पूर्णिया लोकसभा: काश कोई हो जो सुन सके गुंजन की गूंज…

पूर्णिया लोकसभा: काश कोई हो जो सुन सके गुंजन की गूंज…

जिला पूर्णिया, कोशी का छाड़न, प्रखंड बनमनखी के भीतर ही एक गांव है कूड़वाघाट. कोशी का छाड़न बोलें तो जहां कोशी बरसात के दिनों में रौद्र रूप में देखने को मिलती है. तबाही लाती है. कूड़वाघाट के भीतर ही कई टोले हैं. यादव टोला, संथाल टोला, पासवान टोला, मेहता, शर्मा, सहनी और महतो – यानी पिछड़ी और अतिपिछड़ी बिरादरी के लोगों का गांव. इसी गांव से सटकर कोशी की धार बहती है. यही धार बाद में कुरसैला होते हुए गंगा में विलीन हो जाती है. इस इलाके में घूमते हुए बरबस कथा शिल्पी रेणु याद आते हैं. उनके पात्र याद आते हैं. इन गांवों और वहां के जनजीवन को देखकर इस बात का भान होता है कि रेणु यूं ही कथा शिल्पी नहीं हो गए. यहां के जनजीवन और संघर्ष ने उनके कल्पनाओं के वितान को विस्तार दिया.

कहना है कि इसी कुड़वाघाट के हंसदा टोले का एक लड़का है गुंजन. कक्षा 8 में पढ़ता है. बिरसा मुंडा, गांधी और अंबेडकर के बारे में जानता है. स्कूल के बाद बनमनखी में ट्यूशन भी पढ़ने जाता है लेकिन उसके घर बिजली नहीं है. घर कहें कि पूरा टोला ही बिजली से मरहूम है. इतना पैसा भी नहीं कि किरासन का तेल खरीदा जा सके. गुंजन अब तक छात्रवृत्ति से भी मरहूम है. कोई बताता भी नहीं कि आखिर कब मिलेगी छात्रवृत्ति. हेडमास्टर साहब भी उसे बताते नहीं कि छात्रवृत्ति कब मिलेगी.

ग्रामपंचायत जियनगंज का एक संथाल परिवार

पूर्णिया लोकसभा के वोटर 18 तारीख को वोट करेंगे. महागठबंधन ने जहां उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है तो वहीं जद (यू) से संतोष कुशवाहा फिर से ताल ठोंक रहे हैं, लेकिन राजनीतिक पार्टियों की धींगामुश्ती के बीच जनता के मुद्दे हाशिए पर चले गए हैं. जनता के मुद्दे राजनेताओं की जुबां पर आ ही नहीं पा रहे.

कुड़वाटोली का ही एक आदिवासी परिवार

ऐसा नहीं है कि यह सवाल सिर्फ गुंजन का है. उसके हमउम्र अर्जुन टुडू, नरेश किस्कू और किशोर हंसदा की कहानी भी समान ही है. चुनाव के दौरान तो नेतागण घूमते दिखते हैं लेकिन यक्ष प्रश्न यह है कि आखिर गुंजन और उसके साथियों की आवाज किसी को सुनाई क्यों नहीं देती? ऐसा कैसे हो रहा है कि सरकारें बहरी होती जा रही हैं. आजादी के 70 वर्ष हो जाने के बावजूद छात्र सिर्फ इसलिए नहीं पढ़ पा रहे क्योंकि उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही. कोई गुंजन और उसके साथियों की गूंज नहीं सुनी जा रही…

उक्त रिपोर्ट ‘द बिहार मेल’ के लिए ग़ालिब ने लिखी है. वे जनआंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय से सम्बद्ध हैं और पूर्व में शिक्षा अधिकारी रहे हैं. इसे रिपोर्ट को संपादित ‘द बिहार मेल’ के घुमन्तू संपादक विष्णु नारायण ने किया है…