कच्चे घर, नालियों में जमी गंदगी, एक ही जगह से पानी पीते सूअर और इंसान. भोजन के लिए संघर्ष के बीच चूहों को मारा जाना. बारिश का पानी जमे होने से फिसलन भरी सड़कें. यह खस्ताहालत है भोजपुर जिले के अंतर्गत आने वाले बड़हरा विधानसभा के पचैना इलाके के मुसहर टोली की.
बिहार के भीतर मुसहर समुदाय महादलित श्रेणी में आते हैं. कोरोना वायरस महामारी और बंद की वजह से फिलहाल लोगों की रोजी–रोटी छिन गई है और अब उनके सामने भुखमरी जैसी स्थिति बनने लगी है. मुसहर भारत के सबसे गरीब समुदायों में से एक है, जो आजादी के 74 साल बाद भी हाशिये पर है. जातियों में बंटे इस समाज में मुसहरों की गिनती अंतिम पायदान पर की जाती है और दलित समुदाय के लोग भी इन्हें अपने से नीचे मानते हैं.
पचैना के मुसहर समुदाय के लोग क्या कहते हैं…
बिहार में मुसहरों की एक बड़ी आबादी रहती है. मुसहर दो शब्दों के मेल से बना है. मूस यानी चूहा और हर यानी उसका शिकार करने वाला और खाने वाला। इनकी स्थिति कुछ ऐसी है कि इन्हें हर दिन भोजन के लिए संघर्ष करना पड़ता है, यहाँ के स्थानीय निवासियों के मुताबिक , “काम धंधा बिलकुल नहीं है , हमारे पास कुछ करने को नहीं है। भूखे तक रहना पड़ता है, चूहे भी पकड़ते हैं, उंगलियों के नाखून से चूहे की चमड़ी उधेड़ते हैं और थोड़ा बहुत जो अनाज है, उसके साथ खाते हैं।’’
मैं अभी इस क्षेत्र में लोगों से बात कर ही रहा था कि एक नौजवान युवक जिसकी टी–शर्ट पर “बीस्ट मॉड” लिखा था , मेरी तरफ आया और अपने हालत बयान करने लगा, वह गुस्से में जरूर था लेकिन उसकी बातों में दर्द भी था। मैं उसके सामने माइक लगाता, इससे पहले ही वह बोलने लगा, ‘‘ गरीब को देखने वाला कोई नहीं है । गरीब की रक्षा करनेवाला कोई नहीं है। सरकार सिर्फ वोट लेने के लिए है, गरीबों की सुख–सुविधा के लिए नहीं है । ना इस बस्ती में पंचायत भवन है, ना सामुदायिक भवन है और ना ही बच्चों के पढ़ने के लिए स्कूल हैं। सरकार की तरफ से एक दालान भी नहीं मिला है, जहां हम लोग सुकून से बैठ सकें। इतनी गिर गयी है क्या सरकार ? ऐसे विकास होगा क्या ? “
जैसे ही मैं आगे बढ़ा तो एक अपंग महिला मिली और उसने बताया कि ना कोई काम मिलता है करने के लिए और ना ही सरकार की तरफ से कोई मदद की गयी है। इसी बीच मेरे साथ यहां आए और इस इलाके की जानकारी रखनेवाले राजू सिंह कहते हैं कि लॉकडाउन में सरकार की तरफ से कुछ नहीं मिला और विधायक एक बार सुध लेने भी नहीं आए।
यहां के लोग बताते हैं कि उनके साथ भेदभाव का आलम कुछ ऐसा है कि अगर कहीं इलाके में दिहाड़ी 400 रूपए है तो उन्हें सिर्फ 200 रूपए दिए जाते है और उसी में गुज़ारा करना पड़ता है।
बस्ती में 70 घर और किसी भी घर में शौचालय नहीं , पानी का नल नहीं
जैसे–जैसे मैं बस्ती में आगे बढ़ रहा था वैसे ही गरीबी का भयावह मंजर दिखाई पड़ रहा था। एक महिला ने बताया कि वह कूड़ा बीनकर जितना भी पैसा कमाती है, उसी से घर चलाती है। घर में बारिश का पानी घुसा हुआ था और उसी में उनके बीमार पति सो रहे थे । वहां के रहने वाले लोगों ने बताया कि पूरी बस्ती में तक़रीबन 70 घर हैं लेकिन किसी भी घर में शौचालय नहीं हैं और ना ही किसी घर में पानी का नल है।
हैरत की बात है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राज्य में जल नल योजना ला चुके हैं और इसका उदेश्य ही लोगों को नि:शुल्क और साफ पानी देने का है। मगर अफसोस इस बस्ती में इस योजना कहीं नहीं दिखती है। वहीं स्वच्छ भारत अभियान तो दूर–दूर तक नहीं हीं है।लोग शौच के लिए घर से काफी दूर जाते हैं और खासतौर पर महिलाओं और बच्चों को परेशानी होती है।
मुसहर परिवार के लोगों का कहना है कि वे चाहते हैं कि उन्हें खुले में शौच न जाना पड़े।उनके घर में शौचालय बन जाये।इस बस्ती में न तो स्वच्छता अभियान का हाल देखने मुखिया गये हैं और न ही स्वच्छ भारत मिशन का कोई प्रतिनिधि।स्थिति ऐसी रही तो खुले में शौचमुक्त का लक्ष्य कैसा पूरा होगा ?
स्वच्छ भारत मिशन की वेबसाइट के मुताबिक, बिहार में फिलहाल शौचालय का कवरेज यानी इसकी पहुंच 99.57 फीसदी है। भोजपुर जिले में 2019 -20 के आंकड़ों पर नज़र डालें तो शौचालय की पहुंच 76.23 फीसदी है। बिहार में खुले में शौच मुक्त का आंकड़ा 70.27 फीसदी है। लेकिन इस इलाके कि हालत देखकर खुले में शौच से मुक्ति को लेकर पेश किया गया 99.57 फीसदी का आंकड़ा संदेहजनक लगता है।
मुसहर समुदाय और राजनीति
बिहार महादलित विकास मिशन के आंकड़े बताते हैं कि राज्य में मुसहर के नाम दर्ज आबादी करीब 21.25 लाख है। इनमें पूर्वी–पश्चिमी चंपारण, मधुबनी, कटिहार, नवादा, गया, पटना आदि जिले शामिल हैं। अंग्रजों के जमाने में 1871 में पहली जनगणना के बाद पहली बार इस जाति को अलग श्रेणी में डालकर जनजाति का दर्जा दिया गया।
2014 में बिहार के मुख्यमंत्री बने जीतन राम मांझी इसी समुदाय के हैं। मुसहर पहले दलित जाति में आते थे। 2007 में नीतीश कुमार ने इसमें बदलाव किया। ओबीसी को दो हिस्सों में बांटकर उन्होंने एक नई श्रेणी तैयार की–अति पिछड़ा वर्ग और बाकी दलित जातियों को दो हिस्से में बांट कर इसमें से नया जातीय समूह खड़ा किया महादलित। बिहार में इस समुदाय से जीतनराम मांझी भले ही मुख्यमंत्री बन गए हों लेकिन यह समुदाय कही सड़कों पर फ्लाईओवरों के नीचे तो गांवों के किसी कोने मे हाशिये पर पड़ा है।