व
ज्ञात हो कि मुजफ्फरपुर लोकसभा का प्रतिनिधित्व कभी जॉर्ज फर्नांडिज ने किया तो कभी एल.पी शाही जैसे नेताओं ने यहां से प्रतिनिधित्व किया. हालांकि निषाद बाहुल्य इस लोकसभा का प्रतिनिधित्व बीते दो दशकों से कैप्टन जय नारायण निषाद के परिवार के पास ही है. पहले पिता और अब पुत्र. चामुण्डा देवी के परिसर से महज 500-700 मीटर की दूरी पर अद्भुत नजारे देखने को मिलते हैं. बागमती नदी का पीपा पुल. साथ ही सटा हुआ चचरी पुल. लगता ही नहीं जैसे राज्य नामक संस्था यहां मौजूद भी है.

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बरसात में स्थितियां बद से बदतर
कटरा (डुमरी) के रहने वाले 30 वर्षीय शंकर महतो हमसे बातचीत में कहते हैं कि यहां जीना अपने आप में एक टास्क है. गर्मी तो फिर भी गर्मी है, मगर बरसात के दिनों में स्थितियां बद से बदतर हो जाती हैं. कटरा से जरा आगे बढ़ने पर हमारी टीम चंगेल पंचायत में दाखिल होती है. चंगेल पंचायत का डूमरी गांव या कहें कि टोला. सरकारी जमीन पर मिट्टी और फूस के घरों में रहते लोग. किसी के पास जमीन का पट्टा नहीं. हमेशा विस्थापित कर दिए जाने का डर. टोले में सिर्फ एक घर में शौचालय है और वो भी खुद के पैसे से बनवाया गया है. यही ग्राउंड रियलिटी है, भले ही चारों तरफ विकास का ढिंढोरा पीटा जा रहा हो. देश विश्वगुरु बनने की ओर अग्रसर हो.

डूमरी गांव में पासी समाज के लोग, ताड़ी ही रोजगार का साधन

सड़क के चौड़ीकरण का खौफ
यहां बसने वाले तमाम लोगों के लिए किसी तरह वहां टिके रहना ही बड़ा मुद्दा है. हमें मौके पर ही मिल गए मुकेश महतो और गणेश महतो इस खौफ में हैं कि कहीं सड़क चौड़ी न कर दी जाए. सड़क का चौड़ीकरण उन्हें घर से वंचित कर देगा. यहां के अधिकांश लोग ताड़ी उतारने और बेचने का काम करते हैं. इस इलाके के सबसे बड़े मुद्दे में कोई एक चीज आनी चाहिए वो यहां की पुलिया है लेकिन अफसोस कि ऐसा नहीं हो रहा. यदि आप दिन में दो-तीन बार यहां की पुलिया पार कर जाएं तो आप दमे के मरीज हो जाएंगे. आसपास के घरों पर धूल की परत चढ़ गई है. ऐसा संभव है कि लोग रोटियों के साथ धूल भी खाते हों लेकिन अब तो बर्दाश्त ही करना है और क्या किया जा सकता है…

उक्त रिपोर्ट ‘द बिहार मेल’ के लिए ग़ालिब ने लिखी है. वे जनआंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय से सम्बद्ध हैं और पूर्व में शिक्षा अधिकारी रहे हैं. इसे रिपोर्ट को संपादित ‘द बिहार मेल’ के घुमन्तू संपादक विष्णु नारायण ने किया है…