देश की सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में आईपीसी की धारा 377 के उस प्रावधान को रद्द कर दिया, जिसके तहत समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी में रखा गया था. सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अपने फैसले से औपनिवेशिक कानून को खारिज कर दिया. सभी न्यायाधीशों ने अलग-अलग फैसले सुनाए, हालांकि सभी के फैसले एकमत थे. मुख्य न्यायाधीश ने फैसला सुनाते हुए विलियम शेक्सपियर को भी उद्धरित किया. फैसला सुनाने के दौरान वहां मौजूद कई लोग भावुक भी हो गए.
कोर्ट ने मौके पर कहा कि सबके लिए समान अधिकार सुनिश्चित करने की जरूरत है. समाज को पूर्वाग्रहों से मुक्त होना चाहिए. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा कि व्यक्तिगत पसंद को इजाजत मिलनी चाहिए. गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने साल 2013 में सुनाए गए अपने ही फैसले को पलट दिया है. कोर्ट ने अपने फैसले में सेक्सुअल ओरिएंटेशन को बायोलॉजिकल करार दिया है. साथ ही कहा कि इस पर किसी भी तरह का रोक संवैधानिक अधिकार का हनन है. इस अधिकार के बिना दूसरे अधिकार औचित्यहीन हैं.
जानें क्या है धारा 377
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 के मुताबिक यदि कोई किसी पुरुष, स्त्री या पशुओं से प्रकृति की व्यवस्था के विरुद्ध संबंध बनाता है तो यह अपराध होगा. इस अपराध के लिए उसे उम्रकैद या 10 साल तक की कैद के साथ आर्थिक दंड का भागी होना पड़ेगा. सीधे शब्दों में कहें तो धारा-377 के मुताबिक अगर दो व्यस्क आपसी सहमति से भी समलैंगिक संबंध बनाते हैं तो वह अपराध की श्रेणी में होगा.
असहमति के बावजूद संबंध बनाना अब भी अपराध
सुप्रीम कोर्ट ने भले ही आपसी सहमति से बनने वाले संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया है, लेकिन इस बात को साफ किया है कि धारा 377 के तहत अब बिना सहमति के समलैंगिक संबंध बनाना अपराध होगा. कोर्ट ने इस बात को भी स्पष्ट तौर पर कहा है कि बच्चों और जानवरों से अप्राकृतिक संबंध अब भी अपराध रहेगा.