ना ना करते यूपीए के हुए उपेन्द्र कुशवाहा, क्या वाकई बदलने लगा मौसम?

ना ना करते यूपीए के हुए उपेन्द्र कुशवाहा, क्या वाकई बदलने लगा मौसम?

मौसम के लिहाज से बीती से बीती शाम दिल्ली की सबसे ठंडी शाम थी. शाम ढलतेढलते पारा 4 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था लेकिन बिहार की सियासी गर्माहट का आकलन किया जाए तो पारा चढ़ने लगा है. रालोसपा मुखिया नाना करते हुए अब यूपीए का हिस्सा हो गए हैं. बीती शाम उन्होंने कांग्रेस भवन -24 अकबर रोडपर प्रेस को ब्रीफ किया. उनकी सियासी खीर पकतेपकते कांग्रेस कार्यालय तक पहुंच गई. वहीं दूसरी तरफ लोजपा मुखिया व केंद्रीय मंत्री के पुत्र व सांसद चिराग पासवान के ताबड़तोड़ ट्वीट, मीडिया से बातचीत और भाजपा अध्यक्ष से मुलाकात के अलगअलग निहितार्थ निकाले जा रहे हैं. उन्हें एकाएक राहुल गांधी में सकारात्मकता नजर आने लगी है. क्या इसे वाकई बदलते मौसम की आहट के तौर पर देखा जाए?

क्या वाकई बदलने लगा है मौसम?
राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान को मौसम वैज्ञानिक कहते हैं. पूसा वाला नहीं नासा वाला. बदलते सियासी समीकरणों के हिसाब से उनके पुत्र व सांसद चिराग पासवान के सुर भी बदलते नजर आने लगे हैं. कभी वे नोटबंदी का हिसाब मांग रहे हैं, तो कभी रफाएल मामले में जेपीसी के गठन की बात कह रहे हैं. जबकि भाजपा इसके खिलाफ है. उपेन्द्र कुशवाहा के यूपीए में शामिल होने के मौके पर तेजस्वी ने भी कहा कि ठंड बढ़ने लगी है, मौसम बदलने लगा है.

एनडीए कितना कमजोर और यूपीए कितना मजबूत?
चूंकि बिहार और उत्तरप्रदेश में क्षेत्रीय दलों और उनसे संबंधित जातीय नेताओं का वजूद साफ तौर पर देखा जाता है, इसलिए उनका किसी भी गठबंधन का हिस्सा होना उसे कमजोर और मजबूत करता है. आखिर दोनों राष्ट्रीय पार्टियां (कांग्रेस और भाजपा) इन्हें यूं ही नहीं लुभाती रहती हैं. जाहिर है कि उपेन्द्र कुशवाहा अपने साथ एक तय वोटबैंक लेकर कहीं आयेंगेजायेंगे.

 

अहमद पटेल, शरद यादव और तेजस्वी की मौजूदगी में यूपीए का हिस्सा बने उपेन्द्र कुशवाहा

उपेन्द्र कुशवाहा के एनडीए से यूपीए में आने को लेकर हमसे बातचीत में कैमूर जिले के राजद प्रवक्ता सुरेश सिंह कहते हैं कि उपेन्द्र कुशवाहा के यूपीए में आने से जाहिर तौर पर यूपीए मजबूत होगा. बीते लोकसभा चुनाव में वे कुशवाहा वोटों को एनडीए और नरेन्द्र मोदी के पक्ष में ट्रांसफर कराने में सफल रहे. वे इसी क्रम में भभुआ विधानसभा में हुए इस वर्ष हुए उपचुनाव का भी जिक्र करते हैं कि कांग्रेस, राजद और बसपा का साझा उम्मीदवार मजबूती से लड़ रहा था. उन्होंने कुशवाहा वोटों को साधने के लिए सासाराम से राजद विधायक अशोक कुशवाहा का कैंपेन भी करवाया. उनके पक्ष में सकारात्मक माहौल था लेकिन अंतिम समय में भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में उपेन्द्र कुशवाहा की अतिसक्रियता और बैठकी ने समीकरण को बदल डाला. वे कुशवाहा के यूपीए के खेमे में आने को यूपीए के लिहाज से सकारात्मक और एनडीए के लिए झटके के तौर पर देखते हैं.

जाति साधि सब सधै!
अंग्रेजी में एक कहावत है कि, People in UP and Bihar Don’t Cast Their Votes, They Vote Their Castes. हिन्दी में बोलें तो यूपी और बिहार में लोग वोट नहीं करते, बल्कि अपनी जातियों को चुनते हैं. हालांकि यह पैटर्न पूरे देश और दुनिया में लागू है. यूपी और बिहार बस इसके लिए बदनाम हो गए हैं. तिसपर से क्षेत्रीय और जातीय पार्टियों ने इस समीकरण को और भी हवा देने का काम किया है.

जातपांत की इस पूरी राजनीति और समीकरण पर वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल हमसे बातचीत में कहते हैं कि बिहार के लिहाज से लोग अभी भी जातीय समूहों में बंटे हैं. वे अभी नागरिक नहीं हो पाए हैं. ये बातें पूरे देश पर भी लागू होती हैं. जनता खुद के नजदीक ही देखती है कि जाति का नेता होगा तो उससे काम करा पाना आसान होगा. थाने और जमानत का काम आसानी से होगा. कहीं पैरवी हो जाएगी.
विकास और मुद्दों की राजनीति पर वे कहते हैं कि बिहार में कोई चमत्कार जैसी चीज नहीं हुई. लालू प्रसाद के 15 वर्ष के शासनकाल में उन्होंने कहा कि वंचित तबका खाट पर बैठने लगा, मगर अब वह खाट पर बैठ चुका. अब उसे रोजगार चाहिए. नीतीश कुमार भी रोजगार के मुद्दे पर खास नहीं कर सके. बिहार में कोई प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नहीं हुआ. बिहार की जीडीपी बहुत कमजोर है और उसकी रफ्तार भी बढ़ती नजर नहीं आ रही. ऐसे में जनता जातीय समूहों में बंटकर ही सुकून महसूस कर रही है.

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अब देखना यह है कि उपेन्द्र कुशवाहा की सियासी खीर कितनी मीठी होती है, क्या कथित मौसम वैज्ञानिक एक बार फिर से हवा का रुख भांपने में सफल हो पाएंगे? क्या इस बार ऊंट यूपीए के करवट बैठेगा या फिर फिर एक बार फिर मोदी की लहर चल जाएगी