वैसे तो 12 जनवरी के रोज पूरा देश ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ मनाने में जुटा था- जानने वाले खूब जानते हैं कि स्वामी विवेकानंद को दुनिया अधिनायकवाद और उपनिवेशवाद के लड़ाके के तौर पर जानती है. स्वामी विवेकानंद की पंक्ति में ही चंपारण से सत्याग्रह शुरू करने वाले मोहनदास करम चंद गांधी भी शुमार किए जाते हैं. चंपारण की सरजमीं से एक और नाम है जिन्हें आज के दौर में याद करना जरूरी हो गया है लेकिन दुर्भाग्य कि चंपारण में उनके मृत्यु के दशकों बाद लगी मूर्ति तक महफूज नहीं. क्या आपको अब भी पता नहीं चला कि हम किनकी बात कर रहे हैं? तो जरा गूगल कर लीजिए…
जो अब भी पकड़ न पाएं हों कि हम किनकी बात कर रहे हैं, तो हम बताए देते हैं कि बीते सदी के शुरुआत (1903) में बिहार के चंपारण (अब पूर्वी चंपारण – मोतिहारी) में जॉर्ज ऑरवेल नामक लेखक का जन्म हुआ था. हालांकि उनका बचपन भारत में कम ही बीता. उन्हीं ‘जॉर्ज ऑरवेल’ की मोतिहारी में लगी मूर्ति को किन्हीं असामाजिक तत्वों ने तोड़ डाला. इतना ही नहीं उन्होंने इस मूर्ति को नजदीक के सूखे कुंए में फेंक दिया.
जॉर्ज ऑरवेल की मूर्ति के तोड़े जाने और उनके जन्मस्थली को लेकर शासन-प्रशासन की ओर से लगातार हो रही अनदेखी पर ‘द बिहार मेल’ से बातचीत में मोतिहारी के रहनिहार और जॉर्ज ऑरवेल पर डॉक्यूमेंट्री बना चुके बिश्वजीत मुखर्जी कहते हैं, ‘ देखिए मोतिहारी को दुनिया गांधी और जॉर्ज ऑरवेल के नाम से जानती है. ऑरवेल के बारे में पहले तो मोतिहारी के लोगों को मालूम ही नहीं था, हालांकि अब भी अधिकांश लोगों का उनसे कोई लेना-देना नहीं, लेकिन अब दूसरी समस्या खड़ी हो गई है. लोग जॉर्ज ऑरवेल को एक शानदार लेखक के बजाय सिर्फ एक अंग्रेज के तौर पर देखने लगे हैं. स्थानीय लोग चूंकि चंपारण को महात्मा गांधी और सत्याग्रह की धरती के तौर पर देखते हैं इसलिए उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ रहा कि किसी अंग्रेज का भी कोई चंपारण कनेक्शन हो सकता है.’
बिश्वजीत आगे कहते हैं कि पूरे देश में इस बीच राष्ट्रवाद की नई परिभाषा गढ़ी जा रही है. चंपारण में जॉर्ज ऑरवेल भी उसके निशाने पर आ गए हैं. उससे भी ज्यादा दिलचस्प यह है कि उन्हें महात्मा गांधी के मुकाबले खड़ा कर दिया गया है. जबकि इतिहास में इन दोनों महान विभूतियों का अपना अलहदा टाइम और स्पेस है. जानने वाले तो जानते तक नहीं कि चंपारण कनेक्शन वाली दोनों शख्सियतें हर कीमत पर साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद और अधिनायकवाद के खिलाफ लड़ती रहीं.
अंत में हम आपको बताते चलें कि ‘जॉर्ज ऑरवेल’ की याद में लगी इस मूर्ति के टूटने का संज्ञान स्थानीय प्रशासन ने लिया तो जरूर है. स्वयं जिलाधिकारी कपिल शीर्षत मौके पर पहुंचे और मूर्ति को नियत स्थान पर लगाने की बात कही. साथ ही कहा कि इस असामाजिक कार्य में संलिप्त दोषियों को पकड़कर सजा दी जाएगी. उम्मीद है कि जैसे सबके दिन बहुर रहे हैं वैसे ही जॉर्ज ऑरवेल की यादों (जन्मस्थली और मूर्ति) के दिन भी बहुरेंगे…
यह खबर/रिपोर्ट ‘द बिहार मेल’ के लिए कल्याण स्वरूप ने लिखी है. कल्याण मोतिहारी के रहने वाले हैं और पूर्व में ईटीवी नेटवर्क के साथ जुड़कर पत्रकारिता करते रहे हैं…