आसमान में ध्रुव तारा और धोनी*

आसमान में ध्रुव तारा और धोनी*

आसमान में इतने सितारे होते हैं कि एक सितारा टूट जाए तो कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. लेकिन अगर ध्रुव तारा कभी टूटे तो रातों को उत्तर दिशा नहीं पत चल पाएगी.

सितारे टूटे तो टूटे लेकिन सितारा नहीं टूटना चाहिए. राहुल द्रविड के मैदान से जाने के बाद क्रिकेट में मुझे कभी कोई सितारा नहीं दिखा. मोहभंग सा होता गया. शायद क्रिकेट से ज़्यादा साइलेंट रहकर ज़िम्मेदारियां निभाना पसंद था. सालों बाद पता नहीं कैसे, मुझे वो सितारा टीवी के टिकर पर खूब देर तक चमकता दिखा.

धोनी*

युवराज सिंह की कही लाइन एडिट कर खुद को समझाया- जब तब धोनी के आगे सितारा है, तब तक ठाठ है.

मन था कि आज मैच के टिकर से ये सितारा तब तक न हटे, जब तक खुशी से भागता कोहली धोनी को गले न लगा ले.

मन था कि ये जो कल के पैदा हुए चिलहांडु उस धोनी को रिटायर होने की सलाह दे रहे हैं जिसने वर्ल्डकप की ट्रॉफी उसको पकड़ा दी, जिसने उसका सबसे ज़्यादा इंतज़ार किया. जिसने नेताओं के आगे सेल्फी खिचाते लोगों की भीड़ से दूर रहना चुना.

जिसने साफगोई से कह दिया- जी मैं अब टेस्ट नहीं खेलता. मैं फोटो में कैसे आ सकता हूं?

जो जीत के जश्न के बाद शैम्पियन की खुलती बोतलों के झाग के बीच सबसे पीछे रहा. जिसने मुशर्रफ के बाल न कटाने की सलाह देते ही बाल कटवा लिए.

वो आदमी जो बिलकुल वैसे रिएक्ट करता है जैसे मैं करता हूं. मुश्किल, अच्छे वक़्त में अपने ईश्वर को याद. अपने अपनों को याद. वो अपनी बच्ची के साथ वैसे ही खेलता है जैसा मेरे बड़े मेरे साथ बचपन में खेले होंगे.

मन था कि धोनी आज जिताए. ताकि ‘हमारे यहां आलोचना की जाती है’ वाले पोस्टर चिपकासुओं को जवाब दिया जा सके. ये बताया जा सके कि बढ़िया ठंडा वो नहीं होता जिसको पिएं तो जीभ फौरन खुश हो जाती है. बढ़िया ठंडा वो होता है जिसको पिएं तो नाक में हिचकियां सी आ जाती हैं. लगा कि बाकी दुनिया को भी आज पता चल जाए कि धोनी वही ठंडा है. बोले तो स्टिल कूल है.

रही बात धीमा खेलने की तो कौन है इस दुनिया में, जो हमेशा एक सी फॉर्म में रहा.

ये वैसे ही है कि किसी ने एक अच्छी कहानी लिख दी तो आप आजीवन उससे चाहते रहें कि वो अब वैसी ही लिखे. इसी उम्मीद के चक्कर में न जाने कितने अनुराग कश्यपों की बॉम्बे वेल्वट और रमन राघव…गैंग्स ऑफ वासेपुर की तुलनाओं में मारी जा रही हैं.

महेन्द्र सिंह धोनी “माही”

दिल की धड़कनों की तुलना करने का कोई मीटर होता तो हम सब न जाने कब का एक-दूसरे को मार चुके होते. ‘तुझे पता है तेरा दिल आज कम धड़का, कल वाला सही धड़का था.’

तुलनाप्रेमियों, अपने-अपने मीटर लाकर मेरे सीने पर रख दो. नॉन-क्रिकेट प्रेमी होने के बावजूद मेरा दिल आज धोनी को देखकर उतना ही धड़का है, जितना शायद कभी नहीं धड़का होगा. चाहता था कि एक साइलेंट किलर दुनिया को बताए कि बिना मार्केटिंग के, कुछ दिन खराब फॉर्म के भी बाजियों को जीता जा सकता है. वैसे भी,

‘आखिर में तुम पाओगे
कि सब कुछ जीत लेने में
और अंत तक हिम्मत न हारने में कोई फ़र्क़ नहीं..’

न्यूज़ीलैंड को बधाई देने के बाद वो जो धोनी सीढ़ियों को चढ़कर ऊपर गया था न? जब स्लो मोशन वाले कैमरों ने धोनी को दिखाया था, धोनी की वो दौड़ और रन आउट हुई दौड़ मेरी रगों में तब तक दौड़ती रहेगी, जब तक किसी दिन धोनी को किसी रोज़ वो दौड़ लगाते नहीं देखूंगा, जिसमें सब मिलकर बोलेंगे- माही दौड़ रहा है, माही दौड़ रहा है.

माही की वो दौड़ देखने तक मेरी रगों में स्लो मो और रन आउट की दौड़ दौड़ती रहेगी. मेरा दिल कभी धड़कना बंद करे तो माही की आज वाली ये दो दौड़ याद दिला देना. शायद दिल धड़कना शुरू हो जाए.

बस मेरे सीने पर वो तुलना वाला मीटर मत लगाना यार… जिसे तुमने धोनी पर लगा लगाकर ऐसा कर दिया कि आज जब वो आउट हुआ तो सिर्फ़ आउट होना नहीं लगा.

लगा कि आसमान से ध्रुव तारा टूट गया.

अंधेरों में उत्तर का मिलना ज़रूर होता है. धोनी के आगे सितारा लगना ज़रूरी होता है.

(यह ब्लॉग विकास त्रिवेदी ने लिखा है. वे बीबीसी दिल्ली की हिंदी सर्विस के लिए काम करते हैं.)