बिहार प्रदेश के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की ओर से माफी मांगने की बात इन दिनों सुर्खियों में है. वे ‘लालू-राबड़ी शासनकाल’ के दौरान हुई गलतियों के लिए माफी मांग रहे हैं. दो दिन पहले राजद के प्रदेश कार्यालय के भीतर सदस्यता कार्यक्रम के दौरान उन्होंने ऐसी बातें कहीं, और तब से उनके माफी मांगने के अलग-अलग निहितार्थ तलाशे जा रहे हैं. वहीं उनकी पार्टी के ही प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह एनडीए के आला नेताओं को 15 साल बनाम 15 साल की खुली बहस के लिए चैलेंज कर रहे हैं. कह रहे हैं कि लालू-राबड़ी राज में तो अपराध का ग्राफ कम था. राज्य दंगामुक्त हुआ. उन्होंने सरप्लस बजट एनडीए सरकार को सौंपा था. जाहिर तौर इन दोनों बातों के अलग-अलग मायने हैं- अब आगे…
लालू-राबड़ी राज का टैग और माफी?
तेजस्वी के लाख चाहने के बावजूद भी उन पर लालू-राबड़ी राज का टैग चस्पा है. क्योंकि उन्हें राजनीति और उसकी सहूलियतें विरासत में मिली हैं. उनके स्ट्रगल और लालू प्रसाद के स्ट्रगल में जमीन-आसमान का फर्क है. उनका स्ट्रगल खुद को लालू प्रसाद की तुलना में सफल साबित करना है. जाहिर तौर पर इसके बीच भी लालू-राबड़ी राज ही खड़ा है. अब यह तो दीगर बात है कि जब किसी के हाथों में विरासत आती है तो उसके हिस्से में सिर्फ विरासत ही नहीं आती बल्कि उसके साथ जुड़ी अच्छी और बुरी बातों की जिम्मेदारी भी कंधों पर आ जाती है, तेजस्वी के साथ भी कुछ ऐसा ही है. तेजस्वी के लालू-राबड़ी शासनकाल की गलतियों के लिए माफी के सवाल पर राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं, “देखिए लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि होती है. तेजस्वी यादव का कहना है कि यदि हमारे शासनकाल में कोई भूल-चूक हुई होगी तो हम माफी मांगते हैं. अब जनादेश के अपमान के लिए नीतीश कुमार माफी मांगें. 15 साल में बिहार के भीतर उद्योग क्यों नहीं लगे इसके लिए माफी मांगें, लेकिन वे तो सत्ता के मद में चूर हैं. जनता उनका हिसाब करेगी.”
तेजस्वी के माफी मांगने और मिलने के सवाल पर द बिहार मेल से बातचीत में भाजपा के प्रवक्ता निखिल आनंद कहते हैं, “तेजस्वी किस मुंह से माफी मांग रहे हैं? क्या लालू प्रसाद जी ने कभी माफी मांगी? ऐन चुनाव के वक्त तेजस्वी का ऐसा करना महज चुनावी स्टंट है और बिहार की जनता झांसे में नहीं आने वाली.”
अपने कृत्य के लिए कब माफी मांगेंगे तेजस्वी?
कि तेजस्वी यादव का लालू-राबड़ी राज के लिए माफी मांगने के सवाल पर जद (यू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता अजय आलोक द बिहार मेल से बातचीत में कहते हैं, “तेजस्वी अपने कृत्यों के लिए कब माफी मांगेंगे? 28-30 साल की उम्र में किसी व्यक्ति के पास 28,000 करोड़ की संपत्ति कैसे आ जाती है? पार्टी में अब भी राजबल्लभ यादव और अरुण यादव जैसे नेताओं को साथ रखना और उन्हें महासचिव जैसे अहम पद देने के क्या मायने हैं?” वे आगे कहते हैं कि देखिए उन्हें कोई सत्ता तो मिलने नहीं जा रही, तो इस माफी के भी कोई मायने नहीं. – हमारे इस सवाल पर कि आपकी पार्टी ने फिर क्यों उनके साथ आना चुना तो इसके जवाब में अजय आलोक कहते हैं, देखिए हमारा समझौता लालू प्रसाद के कृत्यों से नहीं था. हमने एक फ्रेश शुरुआत की थी. तेजस्वी को भी फ्रेश शुरुआत करने का मौका दिया था, लेकिन वे लोग अपने पुराने ढर्रे पर ही आ गए. ऐसे में हम अलग हो गए.
बेरोजगारी यात्रा की शुरुआत पर भी कही थी कुछ ऐसी ही बात
यहां हम आपको बताते चलें कि तेजस्वी यादव ने ‘बेरोजगारी यात्रा’ की शुरुआत के मौके पर भी पार्टी कार्यकर्ताओं को नसीहत दी थी. व्यवहार में परिवर्तन लाने की बात कही थी. कहा था कि पार्टी के लोगों को कृष्ण बनकर सुदामा का पैर धोना होगा और राम बनकर सबरी के जूठे बेर खाने होंगे. कहा था कि 8 महीने के बाद सूबे में उनकी पार्टी की सरकार होगी, लेकिन तब से अब तक गंगा और सोन में बहुत पानी बह चुका है. कोरोना के संक्रमण की वजह से राजनीतिक संवाद की रूपरेखा बदल चुकी है. राजद के 5 एमएलसी बेहतर संभावनाओं की तलाश में जद (यू) के हो चुके हैं. महागठबंधन में एका नहीं दिखाई दे रहा.
ऐसे में जब सूबे में चारों तरफ चुनावी सरगर्मियां तारी हैं, और तमाम बयानों को वोट के गुणा-गणित के लिहाज से तौला जा रहा है. ठीक उसी समय में तेजस्वी यादव के लालू-राबड़ी शासनकाल के दौरान हुई भूलों के लिए माफी मांगने को जनता किस तरह लेगी, यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है लेकिन एक बात तो जरूर है कि माफी फिर से सियासी बहस के केंद्र में आ गया है…