‘खान मार्केट‘ का नाम इन दिनों सुर्खियों में बना हुआ है.. मोदी सरकार के दोबारा चुने जाने के बाद इसे “खान” से जुड़ा पहला ‘सोशल मीडिया’ विवाद मान लीजिए… खान मार्केट के ‘खान’ शब्द और इस विवाद के कई मायने हैं.
कौन हैं खान मार्केट वाले ‘खान’?
दिल्ली के पुराने और मशहूर बाजारों में से एक खान मार्केट की स्थापना 1951 में हुई थी . .. जिस ‘खान’ नाम को लेकर विवाद जारी है… वह खान आखिर हैं कौन? सबसे पहले यह जानना जरूरी है… नाम, जाति, धर्म से ऊपर उठकर देखेंगे तो ‘खान मार्केट‘ का नाम स्वतंत्रता सेनानी ‘खान अब्दुल जब्बार खान‘ के नाम पर है… जो आगे चलकर पाकिस्तानी नेता बने और उनके नाम के आगे पीछे खान लगा है.. भारत विभाजन के बाद नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस (पाकिस्तान) के हिस्से से भागकर आए कारोबारियों को यहां कारोबार के लिए जगह दिया गया गया था. नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस को अब खैबर पख्तुनख्वा कहा जाता है.
भारत विभाजन से क्या है इसका नाता?
भारत विभाजन के दौरान नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस का भविष्य तय करने के लिए 1947 में एक रेफ्रेंडम (जनमतसंग्रह) कराया गया जिसमें लोगों ने पाकिस्तान में शामिल होने का फैसला किया. लेकिन यहां के तत्कालीन मुख्यमंत्री जब्बार खान ने इसका यह कहते हुए विरोध किया कि नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस के पास स्वतंत्र रहने या फिर अफगानिस्तान में शामिल होने के विकल्प इस जनमतसंग्रह में नहीं दिए गए हैं. हालांकि बाकी इतिहास की कहानी है कि आगे क्या हुआ? मौजूदा स्थिति यह है कि तब ऐसा हुआ नहीं और यह आज भी पाकिस्तान में ही है.
और कौन हैं सीमान्त गांधी?
वहीं जब्बार खान अपने परिवार के अकेले ऐसे सदस्य नहीं थे जो अंग्रेजों से लोहा ले रहे थे. उनके भाई का नाम खान अब्दुल गफ्फार खान है और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वह एक बड़े नेता हैं. अहिंसक आंदोलन और महात्मा गांधी का तरीका इस्तेमाल करते हुए आंदोलन चलाने की वजह से दुनिया इन्हें सीमान्त गांधी के नाम से जानती है. इन्हें बाचा खान और बादशाह खान के नाम से भी जाना जाता है.
अब आते हैं मौजूदा विवाद पर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा था कि ‘मोदी की छवि खान मार्केट गैंग या लुटियंस दिल्ली ने नहीं बनाई है. यह 45 वर्षों की कड़ी मेहनत से बनी है.’ हालांकि इसके बाद भाजपा नेता दीपक तंवर ने मोदी के बयान को गंभीरता से लेते हुए गृहमंत्री से खान मार्केट का नाम बदलकर ‘वाल्मीकि मार्केट’ करने की मांग भी कर दी थी. इसके बाद तो सोशल मीडिया पर नाम बदलने जाने के समर्थन और विरोध में बातें शुरू हो गईं.
नाम बदलने की मांग पर कारोबारियों का क्या है कहना?
आज भले ही ‘खान’ और मोदी के इंटरव्यू ‘ खान मार्केट गैंग’ बातों को आधार बना कर खान मार्केट का नाम बदलने की मांग की जा रही हो.. लेकिन यहां के किताबों, चांदी के आभूषणों, ऐंटीक वस्तुओं के दुकानदार इस नाम को मार्केट की पहचान बताते हैं और इसको बदले जाने के सख्त खिलाफ हैं. वर्षों से यहां दुकान चला रहे दुकानदारों का कहना है कि विश्वभर में लोग इसे केवल इसके नाम से पहचानते हैं. पर्यटक हों या भारतीय हर व्यक्ति इसके नाम से ही यहां चला आता है. यहां उन्हें जो दाम चीज़ों के मिलते हैं, इस जगह के नाम की वजह से ही मिलते हैं और यह बात काफी हद तक सही भी है क्योंकि खान मार्केट को 2007 में सबसे महंगा खुदरा (रिटेल) बाजार घोषित किया गया था. वहीं 2010 में यह विश्व के सबसे महंगे खुदरा (रिटेल) बाजार कि सूची में यह 21वें स्थान पर था. यह दिल्ली के महंगे बाजारों में से एक है.
आधिकारिक मांग कुछ भी नहीं!
अब अपने घर में मार्केट का नाम बदलकर कुछ और रख भी लिया जाए तो दुनियाभर में किसे–किसे पकड़कर इसका नया नाम याद कराया जायेगा.. और ‘खान मार्केट‘ का नाम बदलने के बाद क्या यहां स्थित उन ‘खान चाचा‘ का नाम भी बदला जाएगा जिसके टिक्के और सीख कबाब दुनियाभर में मशहूर हैं. हालांकि इस मामले पर मचे बवाल पर अधिकारियों का कहना है कि उन्हें नाम बदलने संबंधित कोई मांग या आवेदन नहीं मिले हैं. ऐसे में आप इस पूरे विवाद को सोशल मीडिया की देन मान सकते हैं. यह एक अफवाह भी हो सकता है और आने वाले दिनों की हकीकत भी. तब तक के लिए खान मार्केट का चक्कर लगा आइए. अच्छी जगह है.
नोट: यह आलेख निहारिका ने लिखा है, वह पेशे से पत्रकार हैं. निहारिका जब कुछ नहीं कर रही होती हैं तो स्नैपचैट पर अपनी शक्ल और जंगली प्राणियों की शक्ल को मिलाकर कुछ प्रयोग कर रही होती हैं.