काश बेगूसराय के चुनावी शोर के बीच खैरा के इस स्कूल की भी बात होती…

काश बेगूसराय के चुनावी शोर के बीच खैरा के इस स्कूल की भी बात होती…

बेगूसराय साल 2019 आम चुनाव का सबसे हॉट वर्ड है. सबसे अधिक सर्च किया जाने वाला. यू ट्यूब वीडियो के साथ टैग किए जाने पर वीडियो को बूम करा देने वाला की वर्ड. कभी बिहार के लेनिनग्राद के तौर पर मशहूर बेगूसराय में लोगों से बतियाते हुए उनकी राजनीतिक चेतना का अंदाजा स्वत: हो जाता है. सारे देश-दुनिया की नजरें बेगूसराय पर लगी हैं, लेकिन इस बीच यहां ऐसा बहुत कुछ है जिस पर किसी की नजर नहीं. अब आप जो सोच रहे होंगे कि हम क्या भूमिका बनाने लगे तो चलिए बिना किसी भूमिका के आपको बेगूसराय जिले के चेरिया बरियारपुर ब्लॉक (पंचायत मझौल) के खैरा गांव ले चलते हैं.

मुख्य सड़क छोड़ते ही बदल जाते हैं दृश्य
बेगूसराय जिले का ही एक ब्लॉक है चेरिया बरियारपुर. पंचायत है मंझौल. डिस्ट्रिक्ट हेडक्वार्टर से लगभग 25 किलोमीटर दूर. हर दिन खत्म होता कांवर झील इसी ब्लॉक का हिस्सा है. हम जब ब्लॉक से गुजर रही सड़क छोड़कर खैरा के लिए मुड़े तो हमें इस बात का अंदाजा भी न था कि हम कहां जा रहे हैं. मुख्य सड़क से कोई 2-3 किलोमीटर भीतर जाते ही दृश्य अलग हो जाते हैं. दुपहरिया में ही लोटा लेकर खेतों को जाते पुरुष व महिलाएं. पूछने पर पता चलता है कि उन्हें तो अबतक कुछ नहीं मिला. बता दें कि इस टोले में यादव और सदा (मुसहर-मांझी) समुदाय के लोग रहते हैं.

कम लिखता हूं अधिक समझिए
बात करने पर पता चलता है कि न तो उनतक अभी उज्जवला योजना की गैस पहुंची है और न तो जल-नल का पानी. गली-नली (पिच सड़क) भी उनके घरों से पहले ही आकर रुक गई है. गांव के ही दूसरे हिस्से में ऐसी तमाम योजनाएं पहुंच गई हैं. जाहिर है जाति बड़ी चीज है. कम लिखता हूं अधिक समझिए. बेगूसराय को लेकर भले ही पूरी दुनिया में शोर मचा हो लेकिन कोई प्रत्याशी उन तक नहीं पहुंचे हैं. प्रचार गाड़ियां भी नहीं. हमारी बातचीत आगे बढ़ती है. हम स्कूल का जिक्र करते हैं तो एक सुर में खैरा वासी कहते हैं कि एक बार स्कूल की स्थिति चलकर देख लीजिए सर. बीते 10 सालों से स्कूल बन ही रहा है. कक्षाओं में दरवाजे व खिड़कियां तक नहीं हैं. स्कूल में आने वाली महिला शिक्षकों तक को शौच के लिए बाहर जाना पड़ता है.

हमारी नजरों से तो कुछ ऐसी ही दिखीं कक्षाएं…

स्कूल बन गया है मतदान केन्द्र
हम खैरा टोले में बिछी खड़ंजे की सड़क से होते हुए स्कूल तक पहुंचते हैं. ग़ज़ब का दृश्य. कक्षाओं में दरवाजे नहीं, खिड़कियां नहीं. कोई अहाता नहीं. कोई मुख्य दरवाजा नहीं, कोई कहीं से आए और कहीं को जाए. मुझे रवीश के बेगूसराय आगमन पर बीहट के एक स्कूल को आदर्श सरकारी स्कूल के तौर पर प्रदर्शित किया जाना याद आता है. ख्याल आता है कि न जाने खैरा का यह उत्क्रमित विद्यालय कभी आदर्श विद्यालय बन पाएगा या नहीं? हां, एक चीज़ हुई है. लोकतंत्र की आहट यहां तक तो पहुंच ही गई है. स्कूल को मतदान केन्द्र बना दिया गया है. बेगूसराय लोकसभा का रहनुमा यहां के लोग भी चुनेंगे, भले ही इनकी रहनुमाई कोई कभी न करे…

विद्यालय भले ही खस्ताहाल हो लेकिन मतदान तो जरूरी है