हाल-ए-नौहट्टा: कभी हजारों लोगों को रोजगार देने वाला यह इलाका आज है वीराना…

हाल-ए-नौहट्टा: कभी हजारों लोगों को रोजगार देने वाला यह इलाका आज है वीराना…

बिहार में एक जिला है रोहतास. जहां से कभी शेरशाह सूरी अपना राजपाट चलाया करते थे. आजादी के बाद यह इलाका बहुतों के लिए रोजगार और उद्यम का केंद्र बना. इसी जिले में एक ब्लॉक है नौहट्टा और उसी ब्लॉक में एक गांव है बौलिया. इसी गांव से होते हुए लोग रोहतासगढ़ किले के लिए चढ़ाई करते हैं. इसी गांव में हमें लॉकडाउन के दौरान सिंगापुर में नौकरी करने वाले हैदर मिले. लॉकडाउन और कोरोना की वजह से वे इधर ही फंसे हुए हैं. पिता की दुकानदारी में उनकी मदद करते हैं. हैदर हमसे बातचीत में यूं ही कहने लगते हैं कि इस इलाके में कितनी संभावनाएं हैं लेकिन कुछ भी होता नहीं दिखाई पड़ रहा. यदि यहां के जैसा लाइम स्टोन किसी और राज्य में होता तो सीमेंट की कितनी ही फैक्ट्रियां वहां लगी होतीं. लोगों को पलायन नहीं करना पड़ता.

26 साल के हैदर का मानना है कि कैमूर पहाड़ी में अनेक खनिज संपदा मौजूद हैं और इसका सही तरीके से सर्वेक्षण किया जाए तो यहां विकास के नए आयाम खुल सकते हैं. इसके अलावा इन इलाकों में पर्यटन की भी असीम संभावनाएं हैं. बरसात के बाद जनवरी महीने तक कई पहाड़ी झरने यहां मनोरम दृश्य प्रस्तुत करते हैं. जहां आस-पास के लोग बड़ी संख्या में पिकनिक मनाने आते हैं. इसके अलावा कैमूर पहाड़ी पर स्थित रोहतासगढ़ किला, चौरासन मंदिर और पुरातात्विक महत्व के सैंकड़ों अवशेष बिखरे पड़े हैं. इतिहासकारों या पुरातत्वविदों की नजरें इन पर भले ही पड़ी हों लेकिन इन्हें वैश्विक पटल पर अब तक पहचान नहीं मिल सकी है. जाहिर तौर पर ऐसा होने और इनके बारे में प्रचारित-प्रसारित किए जाने पर यहां स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के मौके पैदा होते.

बौलिया गांव के नजदीक ही ‘महादेव खोह’ जल प्रपात की ओर जाने का रास्ता और नजारा

यहां आपको विशेष तौर पर बताते चलें कि बौलियां गांव के पास में ही कैमूर पहाड़ी पर बना रोहतासगढ़ किला मौजूद है. किले या चौरासन मंदिर जाने के लिए लोग इधर से चढ़ाई भी करते हैं. ट्रेकिंग के लिहाज से भी अपार संभावनाएं हैं. हमें इसी जगह पर कुछ स्थानीय लोग पत्थर तोड़कर गिट्टी बनाते दिखे. लगभग 12-14 की संख्या में महिलाएं और पुरुष सुबह से लेकर शाम तक हथौड़े से पत्थर तोड़कर गिट्टी बनाते हैं. जो 22 रुपए हर टोकरी (खंचिया) के हिसाब से बिकता है. निर्माण कार्य पर बिहार में रोक नहीं है इसके बावजूद इसकी पूरी तरह से खरीद नहीं हो पा रही है.

हैदर इस बीच जब जानते हैं कि हम पत्रकार हैं तो वे हमें सारी समस्याएं दिखा देना चाहते हैं. वे हमें बौलिया गांव के उस इलाके में ले जाते हैं जहां कभी बड़ी संख्या में परिसमापन में चल रहे रोहतास इंडस्ट्री के कर्मचारी-मजदूर और अधिकारी रहते थे. यहां पर हमें गेस्ट हाउस,स्टाफ क्वार्टर, हॉस्पिटल और किसी जमाने में चलने वाला सिनेमा हॉल भी दिखा. चारों तरफ झाड़ियां कुछ यूं उग आई हैं कि बरसात में उधर जाने से डर लगता है. स्पष्ट शब्दों में कहें तो एक छोटा-मोटा व व्यवस्थित इंडस्ट्रीयल शहर वीराना होता चला गया. हैदर बार बार इस उम्मीद में विकास जैसे शब्द को दुहरा रहे थे कि स्थितियां बेहतर होने पर कहीं पलायन तो नहीं करना पड़ता. यहीं रहते और दो पैसे कम भी कमाते तो परिवार के साथ रहते. हमें मौके पर इसी गांव के रहने वाले पीयूष त्रिपाठी और शिवपूजन चौहान भी मिले. कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन के बीच अधिकांश युवा गांव लौट आए हैं. जाहिर तौर पर बाहर काम करने वालों के लिए ‘वर्क फ्रॉम होम’ है और इसी क्रम में वे मोबाइल और लैपटॉप पर जूम के माध्यम से मीटिंग करते और बातचीत करते भी दिखे. सोशल मीडिया के दौर में बौलिया में एक अच्छी बात यह दिखी कि गांव के युवा सिर्फ हाथ पर हाथ धरे बैठे नहीं हैं. इस इलाके में पड़ने वाले कई जल प्रपातों (Water Falls) को पॉपुलर बनाने की कोशिश कर रहे हैं. इसके लिए उन्होंने फेसबुक पर “बौलिया की धरती” नाम का एक पेज भी बना रखा है.

रोहतासगढ़ किले के एक कोने से दिख रहा सोन नद व नजारे…

चेहरे पर दिखता है केवल अफसोस…
बेहतर रोजगार के अवसर के लिए देश और देश के बाहर रहने वाले हैदर, शिवपूजन और पीयूष जैसे युवाओं के अंदर अपनी मातृभूमि के प्रति एक लगाव के साथ विजन भी दिखता है, लेकिन इसके बावजूद बिहार के ऐसे युवाओं की आवाजें अनसुनी ही रह जानी है. राजनेता ऊंचा सुनने को मजबूर हैं.सभी युवा इस बात पर एकमत हैं कि केवल वोटबैंक और जात-पात की राजनीति की वजह से बिहार के विकास का रास्ता रूका है. जबकि यहां कई क्षेत्रों में इसकी असीम संभावनाए हैं. जो स्थानीय लोगों के लिए रोजगार भी पैदा कर सकते हैं.

कभी जपला सीमेंट फैक्ट्री तक चुना पत्थर पहुंचाने के लिए बना रोपवे (PC- rohtasdistrict.com)

दरअसल, कैमूर के इस इलाके को वन्य अभ्यारण्य घोषित किया जा चुका है. इस कारण यहां नए उद्योग लगने में समस्या भी हो सकती है. इसके बावजूद राजनीतिक इच्छाशक्ति का साफ तौर पर अभाव दिखता है. स्थानीय लोग लगातार जनप्रतिनिधियों की अनदेखी की बात मुखरता से उठाते हैं. आश्चर्य की बात यह भी है कि इस लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कभी कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे जगजीवन राम किया करते थे. उनके बाद उनकी बेटी मीरा कुमार को भी सासाराम लोकसभा सीट के सांसद बनने का मौका मिला. फिलहाल इस इलाके में रोहतास प्रखंड में डालमियानगर सीमेंट फैक्ट्री (पूर्व में कल्याणपुर सीमेंट फैक्ट्री) चालू है. इसके अलावा पाइराइट्स निकालने के लिए पीपीसीएल की शुरुआत भी की गई थी. लेकिन उत्पादन महंगा पड़ता गया और विदेश से पाइराइट्स निकालना सस्ता पड़ रहा था. इस कारण इसे बंद कर दिया गया.

विकास और रोजगार के सवाल पर क्या कहते हैं नेतागण?
इस पूरे इलाके में रोजगार और विकास के सवाल पर हमसे अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग के सभापति और चेनारी से विधायक ललन पासवान कहते हैं, ‘देखिए आजादी के बाद 70 साल तक उतना काम नहीं हुआ होगा, जितना मैंने करवाया है. करहगर के 12 पंचायतों और शिवसागर के 16 पंचायतों में पड़ने वाले गांवों में आप किसी से भी पूछें तो सभी लोग मेरे बारे में बताएंगे. चेनारी, शिवसागर और नौहट्टा को मिलाकर करीब-करीब 1,500 करोड़ की योजनाएं आई हैं. पहले बिजली का ट्रांसफॉर्मर नौहट्टा और रोहतास में (एक से डेढ़ लाख रुपये) में मिलता था. अब (पांच रुपये) भी नहीं लगते. मैं पहाड़ पर सोलर पॉवर ले गया. अब पहाड़ पर पर्मानेंट ग्रिड की बिजली पहुंचेगी.’ वे आगे कहते हैं कि मेरी कोशिश है कि शेरशाह के नाम पर रोहतास में एम्स और एजुकेशन के लिहाज से बाबा साहेब के नाम पर एक यूनिवर्सिटी खुले कि इलाके भर के लड़के/लड़कियां यहां पढ़ सकें. इसके लिए अगर आंदोलन में जाना पड़ेगा तो वो भी करूंगा.

इस पूरे इलाके में विकास की योजनाओं के संदर्भ में हमने चेनारी से ही विधायक रहे और इस बार फिर से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे श्याम बिहारी राम से भी बात की. श्याम बिहारी राम इलाके में रोजगार की कमी और कई जगहों पर सड़कें न होने के सवाल पर कहते हैं, ‘देखिए 2011 में सीएम नीतीश कुमार के दौरे के बावजूद विकास संबंधित की गई पहल नाकामयाब ही रही. जिसका कारण सीएम को चारों तरफ से घेरे अधिकारी रहे’. उन्होंने आगे कहा कि रोहतास से लेकर अधौरा तक सड़क निर्माण की मांग के बावजूद इसपर कोई भी सकारात्मक पहल राज्य सरकार की तरफ से नहीं की गई.

विकास का पैमाना और आम लोग  
स्थानीय पत्रकार विनय पाठक हमसे बातचीत में कहते हैं, ‘यहां जनप्रतिनिधि केवल चुनावी जीत हासिल करने और जीत के लिए ही क्षेत्र में आते हैं. जीत या हार के बाद उनके पास विकास कार्यों से संबंधित पहल करने का समय कतई नहीं रहता. रोहतास और नौहट्टा प्रखंड में विकास के लिए जिस राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत होती है उसका साफ तौर पर अभाव देखने को मिलता है. सांसद और विधायक निधि का इस्तेमाल केवल नली और गली बनाने के लिए किया गया. इसके अलावा पहाड़ी क्षेत्र के विकास के मुद्दों को विधानसभा, लोकसभा और राज्यसभा में जनप्रतिनिधियों ने कभी आवाज नहीं दी’. विनय पाठक आगे कहते हैं कि विपरीत पलायन के इस दौर में मजदूरों की कोई भी सुध लेने वाला नहीं है. वे पहाड़ी नदियों से खेतों की सिंचाई के लिहाज से भी असीम संभावनाएं देखते हैं. चूंकि पहाड़ी नदियों का पानी सोन में मिल जाता है. जिस वजह से इन इलाकों के किसानों की समस्याएं जस की तस हैं. इसके अलावा पुराने आहर मृतप्राय हैं. सरकारी योजनाएं पूरी तरह दिखावा साबित हो रही हैं. देखिए कब सरकार में शामिल जनप्रतिनिधियों की नजरें नौहट्टा और अकबरपुर प्रखंड के इन इलाकों तक पहुंचती हैं और कब पहुंचता है वास्तविक विकास?

यहां हम आपको अंत में यह भी बताते चलें कि जिले के बौलिया क्वायरी में बने रोपवे का निर्णाण अंग्रेजों ने साल 1919 में ही करवाया था. रोपवे 21 किलोमीटर लंबा था. कैमूर पहाड़ी में मौजूद खदानों से जपला की फैक्ट्री में लाइम स्टोन लाने और ले जाने का काम होता था. इसे चलता देखने के लिए कई राज्यों से लोग यहां आते थे. बौलिया चूना पत्थर खदान रोपवे के लिए ही दूर-दूर तक प्रचलित था.

फैक्ट्री और रोपवे के चलने तक इस पूरे इलाके में कई लोगों को मिलता था रोजगार

पोर्टलैंड सीमेंट कारखाना देवरी (जपला) में सोन नदी को पार कर रोपवे से बौलिया से चूना पत्थर ले जाने का काम होता था. लेकिन फैक्ट्री बंद होने के बाद परिस्थितियां बदलती गईं. इसके अलावा कंपनी के परिसमापन में चले जाने के बाद साल 1992 में बौलिया में काम पूरी तरह बंद हो गया. इस कारण यहां काम करने वाले मजदूर पूरी तरह बेरोजगार हो गए. इसके बाद बदहाली का आलम और इसका प्रभाव आज भी इस इलाके में देखा जा सकता है.

यह रिपोर्ट ‘द बिहार मेल’ के लिए गोविंदा मिश्रा ने लिखी है. गोविंदा ‘भारतीय जन संचार संस्थान’ से हिन्दी पत्रकारिता की पढ़ाई करने के बाद देश के प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों के साथ जुड़कर काम करते रहे हैं. इन दिनों नौकरी छोड़कर सूबे में लौटे हैं. डेहरी ऑन सोन में रहते हैं…