मुजफ्फरपुर में अभी चमकी बुखार का कहर थमा भी नहीं कि गया से आने लगी मौत की खबरें…

मुजफ्फरपुर में अभी चमकी बुखार का कहर थमा भी नहीं कि गया से आने लगी मौत की खबरें…

बिहार के लिए बीता माह बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण रहा. मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, हाजीपुर, वैशाली और चंपारण के इलाके में चमकी बुखार ने 150 से अधिक बच्चों को लील लिया. इस बीच बरखा होने से इन जिलों की स्थिति में जरा सा सुधार आया ही था कि गया जिले से अशुभ खबरें आने लगी हैं. बीती 2 तारीख से गया के भीतर कुल 6 बच्चों की मौत हो चुकी है. अनुग्रह नारायण मगध कॉलेज के चिकित्सा अधीक्षक डॉ वी के प्रसाद ने जानकारी दी है कि 2 जुलाई के बाद से अब तक ऐसे कुल 22 मरीजों को भर्ती किया गया है, इनमें से 6 बच्चों की मौत हो चुकी है.

चिकित्सा अधीक्षक डॉ. वीके प्रसाद ने कहा है कि यह चमकी बुखार (Acute Encephalitis Syndrome) का मामला हो सकता गहै लेकिन अभी तक इसकी पुष्टि नहीं हो सकी है. वे अभी रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं. फाइनल रिपोर्ट के बाद ही स्थिति स्पष्ट हो सकेगी.

यहां हम आपको बताते चलें कि बिहार के मुजफ्फरपुर समेत आसपास के कई जिलों में चमकी बुखार का असर देखने को मिला. वैशाली और मुजफ्फरपुर इस बुखार से अत्यधिक प्रभावित जिले रहे. इस बीच तो वैशाली जिले के एईएस प्रभावित हरिवंशपुर गांव के लोगों ने बच्चों की हो रही मौतों और पेयजल की समस्या को लेकर प्रदर्शन किया लेकिन बजाय इसके कि सरकार उनकी स्थिति सुधारती, सरकार (पुलिस) ने ग्रामीणों पर ही मुकदमे दर्ज कर दिए.

छोटे बच्चों को खतरा अधिक
गौरतलब है कि इस बुखार की जद में 15 साल तक के बच्चे अधिक आ रहे हैं. इस बुखार की जद में आकर मरने वाले अधिकांश बच्चों की उम्र भी एक से सात वर्ष के बीच है. इस वर्ष इस बुखार ने खासा कहर बरपाया और शासन-प्रशासन इस पूरे मामले की संजीदगी को भांपने और थामने में नाकाम रहा.

चमकी बुखार की जद में 1 से 7 साल के बच्चे अधिक आते हैं- (तस्वीर – आजतक)

सरकार और नेताओं की संवेदनहीनता हुई उजागर
यहां यह बताना जरूरी हो जाता है कि मुजफ्फरपुर के जिस अस्पताल में सबसे अधिक मौतें हुईं. उसी अस्पताल में राज्य सरकार के स्वास्थ्य मंत्री ऑन कैमरा क्रिकेट मैच का स्कोर पूछते देखे गए. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जनता और बच्चों के परिजनों ने हूट किया. केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री इस पूरे मामले पर मीडिया से बात करने से कतराते रहे.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

यहां आप सभी को अंत में यह भी बताना जरूरी है कि बिहार के लिए चमकी बुखार कोई नई चीज नहीं है. साल 2014 में भी डॉ हर्षवर्धन ही स्वास्थ्य मंत्री थे और केंद्र में मोदी सरकार थी. वे तब भी इस मेडिकल कॉलेज व हॉस्पिटल (श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज व हॉस्पिटल) आए थे. एक सैकड़ा बेड वाले स्पेशल वॉर्ड की बातें कहीं गई थीं लेकिन साल 2019 में भी वहीं बातें हो रहीं. साल 2019 में भी डॉ हर्षवर्धन ही स्वास्थ्य मंत्री हैं. अब इसे तो विडंबना ही कहेंगे कि एक ओर जहां हम मंगल समेत तमाम ग्रहों पर जाने के सपने देख रहे हैं. ठीक उसी समय में हम अपने भविष्य कहे जाने वाले बच्चों तक को बचा नहीं पा रहे.

लीची पर फोड़ा जा रहा ठीकरा
चमकी बुखार को लेकर देश व प्रदेश के भीतर उठे शोर में लीची को भी एक बड़े कारक के तौर पर पेश करने की कोशिश की गई. हालांकि इस बात में कोई दम नहीं दिखा. पूसा एग्रीकल्चर इंस्टीट्यूट से पीएचडी कर रहे बादल सिंह ने जब हमने इस बाबत बात की तो उन्होंने इस पूरी बहस को सिरे से नकार दिया. उनका कहना था कि इस बात और बहस में कोई दम नहीं, लेकिन आप सभी को यह बताना भी जरूरी है कि इस साल लीची के इर्द-गिर्द उठे इस शोर ने इसकी खेती करने वालों को खासा चोट दिया है. इस वर्ष लीची के कारोबार को करोड़ों का घाटा पहुचा है. इस शोर ने व्यापारियों को लीची के किसानों से दूर ही रखा…