नवादा लोकसभा: फसाना ‘खनवां’ का जिसे शांडिल्य गिरिराज सिंह ने गोद लिया था…

नवादा लोकसभा: फसाना ‘खनवां’ का जिसे शांडिल्य गिरिराज सिंह ने गोद लिया था…

भारत के भीतर साल 2014 में कई चीजें नई हुईं. यूपीए की सरकार हटी. एनडीए की सरकार बनी. नरेंद्र मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने. पहली बार हर सांसदों द्वारा एक गांव/पंचायत गोद लेने की बात कही गई. स्कीम का नाम था -सांसद आदर्श ग्राम/पंचायत. मोदी सरकार के उत्साही सांसदों और मंत्रियों ने गांवों को चिन्हित किया. वहां पहुंचे. फोटो सेशन हुए. कुछ काम भी हुए मगर अधिक बाकी रहे. ऐसा ही एक गांव है खनवां. इसी गांव को गिरिराज सिंह ने सांसद आदर्श ग्राम के तौर पर गोद लिया था.

यहां यह बताना जरूरी हो जाता है कि खनवां कोई आम गांव नहीं. खनवां बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह की जन्मस्थली है. जब हमने खनवां जाने का जिक्र नवादा के अरविंद मिश्रा से किया तो वे बोले, देखिए सारे नेतागण खनवां ही जाते हैं. पहले अरुण कुमार भी खनवां गए. फिर गिरिराज सिंह ने भी खनवां को ही गोद लिया और तो और जीतन राम मांझी भी नवादा में आने के बाद खनवां ही आए. कहना न होगा कि खनवां जातीय श्रेष्ठता का प्रतिनिधि गांव है और नवादा आने पर सारे नेता इधर की ही ओर दौड़ लगाते हैं.

खनवां ग्राम प्रवेश द्वार

नवादा जिला हेडक्वार्टर से खनवां के लिए अच्छी सड़क है. खनवां में दाखिल होते ही दाईं तरफ राजकीय पॉलिटेक्निक दिखता है. साथ ही सटा उच्चतर माध्यमिक विद्यालय और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र दिखाई देता है. ठीक सामने पावर ग्रिड है. थोड़ी दूर आगे चलने पर इलाहाबाद बैंक की शाखा दिखाई देती है. भारतीय हरित खादी ग्रामोदय संस्थान दिखाई देता है. निर्माणाधीन भव्य मंदिर नजर आता है. गांव में ही श्री कृष्ण सिंह पार्क दिखाई देता है लेकिन गांव से ठीक सटे गांवों या कहें कि टोलों में असंतोष है.

राजकीय पॉलिटेक्निक की लगभग पूरी हो चुकी इमारत – राज्य सरकार द्वारा संपोषित

सांसद आदर्श ग्राम को देखने के क्रम में इन चीजों को दरकिनार करना उचित न होगा. यदि सांसद आदर्श ग्राम का कोई मानक बनाया जाए. जैसे साक्षरता – विशेषकर महिला, स्कूली शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, साफ-सफाई, पेयजल/सिंचाई, शौचालय, गलियां, सम्पर्क सड़क, रोजी-रोटी हेतु कौशल विकास प्रशिक्षण केन्द्र, जन-धन योजना, प्रधानमंत्री बीमा सुरक्षा योजना, रुपये कार्ड, डिजिटल ग्राम. तो बिना लागलपेट के कहा जा सकता है कि यहां भारी विरोधाभास देखने को मिलता है. एक पुरानी कहावत याद आती है कि “बबुआन खैलन-सोलखन (वंचित) तकते रहलन” और इस कहावत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

खनवां गांव में निर्माणाधीन मंदिर

यहां हम आपको बता दें कि खनवां से ही सटे खुसीहाल बिगहा और हसनपुरा की स्थितियां व परिस्थितियां जुदा हैं. वहां पानी का संघर्ष है. जातीय संघर्ष स्पष्ट है. पहचान की जद्दोजहद जारी है. श्री कृष्ण सिंह के गांव से सटे गांव में अंबेडकर की मूर्ति को लगवाने का संघर्ष है. उसका अहाता बनवाने का संघर्ष है. यहां लोगों के जन-धन अकाउंट तो खुले हैं लेकिन धन नदारद है और तो और खाते से पैसा कट भी जा रहा. गुहार की कहीं सुनवाई नहीं. स्वच्छ भारत अभियान के तहत शौचालय तो बने हैं लेकिन उनकी स्थिति दयनीय ही है. जल-नल योजना पूरी तरह फेल है. लोगों ने अपने पैसे से चापाकल लगवाए हैं.

खुशहाल बिगहा में जल-नल योजना की पोल खोलती तस्वीर

प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना सेंटर की हकीकत
यहां आपको हम बताते चलें कि गिरिराज सिंह ने अपने कार्यकाल के दौरान खनवां के भीतर एक सोलर चरखा प्रशिक्षण सह उत्पादन केन्द्र खुलवाया. यहां लोग प्रशिक्षण भी लेते हैं और यहां से प्रशिक्षण लेने के बाद कई घरों में चरखे भी चल रहे हैं, लेकिन चरखा कातने में भी झोल है. जब चरखा कताई और उससे होने वाली कमाई पर हमने चरखा केन्द्र में काम कर रहे हसनपुरा के एक सज्जन से सवाल किए तो उनका कहना था कि, साहब हम कताई तो कर ले रहे हैं लेकिन उन्हें कोई ले नहीं जा रहा. हमारा मेहनताना भी फंसा हुआ है. मुख्य सड़क पर ही हमें मिल गए लोग दबी जुबान कहते हैं कि इस प्रशिक्षण केन्द्र में भी सांसद महोदय की हिस्सेदारी है. इस पूरे कुचक्र पर मुझे एक गीत याद आ रहा कि, सुनते थे कि बरसात में बरसेगी शराब, आई बरसात तो बरसात ने दिल तोड़ दिया.

हसनपुरा गांव में चरखा कातने वाले प्रजापति, कताई के बावजूद फंसा है माल

गिरिराज सिंह के ही शब्दों को गर सही मानें तो उन्होंने पूरे नवादा में विकास की गंगा बहा दी है लेकिन सांसद आदर्श ग्राम से सटे हुए टोले ही इससे अछूते रह गए हैं. वहां कई घरों में न उज्जवला स्कीम पहुंची है और न ही जल नल की धारा ही पहुंच पा रही. अधिकांश महिलाएं व पुरुष साक्षर नहीं. नौजवानों के हाथ में धीरे-धीरे स्मार्टफोन तो आ रहे हैं लेकिन रोजगार की संभावनाएं नहीं हैं. खेतों में पानी पहुंचाने का संघर्ष तो है ही और उसपर कोई बात नहीं हो रही.

जीविका दीदी और खुसहाल बिगहा की औरतें…

अंत में यह कहना है कि नवादा के इस प्रतिनिधि गांव में शिवालय के लिए तो चंदा का जुटान हो रहा लेकिन लाइब्रेरी किसी की विश लिस्ट में नहीं. जीविका से खुसहाल बिगहा की महिलाओं का (राज्य संपोषित स्कीम) का जुड़ाव तो दिखता है लेकिन आजीविका चलाने के खास मौके नहीं. खनवां और उससे सटे गांव/टोले इस उम्मीद में हैं कि फिर आएगी बरसात और बरसेगी शराब…

यह रिपोर्ट ‘द बिहार मेल’ के लिए मोहम्मद ग़ालिब ने लिखी है. वे शिक्षा और जनआंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय से सम्बद्ध हैं और फिलवक्त हमारी टीम का हिस्सा हैं.