जब से होश संभाला है तब से ही ऐसी खबरें सुन रहे हैं कि एक बिहारी, एक पुरबिया, एक यूपीवाला फलां जगह मारा गया. बिहारी पिटता है तो उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश खुद को अलगा लेते हैं. यूपीवाले पिटते हैं तो बिहारी की सांस ऊपर–नीचे होने लगती है. कभी मुंबई में शिव सेना और मनसे वाले मारते हैं. तो कभी दक्षिण भारत से किसी बिहार–यूपीवाले के पिटने की खबर आती है. नॉर्थ ईस्ट भी अछूता नहीं. आप खुद को भले ही ‘पुरबिया’ अस्मिता से जोड़ते हों और गर्वीले भाव से तनकर चलते हों कि तभी किसी पुरबिये के देश के किसी कोने में पिटने और लुटने की खबर आपसे आकर टकराती है. आप चाहे जितना भी दंभ पाल लें लेकिन सच्चाई तो यही रहेगी न कि ‘बिहारी’ या ‘भैय्या’ कहा जाना गाली–गलौज ही है. हम मुंबई में पिटते हैं और खुद को इस तरह आश्वस्त करते हैं कि हमारे नेता ने तो शिव सेना और मनसे की हेकड़ी निकाल दी. वहां जाकर छठ करने की बात करता है.
इस बीच ये बहस फिर से तेज हो गई है. गुजरात में पुरबिये फिर से मारे–पीटे जा रहे हैं. एक बिहारी मजदूर सरीखे शख्स पर एक 14 माह की बच्ची से दुष्कर्म करने का आरोप है. पुरबिये चिन्हित करके मारे–पीटे जा रहे हैं. उन्हें राज्य छोड़ देने की धमकियां मिल रही है. इस बार तो मध्यप्रदेश तक वाले बख्शे नहीं जा रहे. सुना है कि जनता के मुंह से हिन्दी सुनते ही उन्हें पीटा जा रहा है. सोशल मीडिया पर सुविधानुसार जंग जारी है. कोई इसके लिए राज्य और केन्द्र की भाजपा सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहा है. तो कोई अल्पेश ठाकोर और उनकी सेना को कोस रहा है. कोई जिग्नेश और हार्दिक की चुप्पी पर सवाल उठा रहा है. तो कोई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा यूपी में उनके दिए गए भाषण और आश्वासन का जिक्र कर रहा है कि 56 इंच की छाती को क्या हुआ? देखें किस तरह अब भी आरोप–प्रत्यारोप का दौर जारी है और बिहार–यूपीवाले खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं.- एमपीवाले भी शामिल. देखें किस तरह अब भी आरोप–प्रत्यारोप का दौर जारी है. मुझे इन सारी मार–पीट की खबरों के बीच एक कविता याद आती रही. कविता रपट के अंत में लगा दी है.
तेजस्वी यादव ने पीएम मोदी से मांगा जवाब
बिहार में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ट्विटर पर लिखते हैं कि यूपी, बिहार के लोगों को पीटने वालों गुजरात के लम्पट संघियों समझ लो, प्रधानमंत्री यूपी से चुनाव जीते हैं. मोदी जी, आप देश के प्रधानमंत्री हैं. इस मुद्दे पर आपकी चुप्पी ख़तरनाक है. आपके राज्य के लोग ग़ैर–गुजरातियो को पीटकर भगा रहे है. क्या यही है आपका Team India और सबका साथ, सबका विकास?
सुशील मोदी ने अल्पेश ठाकोर को ठहराया जिम्मेदार
बिहार में उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने इस पूरी हिंसा के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया है. वे ट्विटर पर लिखते हैं कि गुजरात में प्रवासियों पर हमले के पीछे कांग्रेस का हाथ है. कांग्रेस के उकसावे के बावजूद गुजरात में बिहारी पूरी तरह सुरक्षित हैं. उप मुख्यमंत्री इस पूरे मामले में गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी से बातचीत का जिक्र एक खबरिया वेबसाइट से करते हैं. “वे विजय रूपाणी के हवाले से कहते हैं कि डीजीपी को बिहार के लोगों की सुरक्षा के इतंजाम करने के आदेश दिए गए हैं. रेप के मामले में अब तक 12 लोग गिरफ्तार किए गए हैं. ये घटना दो दिन पहले की है. उन्होंने भरोसा दिलाया कि बिहार के लोगों का खयाल रखा जाएगा क्योंकि गुजरात के कारोबार में इनका योगदान सबसे ज्यादा है.”
क्या कहते हैं अल्पेश ठाकोर?
बिहार में कांग्रेस पार्टी की ओर से हाल ही में सचिव बनाकर भेजे गए अल्पेश ठाकोर से सम्बद्ध ठाकोर सेना के लोगों पर भी पुरबियों से मार–पीट के आरोप लगे हैं. द बिहार मेल ने अल्पेश ठाकोर से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन एक नंबर पर संपर्क नहीं हो सका और दूसरे नंबर पर रिंग होते ही फोन काट दिया गया. तीसरी बार फोन करने पर नंबर बिजी आया और पलटकर कोई जवाब नहीं आया. हालांकि इस पूरे मामले में मीडिया को दिए गए उनके बयान को देखें तो वे ठीक वही भाषा बोलते दिखाई पड़ते हैं जो कभी बाल ठाकरे व राज ठाकरे बोला करते थे कि बिहार–यूपीवालों के गुजरात चले आने की वजह से स्थानीय लोगों को नौकरियां नहीं मिल रहीं.
राजद सांसद ने सुशील मोदी की मानसिकता पर उठाए सवाल
इस पूरे मामले में जब द बिहार मेल ने राजद के राज्यसभा सांसद मनोज झा से बातचीत की तो वे बोले कि जो आदमी अपराधियों के सामने गिड़गिड़ाए उसकी मानसिकता जगजाहिर है. पूरे देश में सिलसिलेवार ढंग से दहशतगर्दी को बढ़ावा दिया जा रहा है. वे राजद के हवाले से कहते हैं कि यदि किसी शख्स ने ऐसे वहशियाना कृत्य को अंजाम दिया है तो उसे कड़ी से कड़ी सजा दी जाए लेकिन एक शख्स को आधार बनाकर सारे पुरबियों को पीटे जाने के पीछे एक क्रमबद्ध योजना है. जब हमने उनसे राज्य में राजद और कांग्रेस के गठबंधन और अल्पेश ठाकोर के नाम आने पर सवाल किए तो वे बोले कि, देखिए राज्य और केन्द्र में उनकी ही सरकार है. सारी एजेंसियां उनके ही पास हैं. वे जांच करावें. ऐसा तो होता नहीं कि किसी ने मीडिया में नाम उछाल दिया और कोई दोषी हो गया.
जैसा कि पहले भी कहा कि पूरी खबर और रिपोर्ट को लिखने से पहले, दौरान और बाद भी बिहारी मानुष अरुणाभ सौरभ की कविता ‘वो स्साला बिहारी’ जेहन में घूमती रही. आप बिहारी की जगह यूपीवाला या पुरबिया रख सकते हैं. सुविधानुसार…
वो स्साला बिहारी
अबे तेरी…
और कॉलर पकड़
तीन–चार
जड़ दिए जाते हैं
मुंह पर
इतने से नहीं तो
बिहारी मादर…
चोर, चीलड़, पॉकेटमार
भौंसड़ी के…
सुबह हो गई
चाय ला
तेरी भैण की
झाडू–पोछा
तेरी मां लगाएगी?
जब भी मैं
अपने लोगों के बीच से
गुजरता हूं
रोजाना सुनने को मिलती हैं
कानों को हिला देने वाली गालियां
उनके लिए जो
हर ट्रेन के
जनरल डब्बे में
हुजूम बनाकर चढ़े थे
भागलपुर, मुजफ्फरपुर
दरभंगा, सहरसा, कटिहार से
सभी स्टेशनों पर
दिल्ली, मुंबई, सूरत, अमृतसर, कोलकाता, गुवाहाटी
जाने वाली सभी ट्रेनों में
अपना गांव, अपना देस छोड़कर
निकला था वो
मैले–कुचैले एयरबैग लेकर
दो वक़्त की रोटी पर
एक चुटकी नमक
दो बूंद सरसों तेल
आधा प्याज के खातिर
जो गांव में मिला नहीं
कटिहार से पटना तक
नहीं मिला
और जब निकल गया वहां से, तो
शौचालय के गेट पर
गमछा बिछाकर बैठ गया
और गंतव्य तक
पहुंचने के बाद
भूल गया कि
वो कहां है, कहां का है
सीखनी शुरू कर दी
हर शहर की भाषा
पर स्साला बिहारी
मुंह खोलते ही
लोगों को पता लग जाता है
देश के सभी बड़े शहरों में
वो झाडू लगता रहा
बरतन मांजता रहा
रिक्शा खींचता रहा
ठेला चलाता रहा
संडास को हटाता रहा
मैला ढोता रहा
हर ग़म को
चिलम की सोंट पर
और खैनी के ताव पर
भूलकर, वह
बीड़ी पर बीड़ी जलाता रहा
गांव पहुंचने पर भी
अभ्यास किया
तेरे को, मेरे को…
पर हर जगह जो मिला
सहर्ष स्वीकार किया
झाडू, कंटर, बरतन
रिक्शा, ठेला और गालियां
और लात–घूसे
और उतने पैसे, कि
वो, उसका परिवार
और उसकी बीड़ी, खैनी
चलते रहे
अपने टपकते पसीने में सीमेंट–बालू सानकर
उसने कलकत्ता बनाया था
अपने खून में चारकोल सानकर
उसने बनाए थे दिल्ली तक जाने वाले सारे
राष्ट्रीय राजमार्ग
वज्र जैसी हड्डियों की ताकत से
उसने खड़ी की थीं
बम्बई की सारी ईमारतें
फेफड़े में घुसे जा रहे रुई के रेशे से
खांसते–खांसते दम ले–लेकर
उसने खड़ा किया था सूरत
कितनी रातों भूख से जाग–जाग
रैनबसेरा पर उसने सपने देखे थे
लुधियाना, चंडीगढ़, हिसार से लेकर
जमशेदपुर, रांची, बिलासपुर, दुर्गापुर, राउरकेला
और रुड़की, बंगलौर तक को
संवारने, निखारने के
अपनी आह के दम पर
उसने कितने
मद्रास को चेन्नैई
बंबई को मुंबई
होते देखा था
उसे पता था कि
उसके बिना जाम हो जाती हैं
हैदराबाद से लेकर शिलांग तक की सारी नालियां
कितने पंजाब, कितने हरियाणा और
मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ की खरीफ से लेकर रबी फसलें
उसी के हाथों काटी जाएंगी
फायदा चाहे जिसका भी हो
धूप ने
उसकी चमड़ी पर आकर
कविता लिखी थी
पसीने ने उसकी गंदी कमीज पर
अल्पना बनाई थी
रंगोली सजाई थी
कुदाल ने उसकी किस्मत पर
अभी अभी सितारे जड़े थे
रिक्शे ने अरमान जगाया था
कि अचानक उसकी बीवी चूड़ी तोड़ देती है
सिन्दूर पोंछ लेती है
कि ठेला पकड़े हुए हाथ
अभी भी ठेला पकड़े हुए हैं
और गर्दन पर
खून का थक्का जम गया है
वो स्साला बिहारी
कट गया है, गाजर मूली की तरह सामूहिक
बंबई या गुवाहाटी में
और बीवियां चूड़ी तोड़ रही हैं
लेकिन साला जबतक जिंदा रहा
जानता था कि
इस देश के
हिंदू समाज के लिए
जितना संदेहास्पद है
मुसलमान का होना
उससे ज्यादा अभिशाप है
भारत में बिहारी
साला यह भी जानता था कि
बिहारी होना मतलब दिन रात
खटते मजूरी करना है जी–जान से
उसे मालूम था कि कहीं
पकड़ा जाय झूठ–मूठ चोरी–चपारी के आरोप में तो
नहीं बचाएंगे उसे जिला–जवार के अफसर
बिहारी का मतलब वो जानता था कि
अफसर, मंत्री, महाजन होना नहीं है
बिहारी का मतलब
फावड़ा चलाना है
पत्थर तोड़ना है
गटर साफ़ करना है
दरबानी करना है
चौकीदारी करना है
आवाज में निरंतरता है–
ओय बिहारी
तेरी मां की
तेज–तेज फावड़ा चला
निठल्ले
यूपी बिहार के चूतिये
तेरी भैण की
तेरी मां की…
~सादर~