इससे पहले कि सपने सच हों आपको सपने देखने होंगे. ये पंक्तियां फेसबुक और व्हाट्सएप पर दिलखुश कुमार का इंट्रो हैं. दिलखुश कुमार. बिहार के सहरसा जिले के ‘बनगांव‘ के रहवासी. बस ड्राइवर के बेटे और दो प्यारे बच्चों के पिता. सिर्फ इंटर पास और आज बिहार प्रांत के कोसी इलाके में ‘आर्यागो कैब सर्विस‘ के सीईओ फाउंडर और
डायरेक्टर.
ऐसे समय में जब गांव–देहात और छोटे शहरों से नौजवान महानगरों की ओर दौड़ लगा रहे हों. बंगलुरू, नोएडा और गुड़गांव जैसे शहरों में रोजाना स्टार्टअप्स खुल और बंद हो रहे हों. ठीक उसी समय में दिलखुश कुमार ‘रिवर्स माइग्रेशन’ की नाव खे रहे हैं, और न सिर्फ नाव खे रहे हैं बल्कि उस पर रोजाना सैकड़ों लोगों को नदी भी पार करा रहे हैं. (नदी और नाव को अभिधा में लें लेकिन दिलखुश कुमार को नहीं).
बिना किसी खास पढ़ाई–लिखाई और डिग्री लिए बगैर रोजाना 60-65 हजार का टर्नओवर. लगभग 70 लोगों को रोजगार मुहैय्या कराने वाले शख्स. हर साल बाढ़ का दंश झेलने वाले कोसी इलाके के तीन प्रमुख जिले सहरसा+सुपौल+मधेपुरा में लोकल कैब सर्विस मुहैय्या कराने वाले. जल्द ही दरभंगा+मुजफ्फरपुर में भी इसकी सर्विस शुरू करने की मंशा रखने वाले. सामान्य देहयष्टि वाले इस शख्स में वो सबकुछ है कि उनकी कहानी लोगों का दिल खुश कर दे. दिलखुश कुमार = दिल+खुश कुमार…
गांव आने–जाने में होती थी दिक्कत, खोल ली अपनी कैब सर्विस…
दिलखुश से जब आर्यागो के शुरुआत और आइडिया पर बात की गई तो वे कहते हैं कि उन्हें पटना से गांव आने–जाने में खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था. टैक्सी लेने पर किराया भी बहुत देना पड़ता. उन्होंने हिम्मत जुटाकर एक गाड़ी ले तो ली लेकिन वो भी महंगा सौदा था. आखिर कमजोर आर्थिकी वाले राज्य में गाड़ी रखना कबसे फायदे का सौदा होने लगा. तिस पर से उनकी संवेदनशीलता उन्हें लगातार परेशान करती रहती. अपनी और आमजन की इन्हीं परेशानियों को देखते हुए उन्होंने सोचा कि क्यों न एक सस्ती ‘कैब सर्विस‘ शुरू की जाए. उन्होंने आधिकारिक तौर पर 2 अक्टूबर 2016 के रोज ‘आर्यागो कैब सर्विस‘ शुरू की और उसके बाद की दास्तां तो सबकी नजरों के सामने है.
जन प्रतिनिधियों से नहीं मिला सहयोग, लोगों से मिलीं फब्तियां…
ऐसा नहीं था कि दिलखुश कुमार के लिए ऐसा करना आसान रहा. उन्हें इलाके के जनप्रतिनिधियों की ओर से कोई सहयोग नहीं मिला. तिस पर से आस-पास रहने वाले और सगे-सबंधियों की फब्तियां रही-सही कोर-कसर पूरा कर देतीं. जरा सोचिए जहां पिछली पीढ़ी की हैसियत नई पीढ़ी के सपनों के बीच आती हो. ‘बाप मर गइल अन्हारे में – बेटा के नाम पावरहाउस’ जैसी कहावतें पीठ पीछे चिपका दी जाती हों. वहां एक बस ड्राइवर के बेटे को कंडक्टर से आगे बढ़ते देखकर बहुतों की भौंहें टेढ़ी होती रहीं लेकिन दिलखुश इन सबसे लड़कर आज यहां तक पहुंचे हैं और क्या खूब पहुंचे हैं. वे तीन जिलों में ‘कैब सर्विस‘ मुहैय्या करा रहे हैं और इस वर्ष के अंत तक वे बिहार के 10 जिलों तक अपना नेटवर्क फैलाने का प्लान बना चुके हैं.
स्टार्टअप इंडिया और पीएम मोदी ने लिया नोटिस…
कहते हैं न कि अपना काम इतनी शांति से करो कि सफलता धूम मचा दे. दिलखुश कुमार की दास्तां भी कुछ ऐसी ही है. कौन जानता था कि महज इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई करने वाला शख्स आज लाखों का बिजनेस करेगा. 70 लोगों के घर चलने का जरिया बन जाएगा. स्टार्टअप इंडिया उनकी इस कोशिश को नोटिस में लेगा और पीएम मोदी उन्हें बिहार के सफल स्टार्टअप की शुरुआत करने वाले युवा उद्यमियों के तौर पर संबोधित करेंगे.
ओला और उबर से 30-40 फीसदी सस्ती सर्विस…
आमतौर पर ऐसा संभव नहीं होता कि छोटी शुरुआत करने वाले बड़ी कंपनियों को टक्कर दे पायें लेकिन दिलखुश की कहानी जुदा है. चूंकि उनके पिता एक बस ड्राइवर रहे इसलिए वे ट्रांसपोर्टेशन लाइन की पेचीदगियों से वाकिफ थे. वे कहते हैं कि ये बड़ी टैक्सी कंपनियां पहले से ही विकसित शहरों में सुविधाएं मुहैय्या कराती हैं. पैसे भी अधिक लेती हैं. उनका टार्गेट ऐसे शहर और इलाके हैं जहां के लोग अब भी विकास की राह तक रहे हैं. वे कहते हैं कि उनकी कंपनी ओला और उबर जैसी कंपनियों की तुलना में फायदा भी कम कमा रही है.
सामाजिक सरोकार से भी है नाता…
जब हम सामाजिक सरोकार जैसे शब्दों पर ठिठकते हैं तो वे कहते हैं कि उनकी कैब सर्विस किसी गरीब परिवार की गर्भवती महिला को अस्पताल पहुंचाने और उसे बच्ची होने पर कोई चार्ज नहीं करती. वे बिना दहेज की शादी करने वाले दूल्हे के लिए भी मुफ्त सर्विस देते हैं. इसके साथ ही वे शहीदों के परिवारजनों के लिए भी अतिरिक्त सुविधाएं देने की बात कहते हैं. वे बिहार के रहने वाले हैं और सामाजिक सरोकार जैसे शब्दों के महत्व और मार्केटिंग को बखूबी जानते–समझते हैं. वे कहते हैं कि अभी भी छोटे शहरों में लोग टैम्पू से ही कहीं आने–जाने को तरजीह देते हैं. जैसे–जैसे लोग कैब सर्विस की ओर रुख करेंगे. वैसे–वैसे उनकी कंपनी फायदा कमाने लगेगी. साथ ही वे कई लोगों को रोजगार भी दे सकेंगे.
प्राथमिक जानकारी पत्रकार पुष्य मित्र जी का फेसबुक स्टेटस. स्टोरी व रपट दिलखुश कुमार से बातचीत पर आधारित…