नमस्ते, चलिए वहीं से शुरू करते हैं जहां छोड़ा था. पहला भाग अगर नहीं पढ़ा हो तो यहाँ पढ़िए. बात घर में रहने पर ख़त्म हुई थी. अगर हम अपनी बात करें तो घर के भीतर रहते-रहते तकरीबन एक महीना बीत चुका है. 10 मार्च. होली का दिन. मैं ऑफिस जाने की तैयारी करने लगा था. अभी सुबह के अलार्म को बजे अधिक समय हुआ भी नहीं था कि ऑफिस से मैसेज आ गया कि हमारे इलाका सबसे अधिक संक्रमित हो चुका है. ऐसे में अगले आदेश तक ‘वर्क फ्रॉम होम’ करना है. थोड़ी ख़ुशी भी हुई कि घर पर काम का काम भी हो जायेगा और त्यौहार भी मन जायेगा, लेकिन वही आदेश अब तक जारी है. वर्क फ्रॉम होम. सही मायने में ‘वर्क’ कम और “होम” ज्यादा है. सभी का यही हाल है क्या कीजिएगा? सोशल मीडिया पर ही नए-नए चैलेंज शुरू हो गए. काढ़ा चैलेंज हुआ. गमछा चैलेंज हुआ. धोती कुरता चैलेंज भी हो लिया, लेकिन लड़कियों के साड़ी चैलेंज ने अधिक व्यूज़ बटोरे और लव रिएक्शन्ज़ भी. इधर हमारे दफ्तर की ओर से भी चैलेंज और टास्क शुरू हो गए हैं. बोला गया कि जब तक वर्क फ्रॉम होम है जब तक दाढ़ी बढ़ानी है. हम भी दाढ़ी चैलेंज और टास्क में जुटे हैं. कभी-कभी लगता है कि अगर लॉक डाउन जल्दी नहीं हटा तो दाढ़ी पैरों तक न पहुंच जाए 😉 विष्णु भाई को भी टक्कर देने लगे हैं दाढ़ी के मामले में.
यहां से अपने देश की बहुत याद आती है, तो जरा उस पर कुछ कहासुनी कर लेते हैं. इस बीच अपने देश के घोषित लॉकडाउन के एक सप्ताह बचे हैं. सबके मन में जिज्ञासा है कि आगे क्या होगा? क्या लॉक डाउन हटेगा? बढ़ेगा या चरणों में हटाया जायेगा? लोग सरकार के फैसलों की ओर नजरें टिकाए हैं. कुछ सूबों में तो लॉकडाउन के बावजूद “हॉटस्पॉट” की बात हो रही है. यानी जिन इलाकों में संक्रमण पाया गया है उन इलाकों को सील किया जायेगा. बाकी इलाकों में छूट दी जा सकती है. मेरी समझदारी के हिसाब में भारत में संक्रमण ने अब गति पकड़ी है और अगर यहां लापरवाही और ढिलाई हुई तो संक्रमण जंगल में आग की तरह फैल सकता है. ऐसी खबरें भी आ रही हैं कि किसानों का बुरा हाल है, फसल तैयार है लेकिन काटने के लिए मज़दूर नहीं हैं. सभी डरे हुए हैं. कोई घर से नहीं निकलना चाहता. मैं इसी उम्मीद में हूं कि सरकार इसके मद्देनज़र कोई इंतजाम करेगी. घर बात हुई तो पता चला कि लग्न के दिन शुरू होने वाले हैं. हां वही शादी-विवाह का सीजन. पापा खुद ही ‘पंडित’ हैं. पंचांग देख के बता रहे थे. मैं सोचता हूं कि ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ के दौर में ‘शादियां’ कैसे होंगी?. दोनों साथ होना तो खतरे को आमंत्रण है. ये कठिन समय है.
नीदरलैंड में तो अभी भी हालात वैसे ही हैं. पूर्ण ‘लॉकडाउन’ तो नहीं है लेकिन डिस्टेंसिंग बनाये रखने की अपील है. बाहर न जाने के डर और गरज से कुछ ऑनलाइन मंगा लो तो डिलिवरी वाला डिब्बा बाहर ही फेंक के लौट जा रहा है. सब एहतिहात बरत रहे हैं. इसी बीच धूप आनी शुरू हो गयी है. यहां मौसम हमेशा ठंडा ही रहता है. धूप देखते ही सभी बाहर निकलने लगते हैं. पार्क में फुटबॉल खेलने लगे हैं. सोशल डिस्टेंसिंग के साथ ;). गुल्लू भी इनको देख के बोलती हैं लेट्स प्ले पापा! लेकिन हम उसका ध्यान कहीं और मोड़ देते हैं. घर से आते समय ‘पंचतंत्र’ की किताब उठा लाये थे. अभी तक वैसे ही रखी हुई थी लेकिन आज-कल जरा पढ़ने की कोशिश में लगा हूं. ज्ञान गंगा है पूरी. सोचता हूं कि पूरा पढ़ लिया तो थोड़ा-थोड़ा करके बिटिया को सुनाऊंगा :). आप लोग भी व्यस्त रहें, मस्त रहें और स्वस्थ रहें. आगे भी मौका और समय मिला तो बातें और मुलाकातें जारी रहेंगी…
अनुराग IT वाले…
यह लॉकडाउन डायरी हमें अनुराग तिवारी ने लिखकर भेजा है. अनुराग इन दिनों ‘नीदरलैंड’ में रहकर एक आईटी फर्म के साथ काम करते हैं…