ग्राउंड रिपोर्ट: क्या मंदी की मार से बर्बादी की कगार पर आ खड़े हुए हैं झारखंड के ये जुड़वा शहर?

ग्राउंड रिपोर्ट: क्या मंदी की मार से बर्बादी की कगार पर आ खड़े हुए हैं झारखंड के ये जुड़वा शहर?

झारखंड के औद्योगिक शहरों में से एक है जमशेदपुर. लोगबाग इसे टाटा भी कहते हैं. जिसे जमशेदजी नौसरवानजी टाटा ने बसाया. जहां पूरे देश व दुनिया से लाखों लोग रोजगार के मौके तलाशते हुए पहुंचते हैं. इसी जमशेदपुर शहर से सटा हुआ है आदित्यपुर. जमशेदपुर और आदित्यपुर को ट्विन सिटी भी कह सकते हैं. दोनों शहर चलायमान रहने के लिए एक दूसरे पर निर्भर हैं, लेकिन फिलवक्त इन दोनों चलायमान शहरों की गति एकदम से थम गई है. या कहें कि ये दोनों शहर ‘स्टैंडस्टिल’ मोड में आ गए हैं.

बात कुछ ऐसी है कि देश में आर्थिक मंदी आ चुकी है. बीते सप्ताह देश के एक प्रतिष्ठित अखबारों के पहले पन्ने पर विज्ञापन की शक्ल में टेक्सटाइल इंडस्ट्री की व्यथा छपी. नीति आयोग के उपाध्यक्ष ने कहा कि पहले कहा कि 70 सालों के भीतर यह मुश्किल समय है. वित्त मंत्री इस स्थिति को संभालने का भरसक प्रयास कर रही हैं. इससे जुड़ी अधिक रिपोर्ट्स भी नहीं दिख रहीं. हो सकता है कि बहुतों को यह मंदी दिखाई नहीं पड़ रही हो लेकिन इन दोनों शहरों में इसे साफतौर पर देखा और महसूस किया जा सकता है. आदित्यपुर तो इस मंदी की चपेट में कुछ अधिक ही दिखता है.

अपनी रिपोर्ट के सिलसिले में आदित्यपुर आने के बाद हम जिस घर में थोड़ी देर के लिए रुके थे. वो घर भी मंदी और ब्लॉक क्लोजर की चपेट में दिखा. घर के मुखिया क्रॉस कंपनी (टाटा के लिए काम करने वाली बड़ी कंपनी) में पर्मानेंट वर्कर होने के बावजूद ब्लॉक क्लोजर के चपेट में हैं. आदित्यपुर में स्थापित क्रॉस कंपनी टाटा की वेंडर है. जब हमने उनसे ब्लॉक क्लोजर के मायने पूछे तो उनका कहना था, ‘देखिए कंपनियां सप्ताह में बिकने के हिसाब से अपना माल बनाती हैं. यदि माल सामान्य रफ्तार से बिक नहीं रहा तो सप्ताह में दो दिन या तीन दिन या फिर उससे भी अधिक के लिए ब्लॉक क्लोजर होता है.” यहां आप सभी को यह भी बताना जरूरी है कि बीते 6 माह से जमशेदपुर और आदित्यपुर में ब्लॉक क्लोजर अधिक देखने को मिल रहा है. काम ठप तो सभी के खर्चे ठप. खर्चे ठप तो फिर मंदी शुरू.

जमशेदपुर और आदित्यपुर इंडस्ट्रीयल एरिया के भीतर चलने वाली कंपनियों में आए दिन होने वाले ब्लॉक क्लोजर को समझने के लिए जरा आंकड़ों का सहारा लेते हैं. टाटा मोटर्स ने इस साल अप्रैल माह के भीतर करीब 12,000 ट्रकें बनाईं. मई में यह संख्या घटकर 9,000 पहुंच गई. जून में 7,200 और जुलाई में यह आंकड़ा 4,800 तक आकर सिमट गया. अगस्त महीने में 21 तारीख तक सिर्फ 1,700 ट्रक बने हैं. ट्रकों की इस गिरती संख्या के पीछे लाखों परिवारों की घटती आमदनी, हजारों की बेरोजगारी और सैकड़ों छोटे-बड़े उद्यमियों के घटते-बढ़ते ब्लड प्रेशर की कहानी दिखाई देती है.

परमानेंट हैं हलकान तो ठेका मजदूरों को कौन पूछे?
जमशेदपुर और आदित्यपुर की औद्योगिक मंदी के सवाल पर लेबर सप्लाई का काम करने वाले व कांग्रेस से जुड़ाव रखने वाले राणा सिंह कहते हैं, “आप यहां की सड़कों पर घूम जाइये. मजदूर तो 5 रुपये की बिस्किट तक नहीं खरीद पा रहा. इलाके में मजदूरों को भोजन कराने वाले छोटे-मोटे होटलों पर भारी आफत आन पड़ी है. उनका धंधा भी मंदा चल रहा है. इस मंदी से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से लगभग 5 लाख लोग प्रभावित हैं”

राणा सिंह- कांग्रेस कार्यकर्ता व छोटे ठेकेदार

राणा सिंह की बात की पुष्टि हेतु जब हम सड़क पर निकलते हैं तो आदित्यपुर इंडस्ट्रीयल एरिया में एक छोटा सा होटल चलाने वाले नितेश गोप कहते हैं, “पहले जहां रोज 10 किलो तक चावल बनाते थे, वहां अब सिर्फ 3 किलो का चावल बना रहे हैं. शाम का नाश्ता तो बनाना ही बंद कर दिया. 5 लोगों का परिवार है और सारे लोग होटल चलाने का ही काम करते हैं. गनीमत बस इसी बात की है कि यहां इस होटल का हम कोई किराया नहीं देते, गर ऐसा होता तो यहां से बोरिया-बिस्तरा समेटना पड़ता.”

नितिश गोप- आदित्यपुर इंडस्ट्रीयल एरिया में होटल चलाने वाले

25-30 साल में पहली बार ऐसी मंदी आई है
जमशेदपुर और आदित्यपुर के भीतर आई मंदी के सवाल पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से सम्बद्ध औद्योगिक संघ लघु उद्योग भारती के वाइस प्रेसिडेंट पंकज कुमार हमसे बातचीत में कहते हैं, देखिए बीते 25-30 सालों में ऐसी मंदी पहली बार आई है. ऐसी मंदी कल्पना से परे है. पहले भी बरसात में थोड़ा सा स्लो डाउन होता था लेकिन ऐसा नहीं था कि काम बंद करना पड़े. उनके संगठन ने सरकार के पास मेमोरेंडम भेजा है कि वाहनों पर लगने वाले जीएसटी को 28 फीसदी से घटाकर 18 फीसदी किया जाए.

पंकज कुमार- आरएसएस से सम्बद्ध लघु उद्योग भारती के प्रवक्ता

इस मंदी के आने की वजहें पूछने पर वे कहते हैं, “देखिए सरकार Emission Norm बदल रही है. अप्रैल, 2020 के बाद से बीएस-4 इंजन वाली गाड़ियां नहीं बिकेंगी. सिर्फ बीएस-6 इंजन वाली गाड़ियां ही सड़कों पर चलेंगी. इस डर से भी टाटा जैसी बड़ी कम्पनी ने अपना उत्पादन घटाना शुरू कर दिया है. ट्रांसपोर्टर भी नए मॉडल का इंतजार कर रहे कि कौन नए-पुराने का आफत मोल ले. थोड़ा इंतजार ही किया जाए. RBI के नए दिशा-निर्देश के बाद बैंक भी वाहन लोन देने में सख्ती बरत रहे हैं. पहले जहां 1-2 लाख के डाउन पेपेंट से ही गाड़ियां मिल जाया करतीं. वहीं अब यह मुश्किल हो गया है. बाजार में काम भी कम हो गया है, तो ट्रांसपोर्टर गाड़ियां नहीं खरीद रहे.

जमशेदपुर और आदित्यपुर दोनों हैं प्रभावित
गौरतलब है कि जमशेदपुर में टाटा घराने की कई कंपनियों की उत्पादन इकाई हैं. जैसे टिस्को, टाटा मोटर्स, टिस्कॉन, टिन्पलेट, टिमकन, ट्यूब, इत्यादि – और इन तमाम इकाइयों के लिए पार्ट्स बनाने का अधिकांश काम आदित्यपुर में होता है. या कहें कि लाइट और हैवी मोटर वेहिकल्स के पार्ट आदित्यपुर में बनते हैं और उनकी (Assembling) जमशेदपुर में होती है. अब जबकि बड़ी कंपनियां मंदी की वजह से ब्लॉक क्लोजर कर रहीं तो इसका सीधा असर छोटे-मझोले कारोबारियों और उनसे जुड़कर काम करने वाले मजदूरों पर पड़ रहा है. यहां हम आपको बताते चलें कि आदित्यपुर इंडस्ट्रीयल एरिया के भीतर ऐसी 12 से 15 सौ के आसपास लघु और सूक्ष्म इकाइयां हैं और इनमें से अधिकांश प्रभावित हैं. यहां इस बात को कहना जरूरी है कि बीते पांच-छह महीनों से आई इस मंदी ने इस उद्योग को खासा नुकसान पहुंचाया है. लगभग 90 फीसदी ठेका मजदूर बिन काम हो गए हैं. स्थायी मजदूर भी 10 से 15 दिन का रोजगार पा रहे हैं और अनिश्चितता के भंवर में हैं. मोटामोटी भी देखें तो लगभग डेढ़ लाख मजदूर और उनसे जुड़ा उनका परिवार और परिवारों के खर्चे से चलने वाला शहर तो सीधे मंदी की चपेट में आ गया है.

तैयार माल भी दूसरी पार्टी ले नहीं जा रही

आदित्यपुर इंडस्ट्रीयल एरिया की एक कंपनी आईपीएसजी प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर धीरज कुमार सिंह मंदी के सवाल पर कहते हैं, “पहले जहां काम की बहुतायत थी और तीन शिफ्ट में काम होता था. वहीं अब सिर्फ एक शिफ्ट में थोड़ा-बहुत काम होता है. 80 फीसदी मशीनें तो शुरू ही नहीं हो रहीं. कुछ मजदूरों से पारिवारिक रिश्ते बन गए हैं तो उन्हें विश्वास में लेकर किसी तरह काम कर रहे हैं. ताकि काम आने पर मजदूरों की दिक्कत न हो.” यहां काम करने वाले मजदूर भी अपने मैनेजर की बात सुनकर हुंकारी भरते हैं.

धीरज कुमार सिंह- आईपीएसजी प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर

ऑर्डर ही नहीं तो लोन कैसे चुकायें?
आदित्यपुर इलाके में घूमते हुए हमारी टीम को सासाराम के रहने वाले रामाधार सिंह मिले. वे टाटा के लिए ही काम करते हैं लेकिन थर्ड पार्टी के रूप में. टाटा खुद से छोटी कंपनी को काम देती है. वो कंपनी वो काम इन्हें ट्रांसफर कर देती है. जब हमने उनसे कारोबार में मंदी का सवाल किया तो वे कहते हैं, “मंदी की शुरुआत नवंबर से ही हो गई. इस महीने तो एकदम ऑर्डर ही नहीं आया. इस महीने तो बैठाबैठी है. इस काम के लिए झारखंड ग्रामीण बैंक से 1 करोड़ का लोन लिया है. बैंक मैनेजर किश्त भरने के लिए फोन कर रहा है. बैंक लोन वाले मामले में (NPA) करने जा रहा है. बीते चार महीने से बिजली बिल भी पेंडिंग है. 24 घंटे काम चला करता था. 20 से अधिक मजदूर दिन-रात काम करते थे और अभी की स्थिति कुछ ऐसी है कि मशीन चालू ही नहीं हो रहा.”

रामाधार सिंह- छोटे कारोबारी जो कि टाटा के लिए थर्ड पार्टी के तौर पर काम करते हैं

इस रपट के अंत की ओर बढ़ते हुए मुझे आदित्यपुर में ही मिले शंभू के शब्द याद आते हैं कि सरकार बीएस-4 से बीएस-6 करने के क्रम में भले ही पर्यावरण को बचाने की सोच रही हो लेकिन क्या वे इस प्रॉसेस को साल भर के लिए बढ़ा नहीं सकते? प्रदूषण से तो वे बाद में मरेंगे, भूख से पहले मर जाएंगे. अभी तो व्यवहार में राशन वाला कुछ दे भी रहा है, वो बंद कर देगा तो किसके सामने हाथ फैलायेंगे?

मजदूर शंभू