रिपोर्टर डायरी- जब सिंघु बॉर्डर पर आंसू गैस की बौछार के बीच मेरी सांस लगभग रुक सी गई थी…

रिपोर्टर डायरी- जब सिंघु बॉर्डर पर आंसू गैस की बौछार के बीच मेरी सांस लगभग रुक सी गई थी…

26 नवंबर की शाम मैं (आकाश पांडे) अपने दोस्तों के साथ हरियाणा-पंजाब से दिल्ली की तरफ आ रहे किसानों के मार्च को कवर करने के लिए निकला. मेट्रो, ऑटो से होते हुए हम सिंघु बॉर्डर पर पहुंच चुके थे. किसान अभी दिल्ली बॉर्डर से लगभग 100-150 किलोमीटर दूर थे लेकिन पुलिस ने सिंघु बॉर्डर को दो देशों के बॉर्डर के रूप में तब्दील कर दिया था. हम वहां से पैदल ही आगे बढ़े. करीब एक-डेढ़ किलोमीटर आगे जाने के बाद हमने पानीपत के लिए अपनी यात्रा टुकड़ों में शुरू की. सिंघु बॉर्डर से बालगढ़, बालगढ़ से पानीपत ,वहां से हम अंत में किसानों के पास यानि पानीपत टोल नाका पर पहुंच गए.

वहां का नजारा अपने आप में पूरी कहानी बता रहा था. पंजाब के किसानों के ट्रैक्टर, ट्रालियां अपने आप में उनकी समृद्धि की कहानी कह रही थीं. उनके चेहरे पर अपनी मेहनत का गर्व साफ नजर आ रहा था. किसानों के दिमाग में एक बात तो साफ थी कि मोदी सरकार की ओर से लाए गए तीन कृषि कानून किसानों के हक में नहीं हैं. मैंने जितने भी किसानों से बात की, एक बात सबने कही कि मोदी सरकार ने आज तक पूरे देश को बेवकूफ बनाया. बच्चे बेरोजगार हैं. खेती के भरोसे घर चलता है. खेती ही उनके लिए आमदनी का एकमात्र स्रोत है . यदि मोदी सरकार इस पर हमला करेगी तो किसान अपने हक के लिए मर-मिटने के लिए तैयार हैं.

किसानों अपने ट्रैक्टरों और ट्रकों से तो आए ही हैं और साथ ही राशन, पानी के टैंकर, रजाई-गद्दे आदि सभी जरूरी समान सहित कुदाल, फावड़ा जैसे अन्य खेती के औजार भी लाए हैं. ऐसा भी नहीं दिखा कि किसान इन तमाम जरूरी चीजों का इस्तेमाल सिर्फ अपने लिए कर रहे हैं. मैंने देखा कि पानीपत बॉर्डर पर किसान लगातार रात भर वहां मौजूद लोगों को भोजन-पानी कराते रहे. इसमें मीडियाकर्मियों समेत पुलिस और फोर्स के जवान भी दिखे.

रात में पता चला कि किसानों का एक जत्था राई तक पहुंच गया है और वहां पर पुलिस ने रात में एक बजे के करीब कड़कड़ाती ठंड़ में किसानों पर वॉटर कैनन का प्रयोग किया है. हमने भी राई की तरफ जाने की कोशिश की लेकिन पुलिस ने सारे रास्ते बंद कर दिए थे. सड़कें खोद दी गई थीं. आवागमन बंद कर दिया गया था. गांव-गांव रास्ता पूछते हुए हम सुबह ही राई पहुंच पाए. वहां भी पुलिस ने रास्ता बंद कर रखा था.

यहां एक बात पता चली कि पुलिस जिन ट्रकों से सड़कों को जाम कर रही थी असल में वो ट्रक उनके नहीं थे. वो तो रात में चलने वालें लोडेड ट्रक थे. ट्रक ड्राइवरों का कहना था कि पुलिस ने जबरी उनकी चाभी छीन कर अपने पास रख ली है. एक ट्रक ड्राइवर का कहना था कि उसके ट्रक में आटा भरा है. अगर किसानों ने ट्रक पलट दिया तो मेरा क्या होगा? राई से भी बाधाओं को पार करते हुए किसान आगे बढ़े. राई में एक अच्छी चीज यह देखने को मिली कि यहां अधिकारियों ने किसानों पर लाठीचार्ज या किसी भी तरह का बल प्रयोग नहीं किया. किसानों ने अधिकारियों से साफ कह दिया कि या तो आप हमें मार दीजिए या फिर हट जाइए और हमें दिल्ली जाने दीजिए.

वहां से किसानों का कारंवा आगे बढ़ा और आ पहुंचा दिल्ली-हरियाणा के बार्डर सिंघु बॉर्डर पर. यहां पुलिस ने किसानों को रोकने के लिए अपनी तरफ से सारे इंतजाम कर रखे थे. पुलिस ने कंटीले तारों की बाड़ बनाकर, बैरिकेड लगाकर, बड़े-बड़े पत्थर लगाकर कारवां को तीन लेयर में रोकने की तैयारी की थी. किसान सिंघु बार्डर पर रूक गए. किसानों ने अपने लिए खाना पकाना शुरू कर दिया था.किसान बनाने-खाने में व्यस्त हो गए. बाकी कुछ किसान पुलिस के सामने कुछ दूरी पर खड़े थे.

अपने तमाम इंतजामों के साथ किसान

मैं भी लगातार किसानों से बातचीत कर रहा था. किसानों से उनके मन की बात, खेती, किसानी, आंदोलन में युवाओं की भूमिका, जवान-किसान को आमने-सामने खड़ा करने आदि सवालों को लेकर बात कर ही रहा था कि तभी पुलिस एकदम से आंसू गैस के गोले दागने लगी. चारों तरफ भगदड़ मच गई. लोग जहां-तहां भागने और खुद को बचाने की कोशिश करने लगे. मैं भी वहां से खुद को बचाते हुए भागा. चारों तरफ ऐसा मंजर था कि आंख खुल ही नहीं रही थी, तिसपर से जलन. आंख खोलने पर कुछ भी दिखाई नहीं पड़ रहा था. मैं बस लोगों की आवाज और पांवों की आवाज सुनकर न जाने किस दिशा में भागा जा रहा था. सांस लेना मुश्किल हो गया था, लगा जैसे सांस रुक सी गई है. मैं बदहवास बस भागा जा रहा था.

संभलने में लगभग एक घंटे लग गए. जब हालत थोड़ी ठीक हुई तो मैं वापस किसानों के बीच पहुंचा. पुलिस तब भी वाटर कैनन और आंसू गैस के गोले लगातार दाग रही थी. मजबूरन मुझे फिर से पीछे हटना पड़ा. इसी बीच दिखा कि आंसू गैस का एक गोला सीधे एक किसान के सिर पर गिरा जिससे उसका सिर फट गया था और लगातार खून बह रहा था.

कंटीले तार जिन्हें हम आमतौर पर सीमाओं पर देखा करते हैं-

किसानों ने अपने नेताओं की भी बात मानने से तब इनकार कर दिया जब नेताओं ने बुराड़ी जाने को कहा. किसानों ने साफ मना करते हुए कहा- जाएंगे तो जंतर-मंतर वरना यहीं शांति से बैठेंगे. मेरे मन में ऐसे सवाल बार-बार उठ रहे थे कि आंसू गैस और वाटर कैनन इतना दुख देते हैं लेकिन फिर भी ये किसान क्या सोचकर डटे हुए हैं? अगर अपने विचारों और स्टैंड को लेकर किसान क्लियर नहीं होते तो इतनी यातनाओं सहने के बाद वे अब तक वापस लौट गए होते…

– यह अनुभव (रिपोर्टर डायरी) ‘द बिहार मेल’ के लिए आकाश पांडे ने लिखी है. आकाश काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से स्नातक हैं और भारतीय जन संचार संस्थान के छात्र रहे हैं…