बिहार प्रांत के पटना विश्वविद्यालय में एक साथ कई चीजें चल रही हैं. कभी एक-दूसरे को पानी पी-पीकर गरियाने वाली पार्टियां और उनके छात्र संगठन आइसा, एआईएसएफ और छात्र राजद इस बार एक साथ आकर चुनाव लड़ रहे हैं. लेफ्ट के कहे अनुसार कभी गुंडागर्दी और जंगलराज का पर्याय रह चुका राष्ट्रीय जनता दल इस समय लोकतंत्र का प्रहरी है. जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष चंद्रशेखर की हत्या अब कोई मसला नहीं.
जद(यू) और भाजपा का नेतृत्व आमने-सामने है. आरएसएस और जद(यू) के छात्र संगठन एक-दूसरे को अपनी मजबूती का एहसास करा रहे हैं. मेनस्ट्रीम और स्टूडेंट पॉलिटिक्स के बीच बची रहने वाली बारीक सी लाइन अब कहीं देखने को नहीं मिलती. वैचारिकी पर अवसरवादिता हावी है. दिखावे के लिए अब कुछ भी ढंका-छिपा नहीं. खुला खेल फर्रुखाबादी जारी है.
जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष चंद्रशेखर का सवाल
युनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट की ओर से अध्यक्ष पद की उम्मीदवार भाग्य भारती से जब जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष चंद्रशेखर की हत्या पर सवाल कहा कि, “हम अब भी कॉमरेड चंदू को याद करते हैं. उनके दिखाए गए रास्ते पर चलने की कोशिश करते हैं. राजद से मिलकर चुनाव लड़ने के बावजूद हमारे मतभेद जस के तस हैं. उनका लोकतंत्र और तमाम न्यायालयी प्रक्रिया में विश्वास है”.
लेफ्ट के इन तमाम दावों को कभी एआईएसएफ के सदस्य रहे और इस बार स्वतंत्र रूप से अध्यक्ष पद के उम्मीदवार राकेश प्रसाद कहते हैं कि लेफ्ट भी पूरी तरह जातिवादी है. उनके जय भीम के नारे में समुचित प्रतिनिधित्व की बातें नहीं. उन्होंने कॉमरेड चंद्रशेखर और अजित सरकार के सवालों पर भी समझौते कर लिए. चुनाव में जीत ही उनका लक्ष्य बन गया है.
युनाइटेड डेमोक्रेटिक लेफ्ट की ओर से महासचिव पद की उम्मीदवार और आइसा से सम्बद्ध प्रियंका प्रियदर्शिनी गठबंधन के सवाल और सहजता के सवाल पर कहती हैं, “वो सहज हैं. उनके मतभेद हैं. मतभेद हैं इसलिए वे अलग-अलग पार्टियां हैं. ऐसे समय में जब विरोधी ताकतें रोजगार, शिक्षा, लोकतंत्र और महिला सुरक्षा पर लगातार हमले कर रही हैं. ठीक उसी समय में ऐसी जरुरतें हैं कि उनके खिलाफ एकजुटता से खड़ा हुआ जाए.
प्रशांत किशोर अब सबके सामने हैं
कभी पार्श्व में रहने वाले कथित कुशल रणनीतिक व राजनीतिक सलाहकार ‘प्रशांत किशोर’ अब बिहार के सत्ताधारी दल से सम्बद्ध हैं. अपने छात्र संगठन के लिए पर्याप्त सक्रिय हैं. बीती शाम उन्होंने किन्हीं काम का हवाला देते हुए कुलपति से कुलपति आवास में मुलाकात की. दूसरे छात्र संगठनों ने उनका विरोध किया. उनकी बाहर निकलती गाड़ी पर पथराव हुआ. उन पर छात्र संघ चुनाव में धनबल और बाहुबल की इंट्री कराने के आरोप लग रहे हैं. स्पष्ट तौर पर कहें तो अब सारे प्रपंच सामने हैं. छात्रों और नौजवानों के संघर्ष में बुढ़वे-ठलवे दाखिल हो चुके हैं.
प्रशांत किशोर के सवाल पर विद्यार्थी परिषद की ओर से महासचिव पद के उम्मीदवार मणिकांत कहते हैं कि वे छात्र राजनीति को पैसे का खेल बना देना चाहते हैं. यहां के शिक्षित छात्र सारी चीजें समझते हैं. यही उनकी हताशा की भी वजह बन रही है. उन्होंने विद्यार्थी परिषद के कार्यालय पर छापा तक मरवा दिया है. लेफ्ट की राजनीति से साबका रखने वाले रेयाज कहते हैं कि पीके का गुबार इस बार फूट जाएगा. पटना यूनिवर्सिटी सबको उसकी उचित जगह तक पहुंचा देता है. प्रशांत किशोर को भी पहुंचाएगा.
अब मेनस्ट्रीम ही परम सत्य है
लोकतंत्र की नर्सरी कहे जाने वाला विश्वविद्यालय अब पूरी तरह मेनस्ट्रीम के प्रभाव में हैं. सत्ता में शामिल दलों के नेता सत्ता और अपने रसूख का खुलेआम इस्तेमाल कर रहे हैं. विपक्ष के नेता सत्ताधीशों से नैतिकता बरतने की बात कह रहे हैं. बीते रोज जहां एक ओर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने ताबड़तोड़ ट्वीट किए. वहीं कुलपति आवास में प्रशांत किशोर की मुलाकात ने अफवाहों के बाजार को गर्म कर दिया है.
प्रशांत किशोर फैक्टर पर जन अधिकार छात्र परिषद से जुड़े और हालिया यूनियन के सदस्य आजाद चांद कहते हैं कि प्रशांत किशोर का गुबार इस बार फूट जाएगा. उन्होंने चुनाव में धनबल और बाहुबल की इंट्री कराई है. जब उनसे पप्पू यादव की ओर से बरती गई सक्रियता पर सवाल किए गए तो वे उस सवाल से बचने की कोशिश करने लगे. हालांकि उन्होंने अपनी सक्रियता और समीकरण के मार्फत जीत की बातें जरूर कहीं.
इन तमाम बातों का कहने का मतलब यह है कि चुनावी परिणाम चाहे जिसके पक्ष में आएं लेकिन जिस प्रदेश की छात्र राजनीति की बात जय प्रकाश आंदोलन के जिक्र से ही शुरू होती हो. उस प्रदेश की छात्र राजनीति में वो ताब नहीं बची. नैतिकता नहीं बची. छिटपुटिया पद-प्रतिष्ठा हासिल करने के लिए हर तरह के समझौते किए जा रहे हैं. परिवारवाद और भाई-भतीजावाद हावी है. वैचारिकी और संघर्ष की बातें अब इतिहास की बातें हैं…