किसान आंदोलन के दौर में दिल्ली की अलग-अलग सीमाएं भी खबरों में हैं, और विशेष तौर पर खबरों में है ग़ाज़ीपुर बॉर्डर. पश्चिमी उत्तरप्रदेश के किसानों का जमावड़ा. भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता व नेता राकेश टिकैत के आंसूओं की चर्चा चारों तरफ तारी है. बातें ऐसी भी कही जाने लगी हैं कि राकेश टिकैत के आंसूओं में पश्चिमी उत्तरप्रदेश की राजनीति को बदलकर रख देने की ताकत है. ऐसे में इस बात को समझने हम पश्चिमी उत्तरप्रदेश गए. उनके गांव और घर भी गए- साथ ही भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत से बात की- नरेश टिकैत न सिर्फ चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत के बड़े बेटे और उनकी राजनीति के झंडाबरदार हैं बल्कि वे गांव-घर में रहकर पूरी खेती भी संभालते हैं. पढ़ें केन्द्रीय कृषि कानून को लेकर जारी किसान आंदोलन के अलावा तमाम मुद्दों पर क्या है उनकी राय- पढ़ें पूरा साक्षात्कार…
हमने सरकार बनाई। हमने वोट दिया। सबके वोट मिले। पूर्ण बहुमत की सरकार बनवाई। इनके छ: विधायक बनवाए, सांसद बनवाए, लेकिन इनके तो कथनी और करनी में बहुत फर्क है। जिसका परिणाम देखने को मिल रहा है। ये जो ग़ाज़ीपुर, सिंधु और टिकरी बॉर्डर पर किसान हैं।
बातचीत तो चलो हो जाए। ये इतनी बड़ी बात भी नहीं। लेकिन इससे पहले भी सरकारें रही हैं। उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार रही, बसपा और कांग्रेस भी रहे हैं और आंदोलन भी हुए हैं, लेकिन इस सरकार में जो हमने महसूस किया कि इसे केंद्र ने बिल्कुल अपनी प्रतिष्ठा की बात बना लिया है। जिस तरह से किसानों पर आरोप लग रहे हैं और जिस तरह से किसानों को पेश किया जा रहा है कि ये राष्ट्रद्रोही हैं, आतंकवादी हैं, ये खता सरकार की है। ये अच्छा नहीं है।
हमारे पास तो बहुत कुछ है, हम तो बहुत कुछ बदल देंगे, हमारे पास तो बहुत कुछ है। हम नहीं चाहते कि कुछ गड़बड़ हो। हम पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। हम तो अपनी जिम्मेदारी निभाएंगे। लेकिन इस क्षेत्र को नक्सल की तरह देखना ये ठीक नहीं है।
सवाल- आपको इस बात का मलाल है कि आपने भाजपा के सांसद विधायक बनवाए?
बिल्कुल है। ये आदमी ऐसा निकल गया तो मलाल नहीं होगा? और ये क्या है बातचीत? अरे उन्हें तो किसानों के बारे में बहुत कुछ सोचना था। उन्हें पूछना चाहिए कि भाई! बताओ क्यों ऐसी नौबत आई है। उन्होंने तीन बिल बनाए, लागू कर दिये। उन्हें ऐसा नहीं करना था। चलो अब कर भी दिया तो बातचीत के जरिए एक हल निकाल सकते हैं कि चलो भाई! भूल हो गई, इसमें सुधार कर लेते हैं। ये एक फैसले का तरीका होता है। ये बात तो सामने है। इन्होंने सारे हथकंडे अपना लिये।
सवाल- इस बीच की महापंचायतों और 2013 की महापंचायतों के दौर में लोग आपके पिता (चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत) के हिंदू-मुस्लिम साथ लेकर चलने वाले दौर को याद कर रहे- और मुसलमान नेता ‘जौला’ ने भी महापंचायत के मंच से यह बात कही कि एक तो अजित सिंह को हराया और दूसरा मुसलमान मारे- आप क्या कहेंगे?
हमारे खाप में तो देखिए बिल्कुल ऐसी बात नहीं है। कहीं-कहीं ऐसी बातें निकली होंगी तो कहीं ज्यादा तनाव हो गया होगा लेकिन हम इन सब में विश्वास नहीं करते। कहीं इस तरह की हिंसा फैले इसमें हमारा विश्वास नहीं है। और ये सब भाजपा का देन है। इनका दिमाग बहुत शातिर है। हमने जो महसूस किया कि गांव-देहात की जनता जो आम आदमी है वो इनकी बातों की गहराई में नहीं जाता। 2013 में भी इन्हीं की चाल थी। अपनी राजनीति के लिए कितने भी आदमी मर जाए इन्हें कोई दिक्कत नहीं। तब बहुत नुकसान पहुंचा था। हमारे देहात को बहुत बुरा नुकसान हुआ।
सवाल- तो यह बात आप सभी को भाजपा को दो लोकसभा और एक विधानसभा चुनाव जितवाने के बाद समझ आई?
2013 का दंगा उस समय भाजपा ने लोगों का दिमाग हनन कर दिया। इस तरह से लोगों को पेश किया गया कि मुसलमान इस देश में रहने के लायक नही हैं। मुसलमानों को खत्म कर दो। यह बहुत खतरनाक है। उस समय बहुत नुकसान हुआ। बहुत से लोग पलायन कर गए। हमारा बहुत नुकसान हुआ। खैर हमने धीरे-धीरे चीज़े ठीक कीं।
फिर 2014 का चुनाव आ गया। केंद्र में भाजपा की सरकार आ गई। इन्होंने खेल चला कि भाई बहुत बिगड़ा हुआ माहौल है, हम इसे सुधार रहे। पांच साल इन्होंने पूरे कर लिया। फिर चुनाव हुआ। इन्हें भेद लग गया, कितने प्रदेश में इनकी सरकार बनेगी। फिर इन्होंने अपना रंग दिखाना शुरु किया। यह भी ठीक नही है। रिश्वत खोरी इतनी बढ़ गई है कि कोई ऐसा डिपार्टमेंट नहीं है कि जिसमें भ्रष्ट्राचार चरम पर न हो। चाहें पुलिस हो, चकबंदी विभाग हो। यहां शासन नाम की कोई चीज़ नहीं है। सब पीड़ित हैं, बिना पैसे का कोई काम नहीं होता।
एक पौध तैयार हो रही कि अगर किसी पर 1000 रुपये का इनाम हो गया है तो इसे इस तरह पेश किया जा रहा कि भाई 1000 का इनाम हो गया है। अब तो बहुत गलत हो गया। ऐसे ही डरा कर लोगों को इनामी बदमाश बता कर मार भी दिया जाएगा। इसके पीछे ये होगा कि थानेदार और पुलिस को इनाम मिलेगा लेकिन जनता क्या करे। कौन है इनको कहने वाला। इन्होंने जनता के हाथ में कुछ नहीं छोड़ रखा। पशु की तरह कर दिया है। ठीक है अधिकारी हमारी बात सुन लेंगे लेकिन करेंगे अपने मन की। उनकी जिम्मेदारी क्या है?