राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में सुप्रीम कोर्ट का फैसला शनिवार को आ रहा है. उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ यह फैसला सुना रही है. इस पीठ में प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर शामिल है.
चीफ जस्टिस ने अपने फैसले में क्या कहा…
- चीफ जस्टिस ने कहा कि एएसआई की रिपोर्ट के मुताबिक नीचे मंदिर था. यहां खाली जमीन पर मस्जिद नहीं बनाई गई थी. एएसआई यह नहीं बता पाई कि मंदिर गिराकर मस्जिद बनाई गई थी. हिंदू अयोध्या को राम मंदिर मानते हैं. सबूत पेश किए गए हैं कि हिंदू बाहरी अहाते में पूजा करते थे. जस्टिस गोगोई ने कहा है कि पुरातात्विक सबूतों को खारिज नहीं किया जा सकता है.
- सुन्नी वक्फ बोर्ड संबंधित स्थान के इस्तेमाल का सबूत नहीं दे पाया.
- विवादित जमीन का बंटवारा नहीं किया जाएगा. इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला तार्किक नहीं
- मुस्लिम पक्ष को दूसरी जगह पांच एकड़ जमीन देने का आदेश
- सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को तीन महीने के भीतर अयोध्या पर एक कार्ययोजना तैयार करने को कहा है.
- ढांचा गिराना गलत था.
- पीठ ने अपने फैसले में कहा कि निर्मोही अखाड़े का दावा कानूनी समय सीमा के तहत प्रतिबंधित है.
संविधान पीठ ने 16 अक्टूबर को इस मामले की सुनवाई पूरी की थी. इसकी सुनवाई लगातार 40 दिन हुई. प्रधान न्यायाधीश ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के शीर्ष अधिकारियों को बुलाकर मुलाक़ात की थी और फ़ैसले के दिन कानून–व्यवस्था बनाए रखने को लेकर निर्देश दिया था. इसको लेकर अयोध्या में भारी सुरक्षा बल तैनात किए गए हैं. और दिल्ली, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान में स्कूल–कॉलेज बंद कर दिए गए हैं.
आपको बता दें चीफ जस्टिस का कार्यकाल 17 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहा है.
इससे पहले 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर फ़ैसला सुनाया था. यह फैसला किसी के पक्ष में नहीं था और इस पर सभी पक्षों ने असंतुष्टि जताई थी और सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला. तीनों पक्ष ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.