देश की राजधानी दिल्ली में चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं. एग्जिट पोल्स की मानें तो वहां आम आदमी पार्टी फिर से सत्ता में वापसी कर रही है. 11 तारीख के परिणाम के बाद सबकी नजरें बिहार पर होंगी. ऐसे में बिहार के भीतर राजनीतिक तौर पर सक्रिय अलग-अलग पार्टियां अभी से अपनी चुनावी गणित और समीकरण को साधने में लग गई हैं. भाजपा के लोग जहां संत रविदास जयंती मनाकर दलित समुदाय को साधने की कोशिश में दिखे, वहीं जद (यू) के लोग बीते रोज टेक्निकल प्रकोष्ठ की बैठक कर रहे थे. बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी (राजद) के भीतर भी नए समीकरण साधने, और पुराने समीकरण तोड़ने की कोशिशें होती दिख रही हैं. स्पष्ट तौर पर कहें तो राजद खुद पर चस्पा ‘माय’ समीकरण से निकले की जद्दोजहद में लगा है. राजद के लोग इस बीच MY के बजाय A to Z की बात करते देखे जा रहे हैं.
क्या है ‘MY – माय’ समीकरण?
यहां हम आपको बताते चलें कि हिन्दी में ‘MY’ का मतलब मुस्लिम और यादव है. वैसे तो इस समीकरण और चुनावी गुणा-गणित का इतिहास लालू प्रसाद के दौर से पहले का है लेकिन भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी का रथ रोकने के बाद से ‘मुस्लिम और यादव’ भारी संख्या में राजद के पक्ष में मतदान करते रहे. इससे लालू प्रसाद की सियासी हैसियत में इजाफा हुआ. अव्वल तो यादवों को अपनी जाति का एक मजबूत नेता मिला और दूजा मुस्लिमों को राज्य के भीतर एक रहनुमा और सुरक्षा का भाव. पार्टी ने भी इस समीकरण के मद्देनजर अपने उम्मीदवार उतारे और जितवाए, लेकिन बीते लोकसभा चुनाव में अपेक्षाकृत परिणाम न मिलने पर पार्टी के भीतर मंथन जारी है.
पार्टी ने पहले सामाजिक न्याय का हवाला देते हुए जिला अध्यक्ष बदले. अनुसूचित जाति/जनजाति के के 45 फीसद लोगों को जिलाध्यक्ष बनाया और उसके बाद संगठन का शीर्ष नेतृत्व लगातार फॉलोअप कर रहा है कि किसी तरह का भीतरघात न हो. पार्टी के विधायक अपने जिलाध्यक्षों का साथ दें. हटाए गए जिलाध्यक्षों की मान-मनौव्वल जारी है. तेजस्वी यादव, जगदानंद सिंह, शिवानंद तिवारी, रघुवंश प्रसाद सिंह और रामचंद्र पूर्वे पार्टी के पदाधिकारियों के साथ बैठकें कर रहे हैं.
पहले साढ़े चार के नेतृत्व से बाहर निकले राजद
राजद की इन तमाम कोशिशों पर भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष सह विधायक सम्राट चौधरी कहते हैं, “देखिए प्रदेश में सभी को अपना नेतृत्व चाहिए. राजद के लोग नए समीकरण की बात भले ही कह रहे हैं लेकिन वे पहले वे साढ़े चार के नेतृत्व से बाहर निकलें. साढ़े चार बोले तो – लालू प्रसाद जी, राबड़ी देवी जी, तेज प्रताप, मीसा भारती और तेजस्वी. तब जाकर ही बिहार की जनता उनपर विश्वास कर सकती है.” भाजपा के भीतर ऐसा कुछ किए जाने के सवाल पर वे बोले कि उनकी पार्टी तो पहले से ही सभी को लेकर चल रही है. उसका अपना स्वरूप है. वो तमाम वर्गों के नेतृत्व को साथ लेकर चलते हैं.”
राजद ने बहुत बड़ा दांव खेला है
देखिए राजद ने एक बहुत बड़ा दांव खेला है. यह स्वागत योग्य कदम है. वर्तमान राजद ने कुछ ऐसा करने की कोशिश है जिस धुरी पर लालू प्रसाद ने अपने राजनीति की शुरुआत की थी. हालांकि वह धुरी समय के साथ कमजोर होती गई. अब राजद के नेतृत्व को यह सुनिश्चित करना होगा यह बदलाव प्रतीकात्मक न हो. वे जिन्हें भी मौके दे रहे हैं उनमें विश्वास दिखाया जाए. शक्ति के आदान-प्रदान के साथ ही सम्मान का भाव हो. अगर ऐसा होता है तो यह चमत्कारिक होगा. “ऐसा कहना है कांग्रेस के राष्ट्रीय समन्वयक और वर्तमान में बिहार कांग्रेस के लिए सक्रिय शाश्वत गौतम का.
लालू प्रसाद की अनुपस्थिति में हो रहे चुनाव
गौरतलब है कि राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद चारा घोटाले के अलग-अलग मामलों में राज्य से बाहर सजा काट रहे हैं, हालांकि प्रदेश में पार्टी के कमान संभाल रहे तमाम लोग उनके हवाले से ही तमाम बदलाव किए जाने की बात कह रहे हैं. पार्टी के भीतर अलग-अलग गुट बनने का खंडन करते हुए बीते रोज तेजस्वी बोले कि पार्टी के भीतर अलग-अलग गुट नहीं हैं. सभी राजद के लोग लालू गुट के हैं. हालांकि पार्टी के कई विधायक इस पूरे सांगठनिक बदलाव के दौरान अनुपस्थित रहे. चंद्रिका राय और तेज प्रताप यादव का नाम इस क्रम में ऊपर है.
कितना सफल होगा ‘ए टू जेड’ समीकरण?
यहां हम आपको यह भी बताते चलें कि राजद नेतृत्व ने सामाजिक समीकरण के आधार पर टिकट बांटने का ऐलान अभी से कर दिया है. राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह दावे कर रहे हैं कि वे पार्टी के जनाधार को 90 के दौर में ले जाएंगे. राजद के भीतर हो रही हालिया फेरबदल पर पटना के ए. एन. सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज के पूर्व निदेशक प्रोफेसर डी. एम. दिवाकर कहते हैं, “देखिए लालू प्रसाद के उभार के साथ ही पिछड़ी और दलित जातियों की राजनीतिक चेतना का उभार हुआ. वे लालू प्रसाद के साथ जुड़े. बीतते समय के साथ ही उनमें नेतृत्व करने की ललक भी जगी. जब यह मौका उन्हें लालू प्रसाद के साथ नहीं दिखा तो उन्होंने दूसरी पार्टियों का रुख किया. उन्हें कुछ मौके भी मिले, लेकिन वे नाकाफी रहे. अलग-अलग पार्टियों के भीतर पहले से ही एक स्थापित नेतृत्व था. ऐसे में वे अलग-थलग पड़े. लालू प्रसाद ने पहचान की राजनीति के बजाय वैचारिक राजनीति को तरजीह दी. जैसे शिवानंद तिवारी, रघुवंश प्रसाद सिंह और जगदानंद सिंह. ये लोग अगड़े होने के बावजूद लालू प्रसाद के साथ मजबूती से खड़े हैं. लालू प्रसाद इस मामले में स्मार्ट हैं और इस समीकरण को साधना उनके पक्ष में जाएगा.”
अब यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है कि बिहार में सत्ता की कुर्सी इस बार किसे मिलेगी, लेकिन अलग-अलग पार्टियां अभी से अपने समीकरण साधने लगी हैं, अपनी संभावनाएं तलाशने लगी हैं…