डिमेंशिया और वायु प्रदूषण, इन दोनों को शायद ही हम कभी साथ करके देखते हैं. एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि हवा में मौजूद 2.5 माइक्रोमीटर से कम व्यास के कणों (पीएम 2.5) से प्रदूषित इलाकों में रहनेवाले लोगों में ‘डिमेंशिया’ का खतरा पैदा होता है.
अब जानते हैं कि डिमेंशिया है क्या?
इस शब्द का रिश्ता हमारी याददाश्त से है. इसका इस्तेमाल हमारी चीजों को याद रखने की क्षमता या सोचने की क्षमता को प्रभावित करने वाले लक्षणों के समूहों के लिए किया जाता है. इसके कारण कई रोग हो सकते हैं. ये हमारे मस्तिष्क को नुक़सान पहुंचाते हैं. इसके शिकार लोग अपना दैनिक कार्य ठीक से नहीं कर पाते हैं. इनकी याददाश्त कमजोर होती चली जाती है. इन्हें रास्ता याद रखने से लेकर लोगों कों पहचानने, खाना-खाने और चल पाने तक में दिक्कतें आने लगती हैं.
क्या है अनुसंधानकर्ता का कहना?
वाशिंगटन विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने डिमेंशिया और पीएम 2.5 के संबंध को अपने अनुसंधान में दर्शाया है. इस अध्ययन के मुख्य लेखक राचेल शाफर का कहना है कि एक माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि होने से डिमेंशिया के कारकों में 16 गुणा वृद्धि हो जाती है. इसी तरह का संबंध अल्ज़ाइमर की तरह के डिमेंशिया से भी है. यह अध्ययन एनवायर्नमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिव में प्रकाशित हुई है.