भारत में कोरोना लॉकडाउन का दूसरा चरण 3 मई को खत्म होना है. अभी तक ये साफ नहीं है कि हमारे देश में लॉक डाउन की अवधि बढ़ाई जाएगी या समाप्ति की घोषणा होगी. या फिर लॉक डाउन जारी रहेगा लेकिन कुछ छूट के साथ. कोरोना से होने वाली मुसीबतें अभी भी खत्म नहीं हुई हैं. कोरोना के अलावा हमारे देश या राज्यों के पास औऱ बहुत सारी चीजों को लेकर चुनौतियां हैं. इस साल के आखिर में होने वाला बिहार विधानसभा का चुनाव उनमें से एक है.
चुनाव आयोग बिहार में तय सीमा में ही विधानसभा का चुनाव कराना चाहती है. इसके लिए चुनाव आयोग साउथ कोरिया के चुनावी मॉडल को स्टडी कर रही है. हाल ही में चुनाव आयोग की बैठक हुई थी. इस बैठक में चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने साउथ कोरिया मॉडल को अध्ययन करने के लिए एक कमिटी का गठन किया है.
क्या है साउथ कोरिया मॉडल?
हाल ही में साउथ कोरिया में 300 सीट के लिए मतदान हुआ था. इस चुनाव में राष्ट्रपति मून जे इन की पार्टी डेमोक्रेटिक पार्टी को 163 सीट मिले हैं. 1987 के बाद ये पहली बार है कि साउथ कोरिया में किसी राजनीतिक दल को भारी बहुमत मिला है. माना जा रहा है कि कोरोना महामारी से लड़ने के लिए सरकार द्वारा की गई तैयारियों की वजह से ये बहुमत मिला है.
इस चुनाव के दौरान वहां की सरकार ने काफी इंतजाम कर रखा था. उन्होंने अपने मतदान कर्मचारियों को पीपीई (पर्सनल प्रोटेक्टिव इकक्यूपमेंट), फेस मास्क, मेडिकल ग्लव्ज दिया था. वहां लोगों के बीच मास्क, सैनेटाइजर और गलव्ज बांटे गए थे. इसके अलावा मतदान बूथ पर पहुंचने वाले हर एक व्यक्ति के तापमान जांच की व्यवस्था की गई थी. अगर किसी भी व्यक्ति के शरीर का तपमान 37.5C अधिक था तो उसके लिए अलग बिल्डिंग में वोटिंग का इंतजाम किया गया था. अस्पताल परिसर में मतदान केंद्र बनाये गएं ताकि कोरोना मरीज आसानी से मतदान कर सकें. इन सबके साथ ही लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन भी किया.
साउथ कोरिया में कोरोना प्रकोप के बाद भी 66% से अधिक का मतदान हुआ. मतदान का प्रतिशत पिछले 18 सालों में सबसे अधिक है. यहां पहली बार 18 साल के व्यस्क को भी मतदान करने की अनुमति दी गई है. बता दें कि इससे पहले साउथ कोरिया में 19 साल के होने पर ही मतदान का अधिकार प्राप्त था.
कोरोना को लेकर साउथ कोरिया की तैयारी
आपको बता दें कि पांच करोड़ जनसंख्या वाले देश साउथ कोरिया में फिलहाल 60 हजार लोगों को क्वारंटीन किया गया है. कोरोना को लेकर जहां दुनिया भर के कई देशों में लॉकडाउन चल रहा है, वहीं साउथ कोरिया ने लॉकडाउन ना करके अपनी टेस्टिंग कैपिसिटी को बढ़ाया है. फिलहाल वहां एक दिन में 12 हजार से लेकर 20 हजार लोगों की जांच होती है. साउथ कोरिया ने शहरों में जगह-जगह मोबाइल टेस्टिंग सेंटर बनाए हैं. इन सेंटरों में 10 में मिनट के अंदर टेस्ट की प्रक्रिया पूरी कर ली जाती है और 24 घंटे के अंदर लोगों फोन के जरिए उनका रिपोर्ट बता दिया जाता है. लोगों के लिए टेस्ट की प्रक्रिया बिल्कुल फ्री है. मार्च महीने तक साउथ कोरिया ने लगभग 270,000 लाख लोगों का कोरोना टेस्ट कर लिया था.
कोरोना से लड़ने के लिए साउथ कोरिया ने तकनीक का भी सहारा लिया है. वहां पर जीपीएस फोन ट्रैकिंग, सर्विलांस कैमरा रिकॉर्ड और क्रेडिट कार्ड ट्रांजेक्शन की मदद से कोरोना पॉजिटिव लोगों का कनटेक्ट और लोकेशन ट्रैश किया जा रहा है. इन सबकी मदद से ये देखा जा रहा है कि कोरोना पॉजिविट होने तक व्यक्ति कहां गया था और किस-किस के संपर्क में आया था.
साउथ कोरिया मॉडल हमारे यहां टेढ़ी खीर क्यों?
साल 2019 के आखिरी महीने में चीन के वुहान शहर से शुरू हुए कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया की रफ्तार को रोक दिया है. ऐसे में फिलहाल सरकारों की कोशिश है कि कोरोना लॉकडाउन की वजह से लोगों की जरूरत पर रोक ना लगे. खाने-पीने के साथ दवा जैसी बेसिक चीज आसानी से लोगों तक पहुंच सके. हालांकि बिहार सरकार भी तमाम तरह की व्यवस्था का दावा कर रही है. लेकिन बिहार और बिहारवासियों की मुसीबतें कम नहीं हुई हैं. बिहार में कोरोना मरीजों की संख्या कोरोना हॉट स्पॉट की संख्या लगातार बढ़ रही है. बिहारी और बिहारी बच्चे जहां-तहां में फँसे हुए हैं और नीतीश कुमार से घर वापसी के लिए मदद मांग रहे हैं. जहां दूसरी राज्य सरकार अपने यहां के लोगों को वापस बुलाने का इंतजाम कर रही है, वहीं बिहार सरकार का रवैया इन सबके प्रति काफी उदासीन है.
साउथ कोरिया एक उत्तर पूर्वी एशियाई देश है. जहां की जनसंख्या बिहार से काफी कम है औऱ वहां की सरकार अपनी जिम्मेदारियों को लेकर सजग. साउथ कोरिया जैसे देश के लिए कोरोना के दौरान भी चुनाव कराना मुश्किल काम नहीं है. लेकिन बिहार या भारत में अभी के समय चुनाव कराना असंभव सी बात लगती है. ना हमारा सिस्टम इतना एक्टिव और डेवलप है. ना हमारे यहां के लोग जागरूक और जिम्मेदार हैं. इस समय बिहार या यूं कहें कि पूरे देश में कोरोना से लड़ने के लिए साउथ कोरिया मॉडल ही अपना लें तो हम एक मिसाल कायम कर सकते हैं. चुनाव तो दूर की बात है. चुनाव कराके फिर से कोई सरकार बना लेने से किसका भला होगा?