दून घाटी अप्रेल 3, 2020 प्रिय ….., इस विश्वास के साथ तुम्हें लिख रही हूँ कि तुम जहाँ हो, मुझे…
याद. वो लमहे, दिन और साल जो अब सामने नहीं मगर भीतर कहीं हैं. बचपन में पिता को अकसर एक…
मैं सोचती हूं कि मुझे कितनी सारी चीजों से कितनी शिकायतें रहती थीं, आजकल वो शिकायतें पता नहीं कहां चल…
कभी-कभी हम जो कुछ कर रहे होते हैं, सब वहीं छोड़कर, किसी ऐसी जगह चले जाते हैं, जिसे बहुत साफ़…