भैया, यह रोशन का घर किधर पडे़गा?
कौन रोशन?
वह लड़की जो लड़कियों को पढ़ाती है और जिसकी शादी हो रही है?
इधर तो नहीं है, रामसर बड़ा गांव है, आप गलत मोहल्ले में आ गई हैं
रोशन का घर खोजने में काफी मेहनत करनी पड़ी. लेकिन मिलने पर लगा कि अच्छा हुआ कि मेहनत कर लिया. सिर पर पीला दुपट्टा रखे रोशन एक लड़की से बात कर रहीं थी. सामने वाली लड़की के हाथों में एक मोटी फाइल पकड़ी हुई थी. रोशन के आस–पास शादी से जुड़े सामान और चमकीले कपड़े रखे थे और घर में मिठाइयां बन रही थी. बैठने को कहते हुए रोशन ने घर खोजने में हुई दिक्कत के लिए माफी मांगी और शरबत का गलास पकड़ा दिया.
मैं यहां रोशन से लड़कियों की पढ़ाई के सिलसिले में बात करने आई थी. रोशन का घर अजमेर के श्रीनगर ब्लॉक के रामसर में पड़ता है. यहां मुस्लिम आबादी अधिक है। यहां पहुंचने के लिए नसीराबाद से मुझे ऑटो लेना था लेकिन रोशन के साथ ही काम करने वाली एक लड़की पूजा ने ऑटो को न आता देख मुझे रामसर पहुंचाने के लिए खुद स्कूटी ले साथ आ गईं। पूजा अपने फील्ड का काम देखने के बाद मेरे साथ आईं थी। पूजा यहां लड़कियों की शिक्षा को लेकर काम कर रहे एक संगठन ‘एजुकेट गर्ल्स’ का हिस्सा हैं।
नसीराबाद से रामसर:
राजस्थान की खासियत जो मुझे सबसे ज्यादा पसंद है, वह है दूर–दराज तक कुछ नहीं होना. सोचने के लिए एक खुला मैदान. बीच में आखों को कुछ भी चुभता हुआ नहीं. नसीराबाद से रामसर जाने में भी सड़क के दोनों ओर कुछ ऐसा ही था। ऐसे खेत जिससे हाल ही में फसल काट ली गई थी और एकदम परती। दोपहर के 12 बजे ऐसा लग रहा था कि स्कूटी किसी आग वाली लपटों के बीच से गुजर रही हो. गर्मी में पहली बार मेरी यह राजस्थान की यात्रा थी. लेकिन इस बार की राजस्थान यह यात्रा गांवों की यात्रा होने वाली थी. हां तो चुप्पी के बीच मुझे लगा कि पूजा से बात की जाए. बात इस चीज से शुरू हुई कि इस क्षेत्र में लड़कियों और महिलाओं की स्थिति कैसी है? पूजा ने जो बताना शुरू किया, वह एक पत्रकार के रूप में मुझे कुछ–कुछ मालूम है लेकिन कहते हैं न दूर से हर चीज एक संख्या जैसी लगती है. जैसे सबकुछ एक, दो, तीन, चार के साथ समाप्त हो जाता है लेकिन सामने होने पर आप उसकी तपिश महसूस करते हैं। ऐसा ही था कुछ।
“ यहां महिलाएं कमाती भी हैं और खर्चे का हिसाब भी उन्हीं को देना होता है”
महिलाओं की स्थिति….लोग कहते हैं इस पर कितनी बात की जाए. मुझे भी कभी–कभी लगता है दुनिया में कितनी चीजें हैं, सिर्फ महिलाएं ही नहीं हैं. लेकिन जमीन पर लगता है कि अभी वर्षों भी इस पर बात की जाए तो भी शायद कम है. एक तरफ कहा जाता है कि सामाजिक परिवर्तन धीरे–धीरे होता है लेकिन यह तो कुछ ज्यादा ही धीरे नहीं है? हां तो फिर पूजा की बात करते हैं. यह इलाका नसीराबाद का है, जो अजमेर लोकसभा क्षेत्र में आता है। पूजा ने बताया कि इस इलाके में लड़कियों की पढ़ाई–लिखाई में सबसे बड़ी बाधा उनकी कम उम्र में शादी है. वह बताती हैं कि बावनी अब भी जारी है. और कम उम्र में गुर्जर जाति में शादी का चलन यहां सबसे ज्यादा है. बाल विवाह बावनी में खूब होते हैं. बावनी दरअसल एक मृत्युभोज है जिसमें 52 गांवों के लोग हिस्सा लेते हैं और इसमें लगे हाथों शादियां भी होती हैं. पूजा बताती हैं कि इसमें इतने छोटे–छोटे लड़के–लड़कियों की शादियां होती है कि भारत में यहां से दूर वाले लोग सोच भी नहीं सकते कि यह सच्चाई हमारे ही देश की है।
मैं पूजा से पूछ बैठती हूं कि वह ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’ वाले कुछ नहीं करते क्या? वह बोलती हैं कि सिर्फ कहीं–कहीं पोस्टर ही लगे हैं. शक्ल तो उनकी शायद ही किसी ने देखी हो। मैं सोचने लगती हूं कि वह लाखों का बजट फिर किसके लिए था, प्रचार करने वालों के लिए लेकिन यह सवाल पर्दे के पीछे है।
वह बताती हैं, ‘’यहां ज्यादातर महिलाएं खेतों में काम करती हैं, मजदूरी करती हैं लेकिन कमाई गई रकम पर भी हक उनका नहीं है. उन्हें हर पैसे का हिसाब देना है. सबसे पहले सुबह उठो, घर में काम करो फिर बाहर मजदूरी करने जाओ और फिर लौटकर कमाए पैसे का हिसाब दो. ताकि वह शराब पी सके. यह सब यहां घर–घर का नियम बना हुआ है।
मुझे जेएनयू के दीवारों पर लिखी वह पंक्तियां याद हो आती है जिस दिन नारी श्रम का हिसाब होगा, उस दिन दुनिया की सबसे बड़ी चोरी पकड़ी जाएगी.
करीब आधे घंटे तक स्कूटी से यात्रा करने और मशक्कत के बाद हम रोशन के घर पहुंचे थे।
हां तो रोशन की शादी हो रही है और उनकी बहन की भी. रोशन बीएड कर चुकी हैं और वह गांव में लड़कियों को पढ़ाती हैं और यह बताते हुए उनकी आंखों में जो चमक आ जाती है, वह देखते ही बनती है.
रोशन के बगल में ही सीमा ड्रॉपआउट लड़कियों की एक लिस्ट को पढ़ रही हैं. यह उन लड़कियों की लिस्ट है, जिसने पढ़ाई छोड़ दी है और अब वह इन लड़कियों के घर जाकर उनसे स्कूलों और कॉलेजों में दाखिला लेने का अनुरोध कर रही हैं. सीमा इस गांव में करीब 60 किलोमीटर दूर से आती हैं और कभी–कभी देर रात होने पर यहीं रूक जाती हैं. इसको लेकर भी उन्हें कई तरह के ताने का सामना करना पड़ता है. वह कहती हैं, ‘’ यह गांव मुस्लिम बहुल गांव है और मैं हिंदू. कई लोगों को लगता है कि मुसलमानों के बीच में यह हिंदू लड़की क्या कर रही है. मुझे बिल्कुल यहां अपनापन लगता है. मैंने इस गांव के कई मुस्लिम घरों में रही हूं. मुझे कोई परेशानी नहीं हुई है.’’
सीमा का कहना है कि वह 32 लड़कियों को पढ़ाई में वापस ला चुकी हैं. उनका कहना है कि यहां बात लड़कियों की मर्जी की सबसे बाद में होती कि है कि वह पढ़ना चाहती है या नहीं पढ़ना चाहती है. पहले लड़की के माता–पिता, बड़े भाई–बहन और अगर शादी हो चुकी है तो फिर ससुराल वाले। इतनी सीढ़ियां चढ़ने के बाद आखिर में लड़की यह तय करती है कि वह पढ़ना चाहती है या नहीं।
वह कहती हैं कि कई बार तो लोग दूर से देखकर ही दरवाजा बंद कर लेते हैं कि देखों पढ़ाई वाली लड़कियां आ गई। इसके बाद वह मुस्कुराते हुए कहती हैं कि यहां घर वाले चाहते हैं कि हम इस बात का भी ध्यान रखें कि लड़की कहीं किसी लड़के के प्रेम में न पड़ जाए. यह सबकुछ करना पड़ता है.
सीमा अपने साथ बैठी एक लड़की (तन्नु) को भी काम–काज समझा रही हैं. वह नई आई हैं. और कोशिश कर रही हैं समझने की. वह बताती हैं कि छोटी उम्र में शादी को लेकर पता नहीं क्यों कोई नेता काम ही नहीं करना चाहते हैं. लोगों के सामने बावनी होती रहती है और वह मिठाइयां खाते रहते हैं. इस तरह की शादियों में सिर्फ लड़कियों का जीवन ही बर्बाद नहीं होता लड़कों का भी होता है. एक तरह से कहें तो पूरे समाज की ही सोच बदलने की जरूरत है.
इस दौरान मैं कुछ लड़कियों से भी मिलती हूं जो वापस पढ़ाई से जुड़ तो गई हैं लेकिन परिवार के किसी भी बड़े सदस्य की मर्जी हो जाए तो एक झटके में उनकी पढ़ाई का सपना टूट सकता है. ऐसे कितने ही सपने चुपचाप लड़कियों के टूटते रहते हैं लेकिन रोशन, पूजा, सीमा और तन्नु जो कुछ कर रही हैं, वह उस जगह के हिसाब से देखें तो कितनी बड़ी बात है. शिक्षा के लिए वह रोज लड़ रही हैं.
नोट: यह ब्लॉग स्नेहा ने लिखा है। वह पेशे से पत्रकार हैं।
1 Comment
R.D. Gurjar July 17, 2019 at 8:15 pm
बहुत खूब।
बालिका शिक्षा पर एक अच्छी पहल चारों के द्वारा।
सलाम।