संसद से पारित कृषि विधेयकों की वजह से पंजाब समेत देश के कई राज्यों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नीत सरकार के खिलाफ किसानों का जमकर गुस्सा फूट रहा है। इसी के चलते पंजाब में शिरोमणि अकाली दल एनडीए (राजग) से अलग हो गया है। गौर करने वाली बात यह है कि पंजाब में होने वाले चुनावों से महज 18 महीने पहले किसानों के मुद्दे पर गठबंधन तोड़ा गया है।
बता दें कि यह निर्णय अकाली दल की कोर समिति की बैठक के बाद लिया गया। शिअद नेता सुखबीर सिंह बादल ने बैठक के बाद प्रेस को संबोधित किया और घोषणा की कि वह अब भाजपा नीत एनडीए गठबंधन का हिस्सा नहीं होंगे। सुखबीर बादल ने कहा कि शिरोमणि अकाली दल शांति के अपने मूल सिद्धांतों, सांप्रदायिक सद्भाव और सामान्य रूप से पंजाब, पंजाबी और विशेष रूप से किसानों और किसानों के हितों की रक्षा करेगा। उन्होंने बताया कि यह निर्णय पंजाब के लोगों, विशेषकर पार्टी कार्यकर्ताओं और किसानों के परामर्श से लिया गया है। आपको बता दें कि लोकसभा में इस विधेयक की चर्चा के दौरान ही करीब दस दिन पहले मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने मोदी सरकार में अपने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। हरसिमरत कौर बादल केंद्रीय खाद्य एवं प्रसंस्करण उद्योग मंत्री थीं।
भाजपा ने पूरे देश का सत्यानाश किया : तनवीर सिंह धालीवाल
शिरोमणि अकाली दल के प्रवक्ता तनवीर सिंह धालीवाल ने द बिहार मेल से बातचीत करते हुए इस फैसले का स्वागत किया। उन्होंने ने कहा कि अकाली दल किसानों और पंजाब के लोगों से जुड़ी हुई पार्टी है और उनके हित में ही हमेशा फैसले लेगी। भाजपा ने पंजाब का बहुत नुकसान किया है। नोटबंदी के बाद अब भाजपा दूसरा नुकसान करने चली थी। भाजपा ने पूरे देश का सत्यानाश किया। ना तो बीजेपी ने पंजाब का कर्जा माफ किया और ना ही कोई बड़े आर्थिक पैकेज का ऐलान किया। फिर भी अकाली दल अपनी दोस्ती निभाता रहा लेकिन इन विधेयकों से भाजपा ने बड़ा नुकसान करने की कोशिश की। लगभग 80 प्रतिशत अकाली कार्यकर्त्ता किसान हैं, इसलिए ये गठबंधन तोड़ने का फैसला बिलकुल सही लिया गया है।
कांग्रेस “सिंगल मैन” पार्टी, अकाली दल में कोर समिति लेती है फैसले
हरसिमरत कौर बादल के इस्तीफे पर पंजाब की कांग्रेस इकाई अकाली दल को आड़े हाथों ले रही थी और गठबंधन में बने रहने को लेकर भी हमले बोल रही थी। इसको लेकर तनवीर धालीवाल ने कांग्रेस को जमकर लताड़ा और कहा कि अकाली दल के फैसले कोर समिति की बैठक में लिए जाते हैं। सभी सदस्यों की रजामंदी के बाद ही कोई फैसला लिया जाता है। लेकिन कांग्रेस तो सिंगल मैन पार्टी हैं। उन्हें ऊपर से आदेश मिलते हैं और फिर वो पूरे किये जाते हैं। हरसिमरत कौर बादल के पास केंद्र में मंत्री पद के अभी भी 4 साल बचे हुए थे और प्रधानगी किसे नहीं पसंद? फिर भी उन्होंने किसानों के हित में अपना मंत्री पद त्याग दिया।
शिअद प्रवक्ता तनवीर सिंह धालीवाल
1998 में हुआ था अकाली दल–एनडीए का गठबंधन
1998 में जब लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी ने एनडीए बनाने का फैसला किया था, तो उस वक्त जॉर्ज फर्नांडीज की समता पार्टी, जयललिता की अन्नाद्रमुक, प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व वाला अकाली दल और बाला साहेब ठाकरे की शिवसेना इस गठबंधन में सबसे पहले शामिल होने वालों में से एक थे। समता पार्टी बाद में जद(यू ) बन गई। जद(यू) एनडीए से एक बार अलग होकर वापसी कर चुकी है। शिवसेना अब कांग्रेस के साथ है। अकाली दल ही ऐसी पार्टी थी, जिसने अब तक एनडीए का साथ नहीं छोड़ा था।
अकाली दल को पंजाब के बड़े वोट बैंक से हाथ धोना पड़ता
पार्टी में फूट से जूझ रहे अकाली दल के लिए मोदी सरकार के कृषि संबंधित बिल पंजाब में उनकी जीत के सपनों पर पानी फेर सकते थे , क्योंकि कृषि प्रधान क्षेत्र मालवा में अकाली दल की पकड़ है। अकाली दल को 2022 के विधानसभा चुनाव दिखाई दे रहे हैं। 2017 से पहले अकाली दल की राज्य में लगातार दो बार सरकार रही है। 2017 के विधानसभा चुनाव में 117 सीटों में से अकाली दल को महज 15 सीटें मिली थीं। अकालियों को लग रहा था कि अगर वह इनके लिए हामी भरती तो पंजाब के बड़े वोट बैंक यानी किसानों से उसे हाथ धोना पड़ता।
गठबंधन टूटने से पंजाब की राजनीती पर असर
आने वाले चुनावों में शिरोमणि अकाली दल गठबंधन के टूटे जाने को अच्छे से भुनाने के मूड में दिख रही है। पहले हरसिमरत कौर बादल का केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा और अब गठबंधन का टूटना पंजाब में सत्तधारी पार्टी कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। 2017 के चुनावों में 20 सीट जीतकर दूसरे नंबर पर आने वाली आम आदमी पार्टी 2022 में पंजाब में जीत के सपने सजाये हैं। जहां तक सीटों की बात करें तो पिछले चुनाव में अकाली दल की ओर से भाजपा को 23 सीटें दी गयी थी जिसमे से भाजपा महज 5 सीट ही जीत पायी थी। भाजपा पर इस गठबंधन के टूटने का असर ज़्यादा नहीं होने वाला क्योंकि पंजाब से लोकसभा में अकाली दल के दो सांसद हैं और एक राज्यसभा में हैं। इससे दोनों सदनों में एनडीए की संख्याबल पर कोई खास फर्क नहीं पड़नेवाला है।