कारगिल विजय दिवस: हीरो ऑफ बटालिक कैप्टन मनोज पांडे का दोस्त के नाम लिखा गया पत्र

कारगिल विजय दिवस: हीरो ऑफ बटालिक कैप्टन मनोज पांडे का दोस्त के नाम लिखा गया पत्र

प्यारे पवन,

                  मुझे तुम्हारे दोनों खत मिले लेकिन मैं तुम्हारे पहले खत का जवाब न दे सका। दोनों खत मुझ तक युद्ध के दौरान पहुंचे. इस ऊंचाई पर दुश्मन से लड़ना बहुत ही मुश्किल है. वे बंकर के भीतर सुरक्षित हैं और हम खुले में हैं. उन्होंने अपनी रणनीति बड़े कायदे से बनाई है और अधिकांश ऊंचाइयों पर कब्जा कर चुके हैं. शुरुआत में हमारे लिए चीजें बेहद खराब थीं और इस दौरान हमारे कई जवान भी शहीद हो गए लेकिन स्थितियां अब काबू में हैं, नियोजित हैं और सतर्कतापूर्वक हमला जारी है. पिछले डेढ़ महीने में मैंनेऑपरेशन विजयके भीतर सबसे भयावह दौर देखा है. कम समय में सेना को अधिकतम नुकसान पहुंचा है. खुद मैं चार बार मौत का सामना कर चुका हूं. लेकिन किन्हीं अच्छे कर्मों की वजह से मैं अब तक जीवित हूं. हर दिन हमें  पूरे देश से एक ही बात कहते हुए खत मिल रहे हैं कि ‘Just  do it’. यह देखना सुखद है कि जरूरत और संकट के समय हमारा देश एकजुट हो जाता है. मुझे नहीं पता कि  अगले क्षण क्या होगा लेकिन अभी मैं तुम्हें आश्वस्त कर सकता हूं कि हम निश्चित तौर पर घुसपैठियों को किसी भी कीमत पर पीछे धकेल देंगे, चाहे इसके लिए हमें अपनी जान ही क्यों न कुर्बान करनी पड़े.

इस अभियान ने निश्चित तौर पर कुछ ऐसे चीजें दिखलाई हैं जिन्हें आंका नहीं जा सकता है. जैसे मौत के सामने भी लोगों का नेतृत्व करते रहना उनके डर, उनकी निष्ठा के साथ ही शारीरिक और मानसिक तौर पर मनुष्य के दबाव और तनाव झेलने की निष्ठ को दिखाता है लेकिन यार ‘’भारतीय  थल सेना खास तौर पर पैदल दस्ते के जवान अद्वितीय हैं. वे सक्षम नेतृत्व में कुछ भी कर सकते हैं. जैसा कि मैं तुमसे हमेशा कहता रहा हूं कि पैदल दस्ता आपको जो देता है उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. मैं अपनेपैदल दस्ताज्वाइन करने के फैसले पर इस कदर गौरवान्वित हूं कि तुम्हें बता नहीं सकता.

यहां मौसम ठंडा है लेकिन बर्फ पिघलनी शुरू हो गई है. सूरज निकलने की स्थिति में दिन अच्छा होता है. रात के दौरान तापमान  माइनस 5 डिग्री सेल्सियस से -15 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है.

यह सबकुछ बीत जाएगा लेकिन कब बीतेगा यह बताया नहीं जा सकता. और स्पष्ट तौर पर कहूं तो कोई भी इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं है कि दुश्मन पीछे हट रहे हैं. तुमसे सिर्फ एक आग्रह है कि मेरे भाई की जिंदगी के निर्णायक समय पर उसका मार्गदर्शन करना. इस संकट की घड़ियों में हमारे बारे में इतना सोचने के लिए सभी दोस्तों का आभार. हमेशा संपर्क में रहना. यह भावनात्मक तौर पर मददगार रहता है. अगर मैं वापस लौटा तो मेरे पास बातें करने के लिए काफी कुछ होगा. लेकिन निश्चित तौर पर यह मेरे लिए जिंदगी भर का अनुभव होने जा रहा है.   

 तुम्हारा मनोज

खत प्राप्ति तारीख: 30/06/1999

2/3 जुलाई, 1999 की रात मनोज पांडे दुश्मनों का सामना करते हुए शहीद हो गए. मनोज के दोस्त पवन कुमार मिश्रा ने बाद में उनके एक जीवन पर एक किताब लिखी. जिसका नाम हैहीरो ऑफ बटालिक, कारगिल युद्ध 1999