‘ओए बॉर्डर फिल्म देखने लेकर जा रहे हैं सर. शुक्रवार को. स्कूल की वर्दी में ना आना.‘
क्लास में कोई मॉनिटर नहीं था. जिसको जो बात कह दी… क्लास में अनाउंमेंट मार दी उसने. थोड़ी देर के लिए बन गया मॉनिटर. जिस दिन वर्दी नहीं पहननी होती थी उस दिन हीरो ही होता था हर बच्चा. ‘ना कोई कंघी नहीं मारेंगे. अक्षय कुमार के बाल नहीं देखता बस्स हाथ मारता है.‘
गांव में एक ही सिनेमाघर था. रिक्शे पर बोर्ड लगाकर अनाउंटमेंट करवाई जाती. ‘बॉर्डर‘ आपके शहर में सिर्फ और सिर्फ गोरीवाला सिनेमाघर में. भला कोई पूछे रानियां वालों से कोई है सिनेमाघर… जो सिर्फ और सिर्फ बोल रहे हैं. चले गए. अंदर जाते सिनेमाघर के दिखता नहीं था. एक दो बार तो मैं और मेरा आड़ी (दोस्त) गिर भी गए. लाइन बनाकर जाना होता था. EXIT वाले दरवाजे पर लाल बत्ती सी लगी थी. साइड वाली दीवारों पर पंखे टंगे होते थे. ‘फिल्म शुरू हो गई. चुपकर.‘
फिल्म चल रही है… ‘संदेशे आते हैं‘ गाना आता है. पूरी क्लास कर रही है ‘हो हो हो. ‘ आड़ी– ‘ओए वो देख मास्टर भी गा रहा है.‘ इस गाने के बाद अपने गांव में रहते हुए गांव की याद आने लगी. ऐसे लगा जैसे मैं बहुत बड़ा हो गया हूं. गांव से बहुत दूर, पिंग्गे (झूले जो नीम के पेड़ के साथ बांधे जाते थे) छूट गए, पिट्ठू नहीं खेला कई सालों से, ट्यूबवेल में नहाया नहीं, आम नहीं तोड़े अम्मा के बाग से. हालांकि ये सब मैं रोज करता हूं. फिर ऐसा क्यों लग रहा है कि घर से बहुत दूर हूं. कोई चाहता है कि मैं लिखूं… मैं घर कब आऊंगा. फीलिंग का आलम ये था कि ऐसा लगा कि सिनेमा से निकलते ही बॉर्डर पर चला जाऊंगा. कितने काम बाकी हैं. मां की बहुत याद आने लगी, सुबह ही लड़कर 30 रुपये लिए थे उससे टिकट के लिए. गली वाली वो लड़की भी याद आई जिसका भाई पहले मेरा दोस्त था. जब उसने मुझे प्रपोज किया तो मैंने दोस्ती तोड़ दी. चिट्ठी तो कभी लिखी ही नहीं. …. अरे ये पाकिस्तान कहां से आ गया?
‘तू भी तो पाकिस्तानी है‘
गाना खत्म हुआ. आड़ी-‘ओए प्रियो तू भी तो पाकिस्तानी है स्साले.‘ मैं सोच रहा था कि यार मैं तो गांव और प्यार मोहब्बत में ही उलझा था, हो हो हो हो चल रहा था दिल में. ये लोग पाकिस्तान कहां से ले आए? गोलियां चलने लगी. भैरव सिंह (सुनील शेट्टी) भी मर गया. धर्मवीर (अक्षय खन्ना) भी दिलेर निकला यार. फिल्म खत्म हो रही है. सब लोग पाकिस्तान मुर्दाबाद, मुर्दाबाद के नारे लगाने लगे इतने में. मास्टर जी भी… संगीत वाले टीचर भी. जो कहते हैं कोई बुरा नहीं होता, हर चीज में संगीत है. बुल्ले शाह का चेला कहते थे खुद को. भक.
और फिर चला एक गाना… सब बैठ गए
फिर चलता है एक गाना. मेजर कुलदीप (सनी पाजी) के पीछे टैंक पर खड़े कुछ सैनिक नाच रहे हैं. मेजर कुलदीप के कंधे झुक गए.
‘बारुद से बोझल सारी फिजा,
ए मौत की बू फैलाती हवा,
जख्मों पे छाई लाचारी…
ये मरते बच्चे हाथों में,
ये माओं का रोना रातों में…
मुर्दा बस्ती, मुर्दा है नगर,
चेहरे पत्थर हैं, दिल पत्थर…
मेरे दुश्मन मेरे भाई…
मेरे हमसाए,
मुझसे–तुझसे
हम दोनों से सुन ये पत्थर कुछ कहते हैं.‘
सब चुप… खड़े हुए लोग बैठ गए. आड़ी भी बैठ गया. गाना ही ऐसा था. जिस टैंक को पाकिस्तान पर हमला करते देख मैंने सीटियां बजाई थी. जब मेजर कुलदीप अपनी जेब में बारूद डाल रहा था तो मैंने अपनी सीट पकड़ ली थी. अब वो सब मूवमेंट मुझे चुभ रहा था. अब उसी टैंक को चलते देख मुझे अजीब सा लग रहा था. कोई नहीं बोला पाकिस्तान मुर्दाबाद, हिंदुस्तान जिंदाबाद. ‘संदेसे आते हैं‘ के अंत में मेजर कुलदीप कहता है ‘मैं वापस आऊंगा‘… पता चल गया कि युद्ध से कोई वापस नहीं आता है. जैसा जाता है वैसा तो नहीं ही आता. आड़ी–यार पाकिस्तानी भी तो बंदे ही हैं. आड़ी ने तो उससे बाद कभी मुझे पाकिस्तानी नहीं कहा. ना ही कभी पाकिस्तान मुर्दाबाद बोला वो. सुना कनाडा में जिन लड़कों के साथ रहता है वो पाकिस्तानी ही हैं.
दुनिया को मोहब्बत की बड़ी जरूरत है. ऐसी एक कोशिश होनी चाहिए कि लहू किसी का भी न बहे. दुनिया में पहले ही बहुत लहू बह चुका है. हम रोज अपने सैनिकों को खो रहे हैं. अब बहुत हो गया. कायदे से दुनिया के हथियारों का नाश होना चाहिए…पृथ्वी इतनी खूबसूरत जीने के लिए बनाई गई है न कि लहू बहाने के लिए. मोहब्बत जिंदाबाद.
नोट: ऊंचे-लंबे कद वाले सजीले नौजवान और कभी विदेशी भी कह दिए जाने वाले प्रियोदत्त उर्फ पीडी ने यह आलेख लिखा है. दिल्ली की गलियों में पठानी कपड़े डाल ठाठ से घूमता है और किस्सागोई का खासा शौकीन है. गाने में जैसे फ्यूजन होता है न! पीडी वैसे ही कई संस्कृतियों का मेल अपने साथ लेकर चलता है…