बुद्ध की नगरी बोधगया, ज्ञान की नगरी बोधगया. मोक्ष की नगरी बोधगया. जिसे पीएम मोदी गयाजी संबोधित करते हुए नहीं थके. जहां बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई. जहां फल्गु नदी से सीता का भी संबंध है और बुद्ध का भी. ऐसा कहा-सुना जाता है कि बोधगया से उत्तर दिशा लगभग तीन कोस की दूरी पर ‘बकरौर’ गांव की एक सुकन्या सुजाता के हाथों से परोसे गए खीर को खाने के बाद ही राजकुमार सिद्धार्थ ने बुद्धत्व की प्राप्ति की. अब जो आप सोच रहे होंगे कि इतनी भूमिका बांधने के बजाय सीधे मुद्दे पर क्यों नहीं आते तो बात को आगे बढ़ाते हुए कहना है कि साल 2014 में सत्ता बदलने के बाद सभी सांसदों ने एक-एक गांव गोद लिया था. इस गांव को बेहतर बनाना था. इस योजना का नाम सांसद आदर्श ग्राम/पंचायत योजना था लेकिन अफसोस कि इस गांव पहुंचने पर निराशा हाथ लगती है.
गौरतलब है कि पीएम नरेन्द्र मोदी ने सभी सांसदों से एक-एक गांव गोद लेने की तो बात कही लेकिन सांसदों ने उनकी बात को गंभीरता से नहीं लिया, नहीं तो ऐसी वजह नहीं दिखती कि कोई सांसद किसी एक गांव को लेकर संजीदा हो और उस गांव की तस्वीर और तकदीर न बदल जाए. यहां यह बताना भी जरूरी हो जाता है कि बकरौर गांव में गया के माननीय सांसद ‘हरि मांझी’ सिर्फ एक बार ही आए और मिसिर टोला पर ही ठहरकर इसकी घोषणा की. जबकि इस गांव में कुशवाहा टोला, रविदास टोला, अंसारी टोला और पासवान टोला भी हैं. घोषणा के वक्त भी वे अगल-बगल के गांवों के बबुआनों से ही घिरे रहे.
इस गांव में जल का घोर संकट है. चापाकल में पानी आता नहीं. मोटर चलाने पर सूंसूं करके रह जाता है. जलस्तर हर बीतते दिन के साथ नीचे चला जा रहा है. जल-नल कहीं है तो कहीं नहीं. पासवान टोलों के कई घर अब भी मिट्टी के ही हैं. उनके घर तक सात निश्चय वाली गली-नली (प्रदेश सरकार के मार्फत) पहुंची तो है लेकिन बरसात होने पर खपरैल जगह-जगह से चूता है. अभी भी कई घर शौचालय से मरहूम हैं. वे भी इस उम्मीद में हैं कि एक दिन उनका भी भला हो जाएगा.
उक्त रिपोर्ट ‘द बिहार मेल’ के लिए ग़ालिब ने लिखी है. वे जनआंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय से सम्बद्ध हैं और पूर्व में शिक्षा अधिकारी रहे हैं. इसे रिपोर्ट को संपादित ‘द बिहार मेल’ के घुमन्तू संपादक विष्णु नारायण ने किया है…