मध्य प्रदेश चुनाव कवर करते-करते जरा सी ऊब और थकान चढ़ गई थी. देह पर नहीं, जेहन पर. आदमी सोचता है कि ग्राउंड पर जायेंगे. जनता से मुद्दों पर बात करने की कोशिश करेंगे लेकिन जनता ग़ज़बै करती है. बताइये मध्यप्रदेश की लगभग 25-30 विधानसभाओं में एक इंसान नहीं मिला जिसने ‘व्यापमं स्कैम’ पर बात की हो. दिल्ली में बैठकर और सोशल मीडिया स्क्रॉल करते हुए तो लगता है जैसे इन्हीं मुद्दों पर सरकार बनेगी या गिर जाएगी, बहरहाल…
मध्य प्रदेश से दिल्ली पहुंचा. वहां 29-30 को किसान मुक्ति मार्च होने वाला था. 29 की सुबह से किसानों का रामलीला मैदान में जुटने का सिलसिला शुरू हुआ और अगले दिन तक जारी रहा. कर्ज माफी और स्वामीनाथन कमिटी की सिफारिशों को लागू करना अहम मुद्दे रहे. समझ आया कि खेती-किसानी में भारी झोल है और उससे भी बड़ा झोल उनके मुद्दे पर राजनीति करने वाले पैदा करते हैं. 30 की सुबह संसद मार्ग पर अद्भुत दृश्य देखने को मिला. रंग-बिरंगे झंडे. देश के अलग-अलग हिस्सों से आए किसान.
इस जुटान की बड़ी उपलब्धि महिला किसानों की मौजूदगी रही. ऐसा जैसा पहले कभी नहीं देखा. साल 2013 से दिल्ली में ही टिकान है. कई जलसे और प्रदर्शन देखे और कवर किए हैं. यह प्रदर्शन अखिल भारतीय स्तर का था. ओडिसा, बिहार, छत्तीसगढ़ से लेकर पंजाब और बंगाल तक के किसान. दोपहर होते-होते मंच के नीचे किसान और मंच पर विपक्ष. केजरीवाल, शरद पवार, शरद यादव, सीताराम येचूरी से लेकर राहुल गांधी तक. जिग्नेश मेवानी और कन्हैया भी मौजूद. इस जुटान में अहम भूमिका अदा करने वाले योगेंद्र यादव कहीं कोने में दिखे. सबकुछ प्रतीकात्मक. कांग्रेस की ओर से कर्ज माफी के दावे. किसानों की फिक्रमंदी की बातें. जो सच में दिखा वो था किसानों का गुस्सा और हताशा. अभी गुस्सा वर्तमान सरकार के प्रति लेकिन विपक्ष के प्रति उदासीनता का भाव.
दिल्ली से शाम को चलने वाली ट्रेन अगले दिन सुबह चली. 11 घंटे लेट और दिल्ली से पटना पहुंचाते-पहुंचाते 16 घंटे लेट. मन में आया कि ट्रेन की लेटलतीफी के खिलाफ भी जुटान हो. करोड़ों तो भुक्तभोगी हैं ही. पटना पहुंचा तो जात दिखी. जात की बहस दिखी. चारों तरफ जातीय जुटान और रैलियों वाले पोस्टर दिखे. पटना विश्वविद्यालय भी पहुंचा. वहां अलग ही खेला चल रहा था. लेफ्ट ने राजद के साथ मिलकर लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट बना लिया. चंदू को लेफ्ट वाले अब भी अपना आदर्श उद्धरित करने में जुटे हैं लेकिन उनके तर्क रास नहीं आ रहे. चंदू के हत्यारों को धक्का देने के नारे लगाने वाला लेफ्ट अब लाल-लाल के बजाय लाल-हरा लहराने की असफल कोशिश में दिखा. लालू-राबड़ी के साथ ही लाल सलाम के नारे लगते दिखे. अध्यक्ष पद के प्रत्याशी को लालू ज़िंदाबाद कहने में आपत्ति रही लेकिन लालू की पार्टी से गठबंधन के लिए उसके पास पर्याप्त तर्क हैं. हालांकि परिणाम उनके अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहे.
प्रशांत किशोर अब खुलकर सामने आ गए हैं. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और छात्र जद (यू) आमने-सामने दिखे. शराबबंदी को अपना चुनावी एजेंडा बनाने वाले नीतीश कुमार के छात्र संगठन से कथित तौर पर झारखंड के शराब कारोबारी का लड़का अध्यक्ष पद का प्रत्याशी था और विजयी रहा. प्रशांत किशोर पर विश्वविद्यालय प्रशासन पर दबाव डालने के आरोप लग रहे हैं. विद्यार्थी परिषद का बागी और पिछली बार का अध्यक्ष अब जनता दल (यू) का हिस्सा है. पीके का मैनेजमेंट सफल रहा.
मन था कि डायरी एकाकी लिखूं… फिर मन किया कि सबके लिए लिख देता हूं. फीडबैक दीजिएगा कि कैसा रहा…