दिन के करीब 11 बज रहे हैं. लकड़ी की चौकी पर मिट्टी का चूल्हा रखा है और खाना बन रहा है. आरती घुटने भर पानी में खड़ी है ताकि जरूरत पड़ने पर वह खाना बना रही बहन को सामान लाकर दे सके. पूरा परिवार और सामान इसी चौकी के आसपास जमा हो गया है. इस उमस भरी गर्मी में पानी पर पड़ती सूरज की किरणें रह–रहकर दीवारों पर अजीब–अजीब सी छाया के साथ चमक जाती हैं और छोटे–छोटे बच्चों के पानी में गिरने–पड़ने की आवाज के साथ उनका रोना और हंसना जारी रहता है.
मुंगेर की हेरुदियारा की रहनेवाली आरती के घर में पिछले करीब 10 दिन से बाढ़ का पानी घुसा हुआ है और वह बताती हैं, ” नीचे अब जमीन इतना दलदल हो चुका है कि एक–एक कदम चलना भी मुश्किल है. पानी जाने के बाद कई दिन तो सफाई में लग जाएंगे. इस उमस भरी गर्मी में इतने छोटे से जगह पर किसी–किसी तरह गोयठा और लकड़ी पर खाना बनाने की दिक्कत आप समझ ही नहीं सकती हैं.”
गैस चूल्हे के बारे में पूछने पर कहती हैं कि पैसे हों तब तो भरवाया जाए और गोयठा से किसी–किसी तरह काम चल ही जाता है.
मुंगेर के चंदन बाग की यशोदा देवी सुबह से झाड़ू और बाल्टी लेकर घर से कीचड़ निकाल रही है. जिला प्रशासन की तरफ से किसी भी मदद के बारे में पूछने पर वह गुस्सा होते हुए कहती हैं, ‘‘ हमें एक मुट्ठी चूड़ा–शक्कर भी मिलता सरकार की तरफ से तो लगता कि हमारी फिक्र है किसी को, लेकिन गाय को सड़क पर बांध हम पिछले 10 दिन से छत पर रह रहे थे. 2016 में भी ऐसा ही हुआ था और तब भी एक मुट्ठी चना भी नहीं मिला.’’
उनके घर से तो पानी निकल गया है लेकिन कुछ कदम की दूरी पर अब भी लोगों के घरों में पानी भरा है. इस इलाके से गुजरने वाली मुख्य सड़क के दोनों तरफ निचले इलाके में पानी भरा है और सड़क पर कतार से लोगों ने टेंट डालकर मवेशियों को बांध रखा है. इस उमस भरी गर्मी में खाना–पानी की अनिश्चितता के बीच लोग कहीं–कहीं झुंड बांधकर बैठे हैं और चर्चा का विषय बाढ़ और राजनीति है. बातचीत के बीच कुछ लोग लोग गुस्सा हो जा रहे हैं और कहते हैं– इस बार मुखिया चुनाव में कोई उनके यहां आए वोट मांगने के लिए आए. इसी बीच कोई दूसरा आदमी यह कह बैठता है–फलना आपके ही वोट से जीत–हार तो नहीं जाएगा.
इन्हीं में से एक व्यक्ति बातचीत में नुकसान के बारे में पूछने पर कहते हैं, ” नुकसान के बारे में क्या ही बात करें, कौन इसकी भरपाई करेगा, हजारों रुपये की फसल खेत में बर्बाद हो गई, घर से पानी निकल तो गया लेकिन सामान को जो नुकसान हुआ वह तो हुआ ही, लेकिन अब मरम्मत पर भी खर्चा लगेगा. बस पूरे परिवार की किसी तरह जान बची हुई है…यही काफी है.”
मुंगेर में गंगा नदी में बाढ़ आने से पानी करीब 100 गांवों में घुसा है. हालांकि राहत की बात रही कि यहां पानी अब लोगों के घरों से निकलने लगा है. बाढ़ आने से पहले की तैयारियों के बारे में पूछे जाने पर चंदन बाग के सुनील पोद्दार कहते हैं, ‘ ‘तैयारी क्या करनी होती है, आपके घर में पानी घुस रहा है तो जो करना होगा, वह आप खुद करेंगे. डेंगी भी आपको ही तैयार रखना है।’’
बाढ़ के बारे में पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र ‘तैरने वाला समाज डूब रहा है’ में लिखते हैं, ” बाढ़ अतिथि नहीं है. यह कभी अचानक नहीं आती. दो–चार दिन का अंतर पड़ जाए तो बात अलग है. इसके आने की तिथियां बिल्कुल तय हैं. लेकिन बाढ़ जब आती है तो हम कुछ ऐसा व्यवहार करते हैं कि यह अचानक आई विपत्ति है. इसके पहले जो तैयारियां करनी चाहिए, वे बिल्कुल नहीं हो पाती हैं. इसलिए बाढ़ की मारक क्षमता पहले से अधिक बढ़ चली है.’’
बाढ़ के बारे में जानकारी लेने के लिए आप बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण पर भी जाएंगे तो भी आपको वस्तु स्थिति का अंदाजा नहीं लग पाएगा. कुल मिलाकर यह वेबसाइट भी अपडेट नहीं रहती है.
आंकड़ों से आगे जमीन पर लोग हैं, उनकी दिक्कतें हैं, परेशानियां हैं. हेरुदियारा की पूनम देवी (चांय समुदाय से आनेवाली) घर में भी करीब 10 दिन से पानी है, उनके पास एक कमरे का पक्का मकान है लेकिन आगे खपरैल का कच्चा मकान है. वह हाथ पकड़कर अपना घर ले जाते हुए कहती हैं, ” आप भी मेरे घर में पानी में कुछ देर रहिए तब आपको पता चलेगा कि हम कैसे रह रहे हैं, ज़मीन पर पैर डालिए तो पैर धंसता ही चला जाता है, चप्पल पहनकर चल नहीं सकते हैं, पैर की हालत खराब है. राशन की दिक्कत अलग से है.”
राशन कार्ड के बारे में पूछने पर कहती हैं, ” इतना कोरोना आया और सरकार ने पता नहीं सबको क्या–क्या दिया लेकिन हमें तो आज तक एक किलो चावल भी नहीं मिला।”
बिहार में इस साल जून 2021 में सामान्य से 111 फीसदी ज्यादा बारिश हुई, जो इस बात का स्पष्ट संकेत थी कि चीजें सामान्य तो नहीं ही रहने जा रही हैं. राज्य में धान, मक्का और गन्ने की खेती को बाढ़ से नुकसान पहुंचा है. बाढ़ प्रभावित जिलों में फसलें डूब चुकी हैं. मीडिया में आई खबरों में कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया है कि इस साल राज्य में धान की 270,000 हेक्टेयर फसल को नुकसान पहुंचा है. वहीं 100,000 हेक्टेयर मक्का और 45,000 हेक्टेयर गन्ने की फसल को क्षति पहुंची है.
मुंगेर किला मैदान
मुंगेर के किला मैदान में प्रशासन की तरफ से लगे राहत शिविर में जाफरनगर के कई परिवारों ने शरण ली है. यहां लोग अपने मवेशियों को भी लेकर आए हैं. इनका कहना है कि प्रशासन की तरफ से इन्हें टेंट बांधने के लिए प्लास्टिक शीट दी गई है और सामुदायिक किचन भी चल रहा है. जाफरनगर के सीताचरण से यहां आईं शीला देवी बताती हैं कि वह अपने छह बेटों और उनके परिवार के साथ यहां पिछले कई दिनों से रह रही हैं और घर पर मचान बांधकर अनाज को रखकर आई हैं लेकिन खेत में लगी फसल तबाह हो चुकी है और करीब 50,000 रुपये का नुकसान तो सीधे तौर पर उन्हें हो चुका है, बाकी खेत में लगी फसल से जो आमद होती, उसकी तो बात ही जुदा है.
केंद्रीय जल आयोग के अनुसार बिहार में गंगा नदी, गंडक नदी, बूढ़ी गंडक नदी, बागमती नदी, कमला–बलान नदी, कोसी नदी उफनाई हुई हैं। बाढ़ से राज्य के करीब 16 जिलों के क़रीब 40 लाख से ज़्यादा लोग प्रभावित हैं.