शिवहर लोकसभा: चित्तौड़गढ़ के नाम से मशहूर शिवहर में इसबार किसके सिर बंधेगा सेहरा?

शिवहर लोकसभा: चित्तौड़गढ़ के नाम से मशहूर शिवहर में इसबार किसके सिर बंधेगा सेहरा?

जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव के दिन नजदीक आते जा रहे हैं. वैसे-वैसे चुनावी गहमागहमी बढ़ती जा रही है. सभी इलाकों में नेताओं की आवाजाही बढ़ गई है. राजनेता अपनी सुविधानुसार कहीं से हटकर कहीं सट रहे हैं. चाय की दुकानों पर राजनीतिक चर्चाएं तेज हो गई हैं.  नेता और कर्मठ कार्यकर्ताओं ने पार्टी के दफ्तरों के चक्कर लगाने शुरू कर दिए हैं. अखबारों के खरीद-फरोख्त में भी बढ़ोतरी हुई है. वोट के ठेकेदारों ने भी अपने समीकरण सेट करने शुरू कर दिए हैं. कुल मिलाकर सर्दी के मौसम को चुनाव की आहट ने समय से पूर्व ही विदा कर दिया है. ऐसा केवल बिहार में ही नहीं है. यह समूचे देश की स्थिति है लेकिन शिवहर लोकसभा क्षेत्र की स्थिति जरा जुदा है.

शिवहर बोले तो चित्तौड़गढ़!

शिवहर लोकसभा क्षेत्र एक राजपूत बहुल लोकसभा है. राजनीतिक गलियारे में इसे कभी चित्तौड़गढ़ कहा जाता था.  बिहार के सभी राजपूत नेताओं की नज़र इसलिए भी शिवहर लोकसभा क्षेत्र पर होती है. हालांकि यह तमगा अब उतना प्रासंगिक नहीं रहा. 1999 के लोकसभा चुनाव मे राजपूतों के कथित कद्दावर नेता आनंद मोहन सिंह को राजद के अनवारुल हक़ ने पराजित कर दिया. उससे पहले वे समता पार्टी के बैनर तले लड़े थे. उनके हारने के साथ ही शिवहर लोकसभा क्षेत्र पर से राजपूत समुदाय की पकड़ कमजोर होती गई. आज स्थिति यह है कि बीते दो लोकसभा चुनावों से वैश्य समुदाय की रामा देवी शिवहर से सांसद है. उम्र के आधार पर कहीं उनका टिकट कटा भी तो उनके पुत्र देवाशीष किशोर भाजपा के उम्मीदवार हो सकते हैं.

तस्वीर क्रेडिट- लोकसभा टीवी (रामा देवी, सांसद शिवहर)

अभी सीट शेयरिंग पर मामला उलझा हुआ है. यह अब तक तय नहीं है कि यह सीट एनडीए और महागठबंधन में किस पार्टी के खाते में जाएगी लेकिन टिकटार्थियों की लाइन लंबी होती जा रही है. सभी के पास अपने समीकरण हैं. क्षेत्र के नेताओं से लेकर प्रदेश के दूसरे इलाके से भी नेता शिवहर में जमीन तलाश रहे हैं. एनडीए के नेताओं और महागठबंधन के नेताओं के दौरे तेज हो गए हैं लेकिन इन नेताओं मे कुछ ही ऐसे नाम है जो आम जनता की ज़ुबान पर हैं. महागठबंधन से शमशेर आलम, रामा सिंह और लवली आनंद उन नामों में सर्वोपरि हैं.

एनडीए से ज्यादा महागठबंधन की उम्मीदवारी पर नजर

आप बस शिवहर लोकसभा क्षेत्र के किसी भी चाय दुकान पर बैठ जाइए. आपको वहां एनडीए से ज्यादा महागठबंधन के उम्मीदवारों की चर्चा मिलेगी. इसके पीछे कई कारण भी हैं. पहला यह कि शिवहर अभी भाजपा के खाते में है इसलिए लोग आश्वस्त है कि भाजपा की सीट होने पर वर्तमान सांसद रामा देवी ही उम्मीदवार होंगी. जबकि एक चर्चा यह भी है कि रामा देवी का टिकट काटकर बिहार सरकार के पूर्व मंत्री सुनील कुमार पिंटो को भी उम्मीदवार बनाया जा सकता है. जदयू से मुख्यरूप से दो नाम चर्चा में हैं. एक महिला प्रकोष्ठ की प्रदेश अध्यक्षा कंचन गुप्ता और दूसरे सीतामढ़ी जिला अध्यक्ष और विधायक सुनीता सिंह चौहान के पति राणा रणधीर सिंह चौहान. हालांकि कंचन गुप्ता वैश्य समुदाय से जरूर हैं मगर उन पर बाहरी होने का तमगा चस्पा है. इसी वजह से इलाके में वह खास लोकप्रिय नहीं हो पा रहीं.

शिवहर संसदीय क्षेत्र पारंपरिक तौर पर राजद के खाते में रहा है यही वजह है कि राजद इस सीट पर दावेदारी बनाए हुए है. ऐसे में 2014 के संसदीय चुनाव मे बहुजन समाज पार्टी से चुनाव लड़ चुके अंगेश कुमार सिंह भी राजद की ओर से ही दावेदारी कर रहे हैं. अंगेश कुमार सिंह लालू यादव के बेटे तेजप्रताप यादव के काफी करीब माने जाते हैं लेकिन इन तमाम धींगामुश्ती के बीच आजकल वैशाली से निवर्तमान सांसद रामा किशोर सिंह की शिवहर से उम्मीदवारी की चर्चाएं भी तेज हो गई हैं. गौरतलब है कि रामा सिंह लोक जनशक्ति पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से बर्खास्त किए जा चुके हैं. यहां यह बताना जरूरी है कि 2014 के संसदीय चुनाव मे रामा किशोर सिंह ने ही राजद के कद्दावर नेता व पूर्व केन्द्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह को पराजित किया था. हालांकि शिवहर का क्षेत्र उनके लिए भी नया होगा और ऐसा लगता नहीं कि शिवहर के मतदाता किसी बाहरी को आसानी से स्वीकार लेंगे.

क्या है शिवहर का जातीय और धार्मिक गणित?

शिवहर लोकसभा की कुल जनसंख्या पंद्रह लाख के आसपास है. मुस्लिम वोटर्स लगभग 3 लाख हैं तो बहुजन वोट करीब 2 लाख हैं. उसके बाद आते हैं कोइरी समुदाय के वोटर्स. उनकी संख्या 1 लाख 50 हजार के आसपास है. उनके ठीक पीछे हैं राजपूत वोटर्स. उनकी संख्या लगभग 1 लाख 30 हजार है.

शिवहर में वैश्य वोटर्स भी खासे तादाद में हैं. इनकी संख्या 3 लाख 90 हजार के आसपास है. वैश्य समुदाय से ताल्लुक रखने वाली रामा देवी बीते दो बार से यहां की सांसद चुनी जा रही हैं. हालांकि वैश्य समुदाय यहां कई उपजातियों में बंटा है.

इन तमाम जीत-हार के बाद भी राजपूत समुदाय ने शिवहर पर अपनी पकड़ ढीली नहीं होने दी है. बीते विधानसभा चुनाव में शिवहर लोकसभा के अंतर्गत आने वाले 6 विधानसभाओं में से 3 पर राजपूत उम्मीदवारों ने ही जीत हासिल की. शायद इन्हीं वजहों से परंपरागत पार्टियां भी राजपूत उम्मीदवारों को सीधे इग्नोर कर पाती हैं.

मुद्दों की बात

जैसे-जैसे चुनावी गर्माहट बढ़ती जाती है वैसे-वैसे जनता के मुद्दे भी हवा होते जाते हैं. मुद्दों के सवाल पर शिवहर जिले के रहने वाले ज़फर इकबाल कहते हैं, “देखिए भारतीय राजनीति में मुद्दों की बात जरा दार्शनिक सी बात हो जाती है. फिर भी आप पूछते हैं तो यह बताना है कि शिवहर में रेल का आवागमन एक बड़ा मुद्दा है. इसे लेकर कई बार प्रदर्शन होते रहे हैं. शिवहर से दो बार से सांसद चुनी जा रही रामा देवी को भी लोगों ने कई बार ज्ञापन सौंपे हैं. हालांकि अब तक उन्हें इस मामले में कोई प्रगति नहीं दिखती.

ज़फर एक और मुद्दे का जिक्र हमसे करते हैं कि वहां एक पुल का मुद्दा बीते कई सालों से जनता के बीच है. बागमती की सहायक नदी लाल बखिया पर एक पुल का मुद्दा कई बार उठाया जाता रहा है. यह पुल बागमती की सहायक नदी लाल बखिया पर बनना है. वे कहते हैं कि इससे सीतामढ़ी और शिवहर का उत्तरी इलाका जुड़ेगा. शिवहर और चंपारण की दूरी घट जाएगी. बाढ़ के दिनों में इस पुल से काफी राहत हो जाएगी. वे इस पुल को लेकर अदौरी खोरी पाकड़ के संजय सिंह नामक एक व्यक्ति का भी जिक्र करते हैं कि संजय सिंह इस पुल के निर्माण को लेकर सत्याग्रह जैसा कुछ कर रहे हैं. संजय सिंह ने अपने बाल और दाढ़ी को तब तक न बनाने का प्रण लिया है, जब तक कि इस पुल का निर्माण न हो जाए.

जिधर बहे बयार, लवली आनंद उधर की उम्मीदवार

शिवहर संसदीय क्षेत्र से पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह की पत्नी और वैशाली संसदीय क्षेत्र की पूर्व सांसद लवली आनंद भी चुनाव की पूरी तैयारी कर रही हैं. अभी हाल ही में वह  काँग्रेस में शामिल हुई है. पटना में उनके और उनके बेटे चेतन आनंद के होर्डिंग-बोर्डिंग राहुल गांधी का स्वागत कर रहे थे. हालांकि वह कांग्रेस की रैली में मंच पर नहीं दिखीं. बार-बार दल बदलने के वजह से उनकी इमेज को धक्का लगा है.  यहाँ तक कि राजपूत समुदाय भी उन्हें लेकर उतना उत्साहित नहीं.

राजपूत समुदाय के एक धड़े का मानना है कि वह जब चुनाव लड़ने आती हैं तब राजपूतों का वोट बांटकर राजपूतों को कमजोर करती हैं. आम लोगों का मानना है कि लवली आनन्द 2009 के लोकसभा चुनाव में काँग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ी थीं. फिर 2014 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के बैनर तले लड़ीं. अभी एक वर्ष भी पूरे नहीं हुए थे कि 2014 के विधानसभा चुनाव में शिवहर विधानसभा क्षेत्र से हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के टिकट पर चुनाव लड़ गयीं. अभी विधानसभा की गर्माहट ठंडी भी नहीं हुई थी कि उन्होंने उपेंद्र कुशवाहा के राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का दामन थाम लिया.

लोकसभा चुनाव 2019 की गहमागहमी शुरू ही हो रही थी कि उन्होंने रालोसपा अरुण कुमार गुट के बैनर तले ढाका में एक कार्यक्रम किया था. हालांकि अरुण कुमार ने अब अपनी पार्टी बना ली है. ऐसे समय में जब यह बात सरेआम हो रही है कि शिवहर की सीट कांग्रेस  के खाते में जा रही है. तो लवली आनन्द कांग्रेस में शामिल हो गई हैं और शिवहर पर दावेदारी ठोंकने लगी हैं.

क्षेत्र के मतदाताओं का ऐसा मानना है कि लवली आनंद सिर्फ किसी तरह लड़ना और जीतनी चाहती हैं. इस बात की पुष्टि के लिए उनकी राजनीतिक यात्रा देखी जाए कि किस प्रकार सहरसा की रहने वाली लवली आनन्द पटना के बाढ़ विधानसभा, औरंगाबाद के नबीनगर विधानसभा, मधेपुरा के आलमनगर विधानसभा, वैशाली लोकसभा, शिवहर लोकसभा और शिवहर विधानसभा क्षेत्र से अलग-अलग पार्टियों के सिंबल पर चुनाव लड़ती रही हैं. हालांकि उनके पति भी पूर्व में कुछ ऐसे ही लड़ते रहे हैं.

कांग्रेस में शामिल होती पूर्व सांसद लवली आनंद

यहां मुस्लिम समुदाय वोटर के साथ ही दावेदार भी रहता है

यहां हम आपको बता दें कि शिवहर लोकसभा क्षेत्र में लगभग 2 लाख 90 हजार के आसपास मुस्लिम मतदाता हैं और स्वर्गीय अनवारुल हक़ यहां से राजद के टिकट पर सांसद भी रहे हैं. ऐसे में एनडीए और महागठबंधन की तरफ से मुस्लिम उम्मीदवार भी कतार में हैं. रीगा विधानसभा क्षेत्र के भकुरहर गाँव निवासी शमशेर आलम भी लगातार जनसम्पर्क कर रहे हैं.

मुंबई के उद्योगपति व शरद यादव के नजदीकी फारुक शेख भी चुनाव ल़ड़ने का पूरा मन बना चुके हैं. एनडीए में कहीं यह सीट जद(यू) के खाते में चली गई तो शिवहर विधानसभा से जद(यू) विधायक मोहम्मद शरफुद्दीन भी दावेदार हो सकते हैं. पूर्व सांसद अनवारुल हक के बेटे आजम हुसैन भी जद(यू) की सदस्यता लेने के बाद दावेदारी ठोंक रहे हैं.

अंत में यही कहना है कि समय जैसे-जैसे नजदीक आता जाएगा परतें साफ होती जाएंगी. जबतक यह पता नहीं चलता कि महागठबंधन में यह सीट किसके खाते में जाएगी. तब तक कुछ भी स्पष्ट तौर पर कहना मुश्किल है लेकिन एक बात तो तय है कि आने वाले दिनों में शिवहर लोकसभा की लड़ाई खासी रोमांचक होने जा रही है.

द बिहार मेल ये लिए यह पीस तारिक अनवर चंपारणी ने लिखा है. तारिक बिहार के ढाका के रहने वाले हैं. इन्होंने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस मुंबई से मास्टर्स की पढ़ाई की है.